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कोरोना संकट : स्कूल जाने वाले छात्रों और छोटे बच्चों पर संक्रमण का प्रभाव

कोरोना महामारी के प्रभाव के कारण दुनिया के ज्यादतर हिस्से पिछले कुछ महीनों से बंद हैं. लेकिन प्रतिबंधों को चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे उठाया जा रहा है. इस दौरान कुछ देशों में स्कूल खुले हुए हैं. अन्य देश स्कूल खोलने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में कोरोना संक्रमण और बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों में चिंता है.

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Published : May 19, 2020, 5:52 PM IST

कोरोना महामारी के प्रभाव के कारण दुनिया के ज्यादतर हिस्से पिछले कुछ महीनों से बंद हैं. लेकिन प्रतिबंधों को चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे उठाया जा रहा है. इस दौरान कुछ देशों में स्कूल खुले हुए हैं. अन्य देश स्कूल खोलने की तैयारी कर रहे हैं.

अभिभावक इस दुविधा में हैं कि स्कूल फिर से खुले तो वे अपने बच्चों को कैसे भेजें? क्या सावधानी बरतें? इन परिस्थितियों में, बच्चों की कोरोना से संक्रमित होने की कितनी संभावना है और क्या वे आसानी से ठीक हो जाएंगे? वे वायरस को किस हद तक फैला सकते हैं? इस बारे में वैज्ञानिक क्या कहते हैं? क्या इस विषय पर कोई अध्ययन किया गया है?

ये ऐसे कुछ पेचीदा सवाल हैं, जो हर अभिभावक के दिमाग में चल रहे होंगे.

ब्रिटिश शोधकर्ताओं का कहना है कि चीन, इटली, अमेरिका जैसे देशों में, जहां कोरोना का प्रभाव अधिक है, 18 वर्ष से कम आयु के 2% से भी कम बच्चे कोरोना से संक्रमित थे.

हालांकि, कुछ शोधकर्ता का माना है कि जब तक कोरोना का प्रसार बढ़ा, तब तक सभी स्कूल बंद हो गए थे और बच्चे घर पर ही थे. इसी वजह से बच्चों में वयस्कों के मुकाबले कोरोना संक्रमण फैलने की दर कम रही.

हांगकांग के शोधकर्ताओं का कहना है, चूंकि वे एसिमप्टोमैटिक थे, इसलिए उन पर व्यापक परीक्षण नहीं किए गए थे.

स्कूलों को सभी निवारक उपायों को सुनिश्चित करने के बाद ही फिर से खोलना चाहिए ताकि उनके माध्यम से फिर से सामाजिक तौर पर कोरोना का प्रकोप न फैले.

'लांसेट' जर्नल में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, शेन्जेग (चीन) में एक मार्च के शोध में पता चला कि 10 साल से कम उम्र के बच्चे, जो वयस्कों के साथ-साथ महामारी से संक्रमित हो गए हैं, उनमें मामूली लक्षण दिखा रहे हैं. दक्षिण कोरिया, इटली और आइसलैंड में, जहां बड़े पैमाने पर परीक्षण किए जा रहे हैं, बच्चों में वायरस का संक्रमण अधिक नहीं है.

वायरस के धीमे वाहक!
एक अध्ययन से पता चला है कि हालांकि एक कोविड पॉजिटिव लड़के (9) ने फ्रांस के आल्प्स क्षेत्र के तीन स्कूलों का दौरा किया, लेकिन कोई भी वायरस से संक्रमित नहीं हुआ.

ऑस्ट्रेलिया के वायरोलॉजिस्ट ने कोरोना वायरस की शुरुआत से सिंगापुर के स्कूलों में 'बच्चों में वायरस के प्रकोप' पर एक अध्ययन किया है. उन्होंने बताया कि परिवार के अन्य सदस्यों की तुलना में बच्चों में वायरस 8% की धीमी दर से फैलता है.

प्रतिरक्षा स्तर में अंतर
विभिन्न शोधों से पता चला है कि बच्चे वयस्कों की तुलना में कोरोना का अधिक कुशलता से सामना कर रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना वायरस को आकर्षित करने वाला ए -2 एंजाइम बच्चों के फेफड़ों में कम मौजूद होता है.

यही कारण है कि वायरस संक्रमित बच्चों में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या कभी-कभी मामूली लक्षण मौजूद होते हैं. कोरोना से संक्रमित बच्चों में से केवल कुछ गंभीर रूप से बीमार हैं और उनमें से बहुत कम बच्चे मर रहे हैं.

एक और तर्क यह है कि 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अक्सर सर्दी, खांसी और अस्थमा जैसे वायरस से संक्रमित होते हैं और तब पैदा होने वाले एंटीबॉडी अब SARS-CoV-2 (गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम कोरोनावायरस 2) से लड़ रहे हैं.

पढ़ें-कश्मीर को लेकर सोशल मीडिया पर चल रहे बयान को तालिबान ने फर्जी बताया

वायरस से संक्रमण पर साइटोकिन्स के उत्पादन का स्तर छोटे बच्चों में कम है. इस कारण से, उनके अन्य आंतरिक अंगों को कोई खतरा नहीं है. विभिन्न देशों के शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि कोरोना से होने वाली मौतें वयस्कों में साइटोकिन स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम से जुड़ी हैं.

कुल मिलाकर, बच्चों को स्कूल भेजने से पहले, कक्षा में उनके बैठने की व्यवस्था और स्कूल वैन को लगातार कीटाणुरहित करने के लिए पर्याप्त देखभाल की जानी चाहिए.

कोरोना से हो रही क्षति
190 देशों में 157 करोड़ से अधिक छात्रों ने तालाबंदी के कारण स्कूल छोड़ दिया है. स्कूलों में मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं है. परिणामवश बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. कुल 37 देशों में 12 करोड़ से अधिक बच्चों का टीकाकरण नहीं किया गया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में घोषणा की, 'हम भारत में सही समय पर 40% बच्चों का टीकाकरण करने में असमर्थ हैं.'

क्या है बेहतर तरीका
स्कूलों के खुलने का मतलब यह नहीं है कि छात्र पहले की तरह समूहों एक साथ बैठें. हमें अब पूरी तरह से नई तकनीकों को इस्तेमाल में लाना होगा.

शारीरिक दूरी सुनिश्चित करने के लिए कक्षा की बेंच/कुर्सियों को एक दूसरे से दूर-दूर रखना चाहिए.

जगह की समस्या को हल करने के लिए कक्षा में दो समूहों में विभाजित कर के प्रत्येक समूह को सप्ताह में 4 दिन पढ़ाने की सलाह दी जा सकती है.

आधी कक्षाओं को पढ़ाने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की जाए. यह निजी स्कूलों के लिए तो संभव हो सकता है, पर सरकारी स्कूलों को शुरू में परेशानी हो सकती है.

मास्क और हाथ की सफाई सभी बच्चों के लिए अनिवार्य होनी चाहिए.

विद्यालय का परिवेश नियमित रूप से सैनिटाइज होना चाहिए. बच्चों को सैनिटाइजर उपलब्ध कराया जाना चाहिए

खेल के मैदानों को कुछ और समय के लिए बंद रहने देना चाहिए.

कौन से उपाय अपना रहे दूसरे देश
फ्रांस में, स्थितियां ये हैं कि प्रत्येक कक्षा में 15 छात्र होने चाहिए और सभी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है.

डेनमार्क और जर्मनी में मास्क प्रत्येक छात्र के लिए अनिवार्य किया है. हर कक्षा में दो सीटों के बीच में कम से कम छह फीट की दूरी रखी गई है.

ताइवान में, छात्रों के बीच कार्ड बोर्ड रखकर शारीरिक दूरी बनाई जा रही है.

स्वीडन में स्कूल बंद नहीं हैं. वे हाथों की सफाई, मास्क पहनना और शारीरिक दूरी का अभ्यास सुनिश्चित कर रहे हैं.

चीन में, सभी छात्रों के स्कूल बैग को सैनिटाइज किया दिया जाता है और मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया है.

ब्रिटेन में स्कूलों को 2% बच्चों के साथ शुरू किया गया था.

ऑस्ट्रेलिया में दूसरे कार्यकाल के लिए उचित देखभाल के साथ स्कूल खोले गए हैं. यह माता-पिता पर निर्भर है कि वे बच्चों को भेजें या नहीं.

कोरोना महामारी के प्रभाव के कारण दुनिया के ज्यादतर हिस्से पिछले कुछ महीनों से बंद हैं. लेकिन प्रतिबंधों को चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे उठाया जा रहा है. इस दौरान कुछ देशों में स्कूल खुले हुए हैं. अन्य देश स्कूल खोलने की तैयारी कर रहे हैं.

अभिभावक इस दुविधा में हैं कि स्कूल फिर से खुले तो वे अपने बच्चों को कैसे भेजें? क्या सावधानी बरतें? इन परिस्थितियों में, बच्चों की कोरोना से संक्रमित होने की कितनी संभावना है और क्या वे आसानी से ठीक हो जाएंगे? वे वायरस को किस हद तक फैला सकते हैं? इस बारे में वैज्ञानिक क्या कहते हैं? क्या इस विषय पर कोई अध्ययन किया गया है?

ये ऐसे कुछ पेचीदा सवाल हैं, जो हर अभिभावक के दिमाग में चल रहे होंगे.

ब्रिटिश शोधकर्ताओं का कहना है कि चीन, इटली, अमेरिका जैसे देशों में, जहां कोरोना का प्रभाव अधिक है, 18 वर्ष से कम आयु के 2% से भी कम बच्चे कोरोना से संक्रमित थे.

हालांकि, कुछ शोधकर्ता का माना है कि जब तक कोरोना का प्रसार बढ़ा, तब तक सभी स्कूल बंद हो गए थे और बच्चे घर पर ही थे. इसी वजह से बच्चों में वयस्कों के मुकाबले कोरोना संक्रमण फैलने की दर कम रही.

हांगकांग के शोधकर्ताओं का कहना है, चूंकि वे एसिमप्टोमैटिक थे, इसलिए उन पर व्यापक परीक्षण नहीं किए गए थे.

स्कूलों को सभी निवारक उपायों को सुनिश्चित करने के बाद ही फिर से खोलना चाहिए ताकि उनके माध्यम से फिर से सामाजिक तौर पर कोरोना का प्रकोप न फैले.

'लांसेट' जर्नल में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, शेन्जेग (चीन) में एक मार्च के शोध में पता चला कि 10 साल से कम उम्र के बच्चे, जो वयस्कों के साथ-साथ महामारी से संक्रमित हो गए हैं, उनमें मामूली लक्षण दिखा रहे हैं. दक्षिण कोरिया, इटली और आइसलैंड में, जहां बड़े पैमाने पर परीक्षण किए जा रहे हैं, बच्चों में वायरस का संक्रमण अधिक नहीं है.

वायरस के धीमे वाहक!
एक अध्ययन से पता चला है कि हालांकि एक कोविड पॉजिटिव लड़के (9) ने फ्रांस के आल्प्स क्षेत्र के तीन स्कूलों का दौरा किया, लेकिन कोई भी वायरस से संक्रमित नहीं हुआ.

ऑस्ट्रेलिया के वायरोलॉजिस्ट ने कोरोना वायरस की शुरुआत से सिंगापुर के स्कूलों में 'बच्चों में वायरस के प्रकोप' पर एक अध्ययन किया है. उन्होंने बताया कि परिवार के अन्य सदस्यों की तुलना में बच्चों में वायरस 8% की धीमी दर से फैलता है.

प्रतिरक्षा स्तर में अंतर
विभिन्न शोधों से पता चला है कि बच्चे वयस्कों की तुलना में कोरोना का अधिक कुशलता से सामना कर रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना वायरस को आकर्षित करने वाला ए -2 एंजाइम बच्चों के फेफड़ों में कम मौजूद होता है.

यही कारण है कि वायरस संक्रमित बच्चों में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या कभी-कभी मामूली लक्षण मौजूद होते हैं. कोरोना से संक्रमित बच्चों में से केवल कुछ गंभीर रूप से बीमार हैं और उनमें से बहुत कम बच्चे मर रहे हैं.

एक और तर्क यह है कि 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अक्सर सर्दी, खांसी और अस्थमा जैसे वायरस से संक्रमित होते हैं और तब पैदा होने वाले एंटीबॉडी अब SARS-CoV-2 (गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम कोरोनावायरस 2) से लड़ रहे हैं.

पढ़ें-कश्मीर को लेकर सोशल मीडिया पर चल रहे बयान को तालिबान ने फर्जी बताया

वायरस से संक्रमण पर साइटोकिन्स के उत्पादन का स्तर छोटे बच्चों में कम है. इस कारण से, उनके अन्य आंतरिक अंगों को कोई खतरा नहीं है. विभिन्न देशों के शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि कोरोना से होने वाली मौतें वयस्कों में साइटोकिन स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम से जुड़ी हैं.

कुल मिलाकर, बच्चों को स्कूल भेजने से पहले, कक्षा में उनके बैठने की व्यवस्था और स्कूल वैन को लगातार कीटाणुरहित करने के लिए पर्याप्त देखभाल की जानी चाहिए.

कोरोना से हो रही क्षति
190 देशों में 157 करोड़ से अधिक छात्रों ने तालाबंदी के कारण स्कूल छोड़ दिया है. स्कूलों में मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं है. परिणामवश बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. कुल 37 देशों में 12 करोड़ से अधिक बच्चों का टीकाकरण नहीं किया गया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में घोषणा की, 'हम भारत में सही समय पर 40% बच्चों का टीकाकरण करने में असमर्थ हैं.'

क्या है बेहतर तरीका
स्कूलों के खुलने का मतलब यह नहीं है कि छात्र पहले की तरह समूहों एक साथ बैठें. हमें अब पूरी तरह से नई तकनीकों को इस्तेमाल में लाना होगा.

शारीरिक दूरी सुनिश्चित करने के लिए कक्षा की बेंच/कुर्सियों को एक दूसरे से दूर-दूर रखना चाहिए.

जगह की समस्या को हल करने के लिए कक्षा में दो समूहों में विभाजित कर के प्रत्येक समूह को सप्ताह में 4 दिन पढ़ाने की सलाह दी जा सकती है.

आधी कक्षाओं को पढ़ाने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की जाए. यह निजी स्कूलों के लिए तो संभव हो सकता है, पर सरकारी स्कूलों को शुरू में परेशानी हो सकती है.

मास्क और हाथ की सफाई सभी बच्चों के लिए अनिवार्य होनी चाहिए.

विद्यालय का परिवेश नियमित रूप से सैनिटाइज होना चाहिए. बच्चों को सैनिटाइजर उपलब्ध कराया जाना चाहिए

खेल के मैदानों को कुछ और समय के लिए बंद रहने देना चाहिए.

कौन से उपाय अपना रहे दूसरे देश
फ्रांस में, स्थितियां ये हैं कि प्रत्येक कक्षा में 15 छात्र होने चाहिए और सभी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है.

डेनमार्क और जर्मनी में मास्क प्रत्येक छात्र के लिए अनिवार्य किया है. हर कक्षा में दो सीटों के बीच में कम से कम छह फीट की दूरी रखी गई है.

ताइवान में, छात्रों के बीच कार्ड बोर्ड रखकर शारीरिक दूरी बनाई जा रही है.

स्वीडन में स्कूल बंद नहीं हैं. वे हाथों की सफाई, मास्क पहनना और शारीरिक दूरी का अभ्यास सुनिश्चित कर रहे हैं.

चीन में, सभी छात्रों के स्कूल बैग को सैनिटाइज किया दिया जाता है और मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया है.

ब्रिटेन में स्कूलों को 2% बच्चों के साथ शुरू किया गया था.

ऑस्ट्रेलिया में दूसरे कार्यकाल के लिए उचित देखभाल के साथ स्कूल खोले गए हैं. यह माता-पिता पर निर्भर है कि वे बच्चों को भेजें या नहीं.

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