ETV Bharat / bharat

विशेष लेख : बजट 2020 के चलते दक्षिण के राज्यों को हो रहा नुकसान

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार अपने बजट भाषण में यह बात कही, कि भारत सरकार 15वें वित्त आयोग की ज़्यादातर सिफ़ारिशों को अपनाने जा रही है. इन सिफ़ारिशों के बारे में पहली बार दिसंबर 2019 में बात की गई थी. इसके चलते, दक्षिण के राज्य, 2011 की जनगणना को लेकर जिस बात से डर रहे थे, वो सच होती दिख रही है. 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष, एन के सिंह का कहना है कि, उनकी कोशिश यह है कि प्रगतिशील राज्य और तेज़ी से प्रगति करें और विकास की दौड़ में पिछड़े राज्य इस दौड़ में राष्ट्रीय औसत के बराबर पहुंच सकें. लेकिन, हाल के बजट के प्रावधानों के चलते दक्षिण के राज्य नुक़सान में रहेंगे.

author img

By

Published : Feb 10, 2020, 3:35 PM IST

Updated : Feb 29, 2020, 9:12 PM IST

news
प्रतिकात्मक चित्र


15वें वित्त आयोग के कर बंटवारे के नये पैमानों के कारण, 20 राज्यों के हिस्से में इज़ाफ़ा होगा वहीं बाक़ी 8 राज्यों के हिस्से में कटौती. जिसका मतलब है कि उन बीस राज्यों के राजस्व में 33,000 करोड़ का इज़ाफ़ा होगा, वहीं, बाक़ी आठ राज्यों को 18,389 करोड़ का नुकसान होगा. दक्षिण के राज्यों में केवल तमिलनाडु इन ख़ुशक़िस्मत राज्यों में है, जबकि बाक़ी सभी राज्यों को कुल 16,640 करोड़ का नुक़सान होने का अनुमान है. अगर एक वित्तीय साल का नुक़सान यह है तो पांच सालों में होने वाले नुक़सान का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

वहीं, एन के सिंह की अध्यक्षता वाले 15वें वित्त आयोग ने राज्यों की कर में हिस्सेदारी के 42% से घटाकर 41% कर दिया है. वित्त आयोग का तर्क है कि जम्मू कश्मीर ने पूर्ण राज्य का अपना दर्जा खो दिया है और ऐसे में इस एक फ़ीसदी का इस्तेमाल नये बने केंद्र शासित प्रदेशों की सुरक्षा में खर्च होगा. अगर कोई राज्य विकास तालिका में पिछड़ जाता है तो इसकी जिम्मेदारी किसके सिर होनी चाहिये?

फ़रवरी 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि, उनकी सरकार की प्राथमिकता है सभी राज्यों को आत्म निर्भर बनाने की, ताकी वो अपने हिसाब से विकास की योजनाऐं चला सकें. 15वें वित्त आयोग के बनते ही प्रधानमंत्री का राज्यों को लिखा वो पत्र बेमानी हो गया जिसमें उन्होंने लिखा था कि उनकी सरकार 14वें वित्त आयोग की सिफ़ारिशों को मानने जा रही है. 1976 में बने 7वें वित्त आयोग से लेकर 14वें वित्त आयोग तक, कर के बंटवारे के लिये 1971 की जनसंख्या गणना को आधार माना जाता था.

14वें वित्त आयोग ने जब 1971 की जनगणना को 17.5% और 2011 की जनगणना को 10% भार दिया तब कोई मतभेद नहीं था. मौजूदा 15% महत्व 2011 जनगणना को, आय में अंतर को 45%, जनसंख्या रोकने के उपायों को 12.5%, और क जमा करने के प्रयासों को 2.5% के आंकड़ों ने कई राज्यों को हैरान कर दिया है. पहले से ही राजस्व की भारी कमी झेल रहे आंध्र प्रदेश को 1,521 करोड़ का नुक़सान और तेलंगाना को 2,400 करोड़ का नुक़सान होने का अनुमान है.

ऐसा लग रहा है कि वित्त आयोग ने राज्यों को जनसंख्या रोकने के कारगर कदम उठाने के लिये दंडित किया है. वहीं, केंद्र सरकार कार्यकुशलता के मानक तय कर, उनके आधार पर निधि का बंटवारा करने की तैयारी में है. ऐसे में यह तय है कि आने वाले सालो में दक्षिण के राज्यों को और ज़्यादा नुक़सान होने वाला है.

15वें वित्त आयोग के पांच साल के कार्यकाल के लिये केंद्र सरकार ने कुल 175 लाख करोड़ के राजस्व का अनुमान लगाया है, लेकिन मौजूदा मंदी ने अर्थव्यवस्था को धक्का दिया है. एनडीए की केंद्र सरकार, राज्यों पर कर बढ़ाकर और राजस्व को केंद्र की तरफ़ भेज कर एकल सरकार बनाने की कोशिश कर रही है. केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के खर्च को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बराबरी से वहन किये जाने के प्रस्ताव के तहत एक बड़ी रक़म को राष्ट्रीय सुरक्षा निधि के अंतर्गत अलग किया है.

इसके बाद बचे फंड को राज्यों में बाँटा जायेगा. ऐसी सूरत में, केंद्र से राज्यों को आने वाले फंड में भारी कमी आयेगी. राज्य पहले ही किसानों के ऋण माफ़ी और बिजली विभागों के पुनर्गठन के कारण राजस्व नुक़सान का सामना कर रहे है. आर.बी.आई ने अक्टूबर में यह साफ़ किया था कि 2017-2019 के बीच निवेश में कमी आई है. केंद्र सरकार ने वित्त आयोग का गठन जनता के फ़ायदे की नीतियां बनाने के लिये किया था, लेकिन, इसके उलट वित्त आयोग के मूल सिद्धांतों को ही चोट पहुँच रही है. ये मंदी से भी बड़ा ख़तरा है.


15वें वित्त आयोग के कर बंटवारे के नये पैमानों के कारण, 20 राज्यों के हिस्से में इज़ाफ़ा होगा वहीं बाक़ी 8 राज्यों के हिस्से में कटौती. जिसका मतलब है कि उन बीस राज्यों के राजस्व में 33,000 करोड़ का इज़ाफ़ा होगा, वहीं, बाक़ी आठ राज्यों को 18,389 करोड़ का नुकसान होगा. दक्षिण के राज्यों में केवल तमिलनाडु इन ख़ुशक़िस्मत राज्यों में है, जबकि बाक़ी सभी राज्यों को कुल 16,640 करोड़ का नुक़सान होने का अनुमान है. अगर एक वित्तीय साल का नुक़सान यह है तो पांच सालों में होने वाले नुक़सान का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

वहीं, एन के सिंह की अध्यक्षता वाले 15वें वित्त आयोग ने राज्यों की कर में हिस्सेदारी के 42% से घटाकर 41% कर दिया है. वित्त आयोग का तर्क है कि जम्मू कश्मीर ने पूर्ण राज्य का अपना दर्जा खो दिया है और ऐसे में इस एक फ़ीसदी का इस्तेमाल नये बने केंद्र शासित प्रदेशों की सुरक्षा में खर्च होगा. अगर कोई राज्य विकास तालिका में पिछड़ जाता है तो इसकी जिम्मेदारी किसके सिर होनी चाहिये?

फ़रवरी 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि, उनकी सरकार की प्राथमिकता है सभी राज्यों को आत्म निर्भर बनाने की, ताकी वो अपने हिसाब से विकास की योजनाऐं चला सकें. 15वें वित्त आयोग के बनते ही प्रधानमंत्री का राज्यों को लिखा वो पत्र बेमानी हो गया जिसमें उन्होंने लिखा था कि उनकी सरकार 14वें वित्त आयोग की सिफ़ारिशों को मानने जा रही है. 1976 में बने 7वें वित्त आयोग से लेकर 14वें वित्त आयोग तक, कर के बंटवारे के लिये 1971 की जनसंख्या गणना को आधार माना जाता था.

14वें वित्त आयोग ने जब 1971 की जनगणना को 17.5% और 2011 की जनगणना को 10% भार दिया तब कोई मतभेद नहीं था. मौजूदा 15% महत्व 2011 जनगणना को, आय में अंतर को 45%, जनसंख्या रोकने के उपायों को 12.5%, और क जमा करने के प्रयासों को 2.5% के आंकड़ों ने कई राज्यों को हैरान कर दिया है. पहले से ही राजस्व की भारी कमी झेल रहे आंध्र प्रदेश को 1,521 करोड़ का नुक़सान और तेलंगाना को 2,400 करोड़ का नुक़सान होने का अनुमान है.

ऐसा लग रहा है कि वित्त आयोग ने राज्यों को जनसंख्या रोकने के कारगर कदम उठाने के लिये दंडित किया है. वहीं, केंद्र सरकार कार्यकुशलता के मानक तय कर, उनके आधार पर निधि का बंटवारा करने की तैयारी में है. ऐसे में यह तय है कि आने वाले सालो में दक्षिण के राज्यों को और ज़्यादा नुक़सान होने वाला है.

15वें वित्त आयोग के पांच साल के कार्यकाल के लिये केंद्र सरकार ने कुल 175 लाख करोड़ के राजस्व का अनुमान लगाया है, लेकिन मौजूदा मंदी ने अर्थव्यवस्था को धक्का दिया है. एनडीए की केंद्र सरकार, राज्यों पर कर बढ़ाकर और राजस्व को केंद्र की तरफ़ भेज कर एकल सरकार बनाने की कोशिश कर रही है. केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के खर्च को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बराबरी से वहन किये जाने के प्रस्ताव के तहत एक बड़ी रक़म को राष्ट्रीय सुरक्षा निधि के अंतर्गत अलग किया है.

इसके बाद बचे फंड को राज्यों में बाँटा जायेगा. ऐसी सूरत में, केंद्र से राज्यों को आने वाले फंड में भारी कमी आयेगी. राज्य पहले ही किसानों के ऋण माफ़ी और बिजली विभागों के पुनर्गठन के कारण राजस्व नुक़सान का सामना कर रहे है. आर.बी.आई ने अक्टूबर में यह साफ़ किया था कि 2017-2019 के बीच निवेश में कमी आई है. केंद्र सरकार ने वित्त आयोग का गठन जनता के फ़ायदे की नीतियां बनाने के लिये किया था, लेकिन, इसके उलट वित्त आयोग के मूल सिद्धांतों को ही चोट पहुँच रही है. ये मंदी से भी बड़ा ख़तरा है.

Intro:Body:

बजट 2020 के चलते दक्षिण के राज्यों को हो रहा नुकसान



वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने इस बार अपने बजट भाषण में यह बात कही, कि भारत सरकार 15वें वित्त आयोग की ज़्यादातर सिफ़ारिशों को अपनाने जा रही है. इन सिफ़ारिशों के बारे में पहली बार दिसंबर 2019 में बात की गई थी. इसके चलते, दक्षिण के राज्य, 2011 की जनगणना को लेकर जिस बात से डर रहे थे, वो सच होती दिख रही है. 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष, एन के सिंह का कहना है कि, उनकी कोशिश यह है कि प्रगतिशील राज्य और तेज़ी से प्रगति करें और विकास की दौड़ में पिछड़े राज्य इस दौड़ में राष्ट्रीय औसत के बराबर पहुंच सकें. लेकिन, हाल के बजट के प्रावधानों के चलते दक्षिण के राज्य नुक़सान में रहेंगे. 

15वें वित्त आयोग के कर बंटवारे के नये पैमानों के कारण, 20 राज्यों के हिस्से में इज़ाफ़ा होगा वहीं बाक़ी 8 राज्यों के हिस्से में कटौती. जिसका मतलब है कि उन बीस राज्यों के राजस्व में 33,000 करोड़ का इज़ाफ़ा होगा, वहीं, बाक़ी आठ राज्यों को 18,389 करोड़ का नुकसान होगा. दक्षिण के राज्यों में केवल तमिलनाडु इन ख़ुशक़िस्मत राज्यों में है, जबकि बाक़ी सभी राज्यों को कुल 16,640 करोड़ का नुक़सान होने का अनुमान है. अगर एक वित्तीय साल का नुक़सान यह है तो पांच सालों में होने वाले नुक़सान का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. 

वहीं, एन के सिंह की अध्यक्षता वाले 15वें वित्त आयोग ने राज्यों की कर में हिस्सेदारी के 42% से घटाकर 41% कर दिया है. वित्त आयोग का तर्क है कि जम्मू कश्मीर ने पूर्ण राज्य का अपना दर्जा खो दिया है और ऐसे में इस एक फ़ीसदी का इस्तेमाल नये बने केंद्र शासित प्रदेशों की सुरक्षा में खर्च होगा. अगर कोई राज्य विकास तालिका में पिछड़ जाता है तो इसकी जिम्मेदारी किसके सिर होनी चाहिये?     



फ़रवरी 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि, उनकी सरकार की प्राथमिकता है सभी राज्यों को आत्म निर्भर बनाने की, ताकी वो अपने हिसाब से विकास की योजनाऐं चला सकें. 15वें वित्त आयोग के बनते ही प्रधानमंत्री का राज्यों को लिखा वो पत्र बेमानी हो गया जिसमें उन्होंने लिखा था कि उनकी सरकार 14वें वित्त आयोग की सिफ़ारिशों को मानने जा रही है. 1976 में बने 7वें वित्त आयोग से लेकर 14वें वित्त आयोग तक, कर के बंटवारे के लिये 1971 की जनसंख्या गणना को आधार माना जाता था.

14वें वित्त आयोग ने जब 1971 की जनगणना को 17.5% और 2011 की जनगणना को 10% भार दिया तब कोई मतभेद नहीं था. मौजूदा 15% महत्व 2011 जनगणना को, आय में अंतर को 45%, जनसंख्या रोकने के उपायों को 12.5%, और क जमा करने के प्रयासों को 2.5% के आंकड़ों ने कई राज्यों को हैरान कर दिया है. पहले से ही राजस्व की भारी कमी झेल रहे आंध्र प्रदेश को 1,521 करोड़ का नुक़सान और तेलंगाना को 2,400 करोड़ का नुक़सान होने का अनुमान है. 

ऐसा लग रहा है कि वित्त आयोग ने राज्यों को जनसंख्या रोकने के कारगर कदम उठाने के लिये दंडित किया है. वहीं, केंद्र सरकार कार्यकुशलता के मानक तय कर, उनके आधार पर निधि का बंटवारा करने की तैयारी में है. ऐसे में यह तय है कि आने वाले सालो में दक्षिण के राज्यों को और ज़्यादा नुक़सान होने वाला है.     

15वें वित्त आयोग के पांच साल के कार्यकाल के लिये केंद्र सरकार ने कुल 175 लाख करोड़ के राजस्व का अनुमान लगाया है, लेकिन मौजूदा मंदी ने अर्थव्यवस्था को धक्का दिया है. एनडीए की केंद्र सरकार, राज्यों पर कर बढ़ाकर और राजस्व को केंद्र की तरफ़ भेज कर एकल सरकार बनाने की कोशिश कर रही है. केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के खर्च को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बराबरी से वहन किये जाने के प्रस्ताव के तहत एक बड़ी रक़म को राष्ट्रीय सुरक्षा निधि के अंतर्गत अलग किया है. 

इसके बाद बचे फंड को राज्यों में बाँटा जायेगा. ऐसी सूरत में, केंद्र से राज्यों को आने वाले फंड में भारी कमी आयेगी. राज्य पहले ही किसानों के ऋण माफ़ी और बिजली विभागों के पुनर्गठन के कारण राजस्व नुक़सान का सामना कर रहे है. आर.बी.आई ने अक्टूबर में यह साफ़ किया था कि 2017-2019 के बीच निवेश में कमी आई है. केंद्र सरकार ने वित्त आयोग का गठन जनता के फ़ायदे की नीतियां बनाने के लिये किया था, लेकिन, इसके उलट वित्त आयोग के मूल सिद्धांतों को ही चोट पहुँच रही है. ये मंदी से भी बड़ा ख़तरा है.


Conclusion:
Last Updated : Feb 29, 2020, 9:12 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.