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उत्तराखंड : दयारा बुग्याल में भू-कटाव रोकने के लिए अनूठी पहल - dayara bugyal uttarakhand

विश्व प्रसिद्ध दयारा बुग्याल 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां बीते लंबे समय से बरसाती नदी के कारण भू-कटाव से बुग्याल को खतरा हो रहा था. इसे देखते हुए वन विभाग ने इको फ्रेंडली तकनीक का इस्तेमाल किया है. पढ़ें पूरी खबर...

dayara bugyal soil erosion
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Published : Jun 15, 2020, 7:02 AM IST

देहरादून : उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध दयारा बुग्याल में उत्तरकाशी वन प्रभाग ने नदी से भू-कटाव रोकने के लिए एक अनूठा प्रयोग किया है. यह प्रयोग उत्तराखंड में पहली बार किया गया है. यहां उच्च हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को देखते हुए जिओ क्वायर का प्रयोग किया गया है, जिसे भरने के लिए पिरूल का इस्तेमाल किया जा रहा है.

साथ ही नदी में चेकडैम और लॉग बनाने के लिए भी सीमेंट या मिट्टी के स्थान पर पिरूल व बांस का प्रयोग किया गया है.

dayara bugyal soil erosion
ताजा तस्वीर

उत्तरकाशी जिले में विश्व प्रसिद्ध दयारा बुग्याल 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां बीते लंबे समय से बरसाती नदी से भू-कटाव की स्थिति से बुग्याल को खतरा पैदा हो रहा था.

dayara bugyal soil erosion
ताजा तस्वीर

इस भू-कटाव को रोकने के लिए वन विभाग की ओर से किसी हिमालयी राज्य में यह पहला प्रयोग है. यह इको फ्रेंडली तकनीक को अभी तक मात्र यूरोप या केरल में इस्तेमाल किया गया था.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वहीं, इसी तकनीक से बुग्याल में भू-कटाव को रोकने में खाद और मजबूत मिट्टी बनाने में मदद मिलेगी.

उत्तरकाशी वन प्रभाग के डीएफओ संदीप कुमार ने बताया कि दीवारों पर नारियल के भूसे से बनी रस्सियों का इस्तेमाल किया गया है. साथ ही इसे भी पूरी तरह पिरूल से भरा गया है. जबकि, चेकडैम को इस तकनीक से मजबूती प्रदान की गई है.

dayara bugyal soil erosion
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इसमें भी पिरूल और बांस का प्रयोग किया गया है क्योंकि दयारा जैसे बुग्यालों में किसी भी प्रकार के कंक्रीट का इस्तेमाल करना वर्जित है. साथ ही आने वाले दो वर्षों में यह भू-कटाव को रोकने में संजीवनी का कार्य करेगी.

पढ़ें-कोरोना संकट : पहाड़ी इलाकों में बकरियों और घोड़ों पर की जा रही खाद्यान्न की ढुलाई

देहरादून : उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध दयारा बुग्याल में उत्तरकाशी वन प्रभाग ने नदी से भू-कटाव रोकने के लिए एक अनूठा प्रयोग किया है. यह प्रयोग उत्तराखंड में पहली बार किया गया है. यहां उच्च हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को देखते हुए जिओ क्वायर का प्रयोग किया गया है, जिसे भरने के लिए पिरूल का इस्तेमाल किया जा रहा है.

साथ ही नदी में चेकडैम और लॉग बनाने के लिए भी सीमेंट या मिट्टी के स्थान पर पिरूल व बांस का प्रयोग किया गया है.

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उत्तरकाशी जिले में विश्व प्रसिद्ध दयारा बुग्याल 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां बीते लंबे समय से बरसाती नदी से भू-कटाव की स्थिति से बुग्याल को खतरा पैदा हो रहा था.

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इस भू-कटाव को रोकने के लिए वन विभाग की ओर से किसी हिमालयी राज्य में यह पहला प्रयोग है. यह इको फ्रेंडली तकनीक को अभी तक मात्र यूरोप या केरल में इस्तेमाल किया गया था.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वहीं, इसी तकनीक से बुग्याल में भू-कटाव को रोकने में खाद और मजबूत मिट्टी बनाने में मदद मिलेगी.

उत्तरकाशी वन प्रभाग के डीएफओ संदीप कुमार ने बताया कि दीवारों पर नारियल के भूसे से बनी रस्सियों का इस्तेमाल किया गया है. साथ ही इसे भी पूरी तरह पिरूल से भरा गया है. जबकि, चेकडैम को इस तकनीक से मजबूती प्रदान की गई है.

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इसमें भी पिरूल और बांस का प्रयोग किया गया है क्योंकि दयारा जैसे बुग्यालों में किसी भी प्रकार के कंक्रीट का इस्तेमाल करना वर्जित है. साथ ही आने वाले दो वर्षों में यह भू-कटाव को रोकने में संजीवनी का कार्य करेगी.

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