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कोरोना वैक्सीन की खोज बदल देगी वैश्विक व्यवस्था का परिदृश्य - वुहान

कोविड-19 ने नस्ल, रंग और पंथ में कोई भेद नहीं किया हैं और अमीर और शक्तिशाली देशों को अपने घुटनों पर ला दिया है. वास्तव में विकसित राष्ट्र इस संकट को भुगत रहे हैं. इसमें न्यूयॉर्क, लंदन, ब्रुसेल्स और मैड्रिड वैश्विक केंद्र बने हुए हैं. अब तक इस घातक वायरस से दुनिया भर में 35 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो गए है और लगभग 2.5 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.

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Published : May 5, 2020, 8:33 PM IST

हैदराबाद : शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रेमडेसिवीर नामक दवा को कोविड-19 के उपचार में सहायक बताकर भरपूर समर्थन किया. हालांकि कुछ सप्ताह पहले ही ट्रंप ने एंटी-मलेरियल दवाई हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को चमत्कार के रूप में कोविड 19 के उपचार के तौर पर पेश किया था.

फिर रविवार को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने बहुत सारे साक्ष्य देते हुए बताया कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति वुहान में एक चीनी लैब में हुई है. 'याद रखें, चीन के पास दुनिया को संक्रमित करने का इतिहास है, और उनके पास घटिया प्रयोगशालाएं चलाने का इतिहास है,' पोम्पिओ ने समाचार चैनल को बताया. दोनों कथन महत्वपूर्ण हैं. ऐतिहासिक रूप से व्यापक बीमारी और महामारी का देशों पर सीधा प्रभाव पड़ता है.

बीमारियों के खिलाफ कई साम्राज्यों के शक्तिहीन शासक और नेता समाप्त हो गए. सबसे कठिन अराजकता के बीच कानून का पालन और इसकी वैधता लागू करना होता है. दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के रेमडेसिवीर पर दिए गए बयान से ठीक दो दिन पहले दुनिया की सबसे पुरानी और प्रमुख चिकित्सा पत्रिका 'लैंसेट' ने रेमडेसिवीर पर एक पेपर निकाला, जहां एक अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया, 'कोई विशिष्ट एंटीवायरल दवा कोरोना रोगियों के उपचार के लिए प्रभावी साबित नहीं हुई है. कोरोना वायरस रोग 2019 (COVID-19) के साथ… बड़े नमूना आकारों के साथ अध्ययन कोविड-19 पर रेमडेसिवीर के प्रभाव की हमारी आगे सूचित करेगा.'

इतिहास में कभी भी मानवता एक इलाज के लिए इतना हताश भी नहीं हुआ, जितना की कोविड-19 ने किया है.

कोविड-19 ने नस्ल, रंग और पंथ में कोई भेद नहीं किया हैं और अमीर और शक्तिशाली देशों को अपने घुटनों पर ला दिया है. वास्तव में विकसित राष्ट्र इस संकट को भुगत रहे हैं. इसमें न्यूयॉर्क, लंदन, ब्रुसेल्स और मैड्रिड वैश्विक केंद्र बने हुए हैं. अब तक इस घातक वायरस से दुनिया भर में 35 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो गए है और लगभग 2.5 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.

कई देशों की सरकारें और गैर-सरकारी संस्थाओं सहित कम से कम सौ इकाइयां वैक्सीन के आविष्कार के लिए प्रतिस्पर्धा में लगी हुई है.

संजय सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के शिक्षक हैं. अनके अनुसार, 'टीके के सफल परीक्षण और उत्पादन के लिए यह प्रतिस्पर्धा उभरते विश्व व्यवस्था पर प्रभाव कायम करेगा. उत्पादन और वितरण पर नियंत्रण सत्ता की राह तय करेगी. एक टीका विश्व व्यवस्था को प्रभावित करेगी और तदनुसार देशों के बीच शक्ति की स्थिति तय करेगी. दूसरे शब्दों में वैक्सीन उत्पादक देश दुनियाभर में प्रभाव पैदा करने की शक्ति आ जाएगी. इसके बाद टीकों की पर्याप्त खेप प्राप्त करने के बाद कुछ भी व्यापार करने को तैयार होंगे.'

बिना किसी संदेह के वैक्सीन उत्पादन की उपलब्ध क्षमता एक महत्वपूर्ण बाधा होगी, क्योंकि वर्तमान में अपेक्षित अंतरराष्ट्रीय मांग 40 प्रतिशत से कम से पूरा नहीं किया जा सकता है. भले ही टीके की उत्पादन के लिए पूरी क्षमता को कोविड 19 वैक्सीन के उपयोग किया जाए.

प्रो. सिंह कहते हैं, 'आपूर्तिकर्ता देश वैक्सीन को लेकर शक्ति नियंत्रण की कोशिश कर सकता है. यदि आविष्कारशील देश के पास पूंजी की आवश्यकता होगी तो हम एक उच्च शक्ति के उद्भव का गवाह बन सकते हैं. यदि आविष्कार और निवेशक देश अलग-अलग हैं, तो शक्ति संतुलन का करने का कार्य देखना होगा. यहां ट्रंप द्वारा दिलचस्प परिदृश्य देखने को मिलेगा.'

चिकित्सा अनुसंधान के वर्तमान चरणों को ध्यान में रखते हुए टीका आविष्कार का सबसे अधिक संभावना है- अमेरिका, यूरोप और चीन में है.

अमेरिका में अगर वैक्सीन ढूंढ ली गई तो अमेरिकी प्रभुत्व को दोहराएगी और सहयोगियों को उनसे जुड़ने के लिए अमेरिका मजबूर करेगी. यह उस प्रक्रिया को कमजोर करेगा, जो द्विध्रुवीय या बहु-शक्ति दुनिया को जन्म देगी.

यूरोप में कोविड 19 वैक्सीन का खोज, अमेरिकी यूरोपीय हितों के लिए अमेरिका को प्रभाव में लेगी. यह यूरोप को रणनीति और शक्ति नियंत्रण में अधिक स्वतंत्र कर सकता है.

दूसरी ओर, चीन द्वारा आविष्कृत टीका अमेरिकी प्रभुत्व के लिए एक तत्काल प्रतिपक्ष स्थापित करेगा और वैश्विक शक्ति होने के चीन के घोषित उद्देश्य को सुदृढ़ करेगा.

ईटीवी भारत ने हाल ही में 2009 में तैयार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आदेश पर रिपोर्ट किया है और इसका केवल आंतरिक जानकारी के लिए कहा गया था. हालांकि विकिलीक्स द्वारा हाल ही में इसे जारी किया गया है.

रिपोर्ट में असमान दुनिया की कल्पना की गई थी. इसमें कहा गया है कि वैक्सीन के निर्माण के बाद विश्व व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन आ जाएगा. यह कहता है कि विकासशील देशों की विशाल आबादी को वैक्सीन काफी देर से मिलेगी. महत्वपूर्ण मात्रा में विकसित देशों की जरूरतों को पहले पूरा किया जाएगा. विकासशील देशों में महामारी की शुरुआत के कई महीनों बाद वैक्सीन दिया जाएगा.

'विकासशील देशों के नेताओं को अपने नागरिकों से काफी सवालों का सामना करना पड़ेगा. वह सभी कमजोर सिद्ध होंगे, जबकि अमीर देशों के नागरिकों को टीका पहले लगाया जाएगा. यह स्थिति विशेष रूप से तनावपूर्ण हो सकती है. यह महामारी गंभीर सामाजिक आर्थिक विघटन का कारण बन सकती है.'

भारत के लिए यह समझदारी होगी कि वह कोविड-19 के समय विश्व व्यवस्था की बदलती संभावनाओं को ध्यान में रखें. प्रतीक्षा करें और स्थिति की समीक्षा करें.

हैदराबाद : शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रेमडेसिवीर नामक दवा को कोविड-19 के उपचार में सहायक बताकर भरपूर समर्थन किया. हालांकि कुछ सप्ताह पहले ही ट्रंप ने एंटी-मलेरियल दवाई हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को चमत्कार के रूप में कोविड 19 के उपचार के तौर पर पेश किया था.

फिर रविवार को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने बहुत सारे साक्ष्य देते हुए बताया कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति वुहान में एक चीनी लैब में हुई है. 'याद रखें, चीन के पास दुनिया को संक्रमित करने का इतिहास है, और उनके पास घटिया प्रयोगशालाएं चलाने का इतिहास है,' पोम्पिओ ने समाचार चैनल को बताया. दोनों कथन महत्वपूर्ण हैं. ऐतिहासिक रूप से व्यापक बीमारी और महामारी का देशों पर सीधा प्रभाव पड़ता है.

बीमारियों के खिलाफ कई साम्राज्यों के शक्तिहीन शासक और नेता समाप्त हो गए. सबसे कठिन अराजकता के बीच कानून का पालन और इसकी वैधता लागू करना होता है. दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के रेमडेसिवीर पर दिए गए बयान से ठीक दो दिन पहले दुनिया की सबसे पुरानी और प्रमुख चिकित्सा पत्रिका 'लैंसेट' ने रेमडेसिवीर पर एक पेपर निकाला, जहां एक अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया, 'कोई विशिष्ट एंटीवायरल दवा कोरोना रोगियों के उपचार के लिए प्रभावी साबित नहीं हुई है. कोरोना वायरस रोग 2019 (COVID-19) के साथ… बड़े नमूना आकारों के साथ अध्ययन कोविड-19 पर रेमडेसिवीर के प्रभाव की हमारी आगे सूचित करेगा.'

इतिहास में कभी भी मानवता एक इलाज के लिए इतना हताश भी नहीं हुआ, जितना की कोविड-19 ने किया है.

कोविड-19 ने नस्ल, रंग और पंथ में कोई भेद नहीं किया हैं और अमीर और शक्तिशाली देशों को अपने घुटनों पर ला दिया है. वास्तव में विकसित राष्ट्र इस संकट को भुगत रहे हैं. इसमें न्यूयॉर्क, लंदन, ब्रुसेल्स और मैड्रिड वैश्विक केंद्र बने हुए हैं. अब तक इस घातक वायरस से दुनिया भर में 35 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो गए है और लगभग 2.5 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.

कई देशों की सरकारें और गैर-सरकारी संस्थाओं सहित कम से कम सौ इकाइयां वैक्सीन के आविष्कार के लिए प्रतिस्पर्धा में लगी हुई है.

संजय सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के शिक्षक हैं. अनके अनुसार, 'टीके के सफल परीक्षण और उत्पादन के लिए यह प्रतिस्पर्धा उभरते विश्व व्यवस्था पर प्रभाव कायम करेगा. उत्पादन और वितरण पर नियंत्रण सत्ता की राह तय करेगी. एक टीका विश्व व्यवस्था को प्रभावित करेगी और तदनुसार देशों के बीच शक्ति की स्थिति तय करेगी. दूसरे शब्दों में वैक्सीन उत्पादक देश दुनियाभर में प्रभाव पैदा करने की शक्ति आ जाएगी. इसके बाद टीकों की पर्याप्त खेप प्राप्त करने के बाद कुछ भी व्यापार करने को तैयार होंगे.'

बिना किसी संदेह के वैक्सीन उत्पादन की उपलब्ध क्षमता एक महत्वपूर्ण बाधा होगी, क्योंकि वर्तमान में अपेक्षित अंतरराष्ट्रीय मांग 40 प्रतिशत से कम से पूरा नहीं किया जा सकता है. भले ही टीके की उत्पादन के लिए पूरी क्षमता को कोविड 19 वैक्सीन के उपयोग किया जाए.

प्रो. सिंह कहते हैं, 'आपूर्तिकर्ता देश वैक्सीन को लेकर शक्ति नियंत्रण की कोशिश कर सकता है. यदि आविष्कारशील देश के पास पूंजी की आवश्यकता होगी तो हम एक उच्च शक्ति के उद्भव का गवाह बन सकते हैं. यदि आविष्कार और निवेशक देश अलग-अलग हैं, तो शक्ति संतुलन का करने का कार्य देखना होगा. यहां ट्रंप द्वारा दिलचस्प परिदृश्य देखने को मिलेगा.'

चिकित्सा अनुसंधान के वर्तमान चरणों को ध्यान में रखते हुए टीका आविष्कार का सबसे अधिक संभावना है- अमेरिका, यूरोप और चीन में है.

अमेरिका में अगर वैक्सीन ढूंढ ली गई तो अमेरिकी प्रभुत्व को दोहराएगी और सहयोगियों को उनसे जुड़ने के लिए अमेरिका मजबूर करेगी. यह उस प्रक्रिया को कमजोर करेगा, जो द्विध्रुवीय या बहु-शक्ति दुनिया को जन्म देगी.

यूरोप में कोविड 19 वैक्सीन का खोज, अमेरिकी यूरोपीय हितों के लिए अमेरिका को प्रभाव में लेगी. यह यूरोप को रणनीति और शक्ति नियंत्रण में अधिक स्वतंत्र कर सकता है.

दूसरी ओर, चीन द्वारा आविष्कृत टीका अमेरिकी प्रभुत्व के लिए एक तत्काल प्रतिपक्ष स्थापित करेगा और वैश्विक शक्ति होने के चीन के घोषित उद्देश्य को सुदृढ़ करेगा.

ईटीवी भारत ने हाल ही में 2009 में तैयार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आदेश पर रिपोर्ट किया है और इसका केवल आंतरिक जानकारी के लिए कहा गया था. हालांकि विकिलीक्स द्वारा हाल ही में इसे जारी किया गया है.

रिपोर्ट में असमान दुनिया की कल्पना की गई थी. इसमें कहा गया है कि वैक्सीन के निर्माण के बाद विश्व व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन आ जाएगा. यह कहता है कि विकासशील देशों की विशाल आबादी को वैक्सीन काफी देर से मिलेगी. महत्वपूर्ण मात्रा में विकसित देशों की जरूरतों को पहले पूरा किया जाएगा. विकासशील देशों में महामारी की शुरुआत के कई महीनों बाद वैक्सीन दिया जाएगा.

'विकासशील देशों के नेताओं को अपने नागरिकों से काफी सवालों का सामना करना पड़ेगा. वह सभी कमजोर सिद्ध होंगे, जबकि अमीर देशों के नागरिकों को टीका पहले लगाया जाएगा. यह स्थिति विशेष रूप से तनावपूर्ण हो सकती है. यह महामारी गंभीर सामाजिक आर्थिक विघटन का कारण बन सकती है.'

भारत के लिए यह समझदारी होगी कि वह कोविड-19 के समय विश्व व्यवस्था की बदलती संभावनाओं को ध्यान में रखें. प्रतीक्षा करें और स्थिति की समीक्षा करें.

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