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सफेद दाग की दवा खोजने वाले वैज्ञानिक को साइंटिस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड - रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान

डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हेमन्त कुमार पांडेय को 'साइंटिस्ट ईयर आफ द अवार्ड' से सम्मानित किया गया है. उन्होंने सफेद दाग की प्रभावी दवा ल्यूकोस्किन की खोज की है.

साइंटिस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड
राजनाथ सिंह ने दिया सम्मान.
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Published : Dec 25, 2020, 4:21 PM IST

नई दिल्ली : आरडीओ के वैज्ञानिकों ने एक लंबे अध्ययन के बाद ल्यूकोस्किन दवा तैयार की थी. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने सफेद दाग की प्रभावी दवा समेत कई हर्बल उत्पाद तैयार करने वाले अपने वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हेमन्त कुमार पांडेय को 'साइंटिस्ट ईयर आफ द अवार्ड' से सम्मानित किया है.

डीआरडीओ भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वरिष्ठ वैज्ञानिक पांडेय को यह सम्मान प्रदान किया. उन्हें पुरस्कार स्वरूप दो लाख रुपये की राशि और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया.

पांडेय डीआरडीओ की पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) स्थिति प्रयोगशाला-रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान (डीआईबीईआर) में वरिष्ठ वैज्ञानिक पद पर तैनात हैं. वह पिछले 25 सालों से हिमालय क्षेत्र की जड़ी-बूटियों पर शोध कर रहे हैं. वैसे तो वह छह दवाओं एवं हर्बल उत्पादों की खोज कर चुके हैं लेकिन, उनकी सबसे बड़ी खोज सफेद दाग यानी ल्यूकोडर्मा की दवा ल्यूकोस्किन की खोज करना है.

राजनाथ सिंह ने दिया सम्मान.
राजनाथ सिंह ने दिया सम्मान.

हिमालयी जड़ी-बूटियों से तैयार यह दवा सफेद दाग की समस्या का प्रभावी निदान करती है. इस तकनीक को कुछ साल पहले नई दिल्ली की एमिल फार्मास्युटिकल को हस्तांतरित किया गया था. मौजूदा समय में यह ल्यूकोस्किन एक प्रभावी दवा के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है.

पढ़ें- कोरोना महामारी : देश में छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी

ल्यूकोस्किन को हिमालयी क्षेत्र में दस हजार फुट की ऊंचाई पर पाए जाने वाले औषधीय पौधे विषनाग से तैयार किया गया है. यह खाने और लगाने वाली, दोनों स्वरूपों में उपलब्ध है. अब तक डेढ़ लाख से अधिक लोगों का इससे उपचार किया जा चुका है.

विश्व में वैसे तो एक से दो फीसदी लोग सफेद दाग की समस्या से प्रभावित हैं लेकिन, भारत में ऐसे लोग तीन से चार फीसदी होने का अनुमान है. इस हिसाब से यह संख्या पांच करोड़ है. यह आटो इम्यून डिसआर्डर है जिसमें त्वचा के रंग के लिए जिम्मेदार कुछ सूक्ष्म कोशिकाएं निष्क्रिय हो जाती हैं. हालांकि, इसका शरीर की क्षमता पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता है.

पांडेय ने इसके अलावा खुजली, दांत दर्द, रेडिएशन से बचाने वाली क्रीम, हर्बल हेल्थ उत्पाद आदि भी तैयार किए हैं. इनमें से ज्यादातर उत्पादों की तकनीक हस्तांतरित हो चुकी है.

नई दिल्ली : आरडीओ के वैज्ञानिकों ने एक लंबे अध्ययन के बाद ल्यूकोस्किन दवा तैयार की थी. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने सफेद दाग की प्रभावी दवा समेत कई हर्बल उत्पाद तैयार करने वाले अपने वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हेमन्त कुमार पांडेय को 'साइंटिस्ट ईयर आफ द अवार्ड' से सम्मानित किया है.

डीआरडीओ भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वरिष्ठ वैज्ञानिक पांडेय को यह सम्मान प्रदान किया. उन्हें पुरस्कार स्वरूप दो लाख रुपये की राशि और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया.

पांडेय डीआरडीओ की पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) स्थिति प्रयोगशाला-रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान (डीआईबीईआर) में वरिष्ठ वैज्ञानिक पद पर तैनात हैं. वह पिछले 25 सालों से हिमालय क्षेत्र की जड़ी-बूटियों पर शोध कर रहे हैं. वैसे तो वह छह दवाओं एवं हर्बल उत्पादों की खोज कर चुके हैं लेकिन, उनकी सबसे बड़ी खोज सफेद दाग यानी ल्यूकोडर्मा की दवा ल्यूकोस्किन की खोज करना है.

राजनाथ सिंह ने दिया सम्मान.
राजनाथ सिंह ने दिया सम्मान.

हिमालयी जड़ी-बूटियों से तैयार यह दवा सफेद दाग की समस्या का प्रभावी निदान करती है. इस तकनीक को कुछ साल पहले नई दिल्ली की एमिल फार्मास्युटिकल को हस्तांतरित किया गया था. मौजूदा समय में यह ल्यूकोस्किन एक प्रभावी दवा के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है.

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ल्यूकोस्किन को हिमालयी क्षेत्र में दस हजार फुट की ऊंचाई पर पाए जाने वाले औषधीय पौधे विषनाग से तैयार किया गया है. यह खाने और लगाने वाली, दोनों स्वरूपों में उपलब्ध है. अब तक डेढ़ लाख से अधिक लोगों का इससे उपचार किया जा चुका है.

विश्व में वैसे तो एक से दो फीसदी लोग सफेद दाग की समस्या से प्रभावित हैं लेकिन, भारत में ऐसे लोग तीन से चार फीसदी होने का अनुमान है. इस हिसाब से यह संख्या पांच करोड़ है. यह आटो इम्यून डिसआर्डर है जिसमें त्वचा के रंग के लिए जिम्मेदार कुछ सूक्ष्म कोशिकाएं निष्क्रिय हो जाती हैं. हालांकि, इसका शरीर की क्षमता पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता है.

पांडेय ने इसके अलावा खुजली, दांत दर्द, रेडिएशन से बचाने वाली क्रीम, हर्बल हेल्थ उत्पाद आदि भी तैयार किए हैं. इनमें से ज्यादातर उत्पादों की तकनीक हस्तांतरित हो चुकी है.

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