हैदराबाद : मौजूदा वक्त में दुनिया के कई देश कोरोना वायरस के प्रकोप से जूझ रहे हैं. इसके प्रसार को रोकने के लिए तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. इस महामारी का दुष्प्रभाव अब लोगों के निजी जीवन पर भी दिखना शुरू हो गया है. घरेलू हिंसा के मामलों में काफी वृद्धि देखी जा रही है.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 17 मार्च से लॉकडाउन के बाद फ्रांस में घरेलू हिंसा के मामलों में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. स्पेन में लॉकडाउन के पहले दो हफ्तों के दौरान घरेलू हिंसा के 18 प्रतिशत अधिक मामले देखने को मिले हैं. वहीं सिंगापुर में भी 30 प्रतिशत अधिक मामले रिपोर्ट हुए है.
क्या कहता है एनएफएचएस-4 का सर्वे
नेशनल हेल्थ एंड फैमिली सर्वे 4 (NFHS-4) ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं अपने बचपन से ही शारीरिक हिंसा का अनुभव कर रही हैं. तीन विवाहित महिलाओं में से एक ने शारीरिक, यौन या भावनात्मक रूप से यौन हिंसा का अनुभव किया है. एनएफएचएस-4 के अनुसार केवल 14 प्रतिशत पीड़ितों ने अब तक हिंसा को रोकने के लिए मदद मांगी है.
घरेलू हिंसा की मुख्य वजह
वर्तमान लॉकडाउन ने परिवारों को उनके घरों में सीमित कर दिया है. उनके बीच थोड़ी सी नोकझोक होने पर ही हिंसा की संभावना अधिक बढ़ जाती है. बेरोजगारी, असुरक्षा, संचार और बच्चों का भविष्य जैसे आम मुद्दे ऐसे तनावपूर्ण संबंधों को जन्म देते हैं जिससे घरेलू हिंसा बढ़ती है.
19 मार्च को स्पेन में एक पति ने पत्नी की अपने बच्चों के सामने हत्या कर दी थी. लॉकडाउन के दौरान यह घरेलू हिंसा का पहला मामला था.
लॉकडाउन के कारण घरेलू हिंसा की कई हेल्पलाइन सेवाएं चालू नहीं है. कोरोना के कारण कई आश्रय गृह भी नए लोगों के लिए बंद कर दिए गए हैं. कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी इस वक्त लोगों से लॉकडाउन का पालन करवाने में वयस्त हैं. साथ ही महामारी में आवश्यक सेवाएं प्रदान कर रही हैं. इन सब वजहों से घरेलू हिंसा के पीड़ितों को मदद नहीं मिल पा रही है.
यूएन ने सरकारों से क्या कहा
यूएन के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सरकारों से कहा कि है वे महिलाओं की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें. सरकारें ऑनलाइन सेवाओं और नागरिक समाज संगठनों में निवेश बढ़ाए और आश्रय गृहों को आवश्यक सेवाओं में रखें. उन्होंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के दोषियों कार्रवाई जारी रखी जाए.
कई देशों ने उठाया यह कदम
स्पेन ने पीड़ितों के लिए होटल के कमरों को शेल्टर में बदलने की योजना बनाई है. स्पेन ने महिलाओं को यह भी आश्वासन दिया है कि उन्हें लॉकडाउन के बीच दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने के लिए घर से बाहर जाने पर जुर्माना या सजा नहीं दी जाएगी. वहीं फ्रांस ने पीड़ितों के लिए एसएमएस सेवा की शुरुआत की है, जिसके जरिए वो अपना शिकायत दर्ज करा सकती हैं.
कनाडा घरेलू हिंसा पीड़ितों के लिए आश्रयों का समर्थन करने के लिए 50 मिलियन डॉलर का निवेश कर रहा है. यूके, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ने भी पीड़ितों को सेवाएं प्रदान करने वाले संगठनों को राशि दी है. ग्रीस में भी कई तरह की पहल की जा रही है.
क्या कर रहा भारत
घरेलू हिंसा पीड़ितों की मदद करने वाली इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर क्राइम प्रिवेंशन एंड विक्टिम केयर (PCVC) ने बताया कि उन्हें पहले दिनभर में पीड़ितों की 10 से 15 शिकायतें मिलती थी, जो अब घटकर 4 हो गई हैं.
23 से 30 मार्च के लॉकडाउन के बीच राष्ट्रीय महिला आयोग को 214 शिकायतें मिली हैं, जिनमें से 58 घरेलू हिंसा के मामले हैं. लॉकडाउन के दौरान मिलने वाली शिकायतों की संख्या आम दिनों के बराबर ही है. बता दें कि महिला आयोग ने इस साल पहले ही घरेलू हिंसा के 861 मामले दर्ज किए हैं.
दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में यह भी पाया गया है कि 88.5 प्रतिशत पीड़ितों को घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 (PWDVA) से महिलाओं के संरक्षण के तहत निवारण तंत्र के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
उत्तर प्रदेश पुलिस की नई पहल
उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक घरेलू हिंसा हेल्पलाइन शुरू की है. जो इस महामारी के दौरान भी महिलाओं की मदद करेगी. इस हेल्पलाइन के माध्यम से महिला पुलिसकर्मी पीड़ित के घर का दौरा करेगी और आरोपी को कड़ी चेतावानी देगी. इस हेल्पलाइन से यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि महिलाओं को तत्काल मदद मिले और अपराधी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए.
जागरूकता फैलाना है जरूरी
- चिकित्सा केंद्रों को जरूरत पड़ने पर घरेलू हिंसा की पीड़ितों को मदद करनी चाहिए.
- घरेलू हिंसा से निपटने के लिए विशेष रूप से आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर जारी किए जाने चाहिए.
- सोशल मीडिया के माध्यम से इस विषय में उपलब्ध सहायता के बारे में जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है.
- यूएन ने भी महिला सुरक्षा को आवश्यक सेवाओं की सूची में रखा है.