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महाराष्ट्र की राजनीति में नई नहीं है चाचा-भतीजे की लड़ाई

महाराष्ट्र की राजनीति में इस समय पवार परिवार की लड़ाई जगजाहिर है लेकिन राज्य की राजनीति में चाचा-भतीजे की लड़ाई नई बात नहीं है. इससे पहले भी कई बार राजनीतिक परिवारों में चाचा-भतीजे के बीच दरार आ चुकी है और इसके कई उदाहरण है. जानें किन परिवारों में सत्ता को लेकर हुई है कलह...

अजित पवार और शरद पवार
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Published : Nov 25, 2019, 11:12 PM IST

नई दिल्ली : शरद पवार-अजित पवार, बाल ठाकरे-राज ठाकरे, गोपनीथ मुंडे-धनंजय मुंडे, इस बात के उदाहरण हैं, महाराष्ट्र में राजनीतिक परिवारों में चाचा-भतीजे की लड़ाई कोई नई नहीं है. इससे पहले भी कई बार राज्य कई बार में परिवारिक विवाद सामने आ चुका है.

वर्तमान मामला पवार परिवार का है जहां चाचा-भतीजे की लड़ाई के चलते महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम ने एक नया मोड़ ले लिया है. इसके चलते राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में काफी बेचैनी है.
महाराष्ट्र में राकांपा से पहले शिवसेना और भाजपा भी चाचा-भतीजे की लड़ाई से दो-चार हो चुकी हैं.

गत शनिवार को अजित पवार पार्टी संरक्षक एवं अपने चाचा शरद पवार के विरुद्ध चले गए और भाजपा के साथ मिलकर राज्य के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर ली.

उनकी बगावत और भाजपा को समर्थन देने के निर्णय ने न सिर्फ राकांपा को झकझोर कर रख दिया, बल्कि एक-दूसरे से करीब से जुड़े परिवार को भी हिला दिया.

अपने भाई अनंत राव की मौत के बाद शरद पवार ने उनके बेटे अजित पवार को अपने संरक्षण में ले लिया था. अजित पवार ने 1991 में पहली बार बारामती से संसदीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. शरद पवार जब 1991 में पीवी नरसिंह राव सरकार में रक्षा मंत्री बने तो अजित ने यह सीट उन्हें दे दी. यह महज शुरुआत थी.

पढ़ें : महाराष्ट्र : अजित पवार बर्खास्त, जयंत पाटिल NCP विधायक दल के नये नेता

सात बार विधायक और पूर्व में उपमुख्यमंत्री रहे अजित पवार राकांपा प्रमुख के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाने लगे, लेकिन तनाव तब शुरू हुआ जब शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने राजनीति में प्रवेश किया.
ठाकरे परिवार का विवाद

इसी तरह का विवाद ठाकरे परिवार में भी लगभग एक दशक पहले हुआ था. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच विवाद के चलते अंतत: शिवसेना दो फाड़ हो गई. बाल ठाकरे ने भतीजे की तुलना में अपने बेटे उद्धव को तवज्जो दी और राज ठाकरे ने नई पार्टी बना ली.
मुंडे परिवार का विवाद

वर्ष 2009 में जब ओबीसी नेता गोपीनाथ मुंडे बीड से विजयी हुए तो ज्यादातर लोगों ने सोचा कि विधानसभा चुनाव में वह अपने भतीजे धनंजय मुंडे को उतारेंगे, लेकिन इसकी जगह उन्होंने अपनी बेटी पंकजा मुंडे को परली सीट से मैदान में उतारा. इससे चाचा-भतीजे के बीच मनभेद और गहरा गया और धनंजय मुंडे राकांपा में शामिल हो गए. बाद में वह विधान परिषद में नेता विपक्ष बने.

पढ़ें : फडणवीस पर हमलावर हुई कांग्रेस, कहा- महाराष्ट्र के लोकतंत्र का चीरहरण

गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद पारिवारिक प्रतिद्वंद्विता अक्सर सुर्खियों में आती रही. 2014 में पंकजा मुंडे ने परली से अपने चचेरे भाई को हरा दिया. वहीं, 2019 में धनंजय मुडे ने बाजी पलटते हुए अपनी चचेरी बहन पंकजा को हरा दिया.

महाराष्ट्र में ऐसे और भी उदाहरण हैं. पिछले महीने हुए विधानसभा चुनाव में शिवसेना के जयदत्त क्षीरसागर को उनके भतीजे एवं राकांपा उम्मीदवार संदीप क्षीरसागर ने बीड सीट से हरा दिया.

नई दिल्ली : शरद पवार-अजित पवार, बाल ठाकरे-राज ठाकरे, गोपनीथ मुंडे-धनंजय मुंडे, इस बात के उदाहरण हैं, महाराष्ट्र में राजनीतिक परिवारों में चाचा-भतीजे की लड़ाई कोई नई नहीं है. इससे पहले भी कई बार राज्य कई बार में परिवारिक विवाद सामने आ चुका है.

वर्तमान मामला पवार परिवार का है जहां चाचा-भतीजे की लड़ाई के चलते महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम ने एक नया मोड़ ले लिया है. इसके चलते राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में काफी बेचैनी है.
महाराष्ट्र में राकांपा से पहले शिवसेना और भाजपा भी चाचा-भतीजे की लड़ाई से दो-चार हो चुकी हैं.

गत शनिवार को अजित पवार पार्टी संरक्षक एवं अपने चाचा शरद पवार के विरुद्ध चले गए और भाजपा के साथ मिलकर राज्य के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर ली.

उनकी बगावत और भाजपा को समर्थन देने के निर्णय ने न सिर्फ राकांपा को झकझोर कर रख दिया, बल्कि एक-दूसरे से करीब से जुड़े परिवार को भी हिला दिया.

अपने भाई अनंत राव की मौत के बाद शरद पवार ने उनके बेटे अजित पवार को अपने संरक्षण में ले लिया था. अजित पवार ने 1991 में पहली बार बारामती से संसदीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. शरद पवार जब 1991 में पीवी नरसिंह राव सरकार में रक्षा मंत्री बने तो अजित ने यह सीट उन्हें दे दी. यह महज शुरुआत थी.

पढ़ें : महाराष्ट्र : अजित पवार बर्खास्त, जयंत पाटिल NCP विधायक दल के नये नेता

सात बार विधायक और पूर्व में उपमुख्यमंत्री रहे अजित पवार राकांपा प्रमुख के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाने लगे, लेकिन तनाव तब शुरू हुआ जब शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने राजनीति में प्रवेश किया.
ठाकरे परिवार का विवाद

इसी तरह का विवाद ठाकरे परिवार में भी लगभग एक दशक पहले हुआ था. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच विवाद के चलते अंतत: शिवसेना दो फाड़ हो गई. बाल ठाकरे ने भतीजे की तुलना में अपने बेटे उद्धव को तवज्जो दी और राज ठाकरे ने नई पार्टी बना ली.
मुंडे परिवार का विवाद

वर्ष 2009 में जब ओबीसी नेता गोपीनाथ मुंडे बीड से विजयी हुए तो ज्यादातर लोगों ने सोचा कि विधानसभा चुनाव में वह अपने भतीजे धनंजय मुंडे को उतारेंगे, लेकिन इसकी जगह उन्होंने अपनी बेटी पंकजा मुंडे को परली सीट से मैदान में उतारा. इससे चाचा-भतीजे के बीच मनभेद और गहरा गया और धनंजय मुंडे राकांपा में शामिल हो गए. बाद में वह विधान परिषद में नेता विपक्ष बने.

पढ़ें : फडणवीस पर हमलावर हुई कांग्रेस, कहा- महाराष्ट्र के लोकतंत्र का चीरहरण

गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद पारिवारिक प्रतिद्वंद्विता अक्सर सुर्खियों में आती रही. 2014 में पंकजा मुंडे ने परली से अपने चचेरे भाई को हरा दिया. वहीं, 2019 में धनंजय मुडे ने बाजी पलटते हुए अपनी चचेरी बहन पंकजा को हरा दिया.

महाराष्ट्र में ऐसे और भी उदाहरण हैं. पिछले महीने हुए विधानसभा चुनाव में शिवसेना के जयदत्त क्षीरसागर को उनके भतीजे एवं राकांपा उम्मीदवार संदीप क्षीरसागर ने बीड सीट से हरा दिया.

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पीटीआई-भाषा संवाददाता 20:19 HRS IST




             
  • न्यायालय ने बेंगलूरू की झीलों के मामले में कर्नाटक सरकार की याचिका खारिज की



नयी दिल्ली, 22 नवबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बेंगलुरू में तीन झीलों के प्रदूषण पर अंकुश लगाने में विफल रहने के कारण 500 करोड़ रूपए एस्क्रो खाते में जमा कराने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश को चुनौती देने वाली कर्नाटक सरकार की याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।



अधिकरण ने अपने छह दिसंबर, 2018 के आदेश में कहा था कि बेंगलुरू की तीन झीलों-बेल्लांदुर, अगारा और वर्थर- की संरक्षा करने और इन झीलों में मिलने वाले बरसाती पानी के नालों को स्वच्छ और अतिक्रमण से मुक्त रखने में बृहद बेंगलुरू महानगर पालिका सहित कर्नाटक सरकार और उसके प्राधिकारी विफल रहे हैं।



अधिकरण ने राज्य सरकार को एक सौ करोड़ रूपए बतौर कार्यसंपादक गारंटी जमा कराने का आदेश दिया था।



शीर्ष अदालत में शुक्रवार को कर्नाटक सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि इतनी बड़ी रकम जमा कराने के लिये शासन को अलग से बजटीय आबंटन करना होगा। उन्होंने कहा कि अधिकरण ने जो राशि जमा कराने का निर्देश दिया है वह न तो जुर्माना है और न ही दंड है।



प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई ने राज्य सरकार की याचिका पर विचार करने से इंकार करते हुये उसे खारिज कर दिया।



अधिकरण ने अपने आदेश में पहले कहा था कि सरकार और बृहद बेंगलुरू महानगर पालिका को तत्काल अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुये आवश्यक कार्य योजना तैयार करने के साथ ही धन उपलब्ध कराना चाहिए। अधिकरण ने यह भी कहा कि इस गंभीर स्थिति के बावजूद सरकार और महानगर पालिका ने प्रदूषण करने वालों या अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में विफल रहे अधिकारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक उपाय नहीं किये। किसी के खिलाफ भी कानूनी कार्यवाही नहीं की गयी और न ही स्थिति से निबटने के लिये भी कोई गंभीर कदम ही उठाये गये हैं।



अधिकरण ने इन झीलों के सफाई कार्य और अतिक्रमण हटाने के अभियान की निगरानी के लिये शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी।



अधिकरण ने यह भी कहा था कि कर्नाटक सरकार पर्यावरण बहाल करने के लिये अंतरिम मुआवजे के रूप में 50 करोड़ रूपए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के यहां जमा करायेगा। बृहद बेंगलुरू महानगर पालिका को इस संबंध में 25 करोड़ रूपए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा कराने होंगे।


Conclusion:
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