हैदराबाद : केंद्र की हालिया 90,000 करोड़ रुपये की लिक्विडिटी लाइन से राज्य बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को अपने बकाया बिलों के एक महत्वपूर्ण हिस्से को चुकाने में मदद मिलेगी. कोविड-19 महामारी के बीच बिजली की कमजोर मांग और नकदी के नुकसान के साथ, इस वित्तीय वर्ष के अंत तक डिस्कॉम पर कर्जा 4.5 लाख करोड़ रुपये का हो सकता है या पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस वित्तीय वर्ष 30 प्रतिशत कर्जे की और बढ़ोत्तरी हो सकती है.
15 राज्यों के 34 डिस्कॉम जो भारत की 80% से अधिक बिजली की मांग पूरा करते है उनके अध्ययन से पता चलता है कि अगर कर्जा इसी तरह बढ़ा तो डिस्कॉम का क्रेडिट प्रोफाइल बिगड़ेगा और अपने अस्तित्व को बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा. आज, केवल पांच में से एक डिस्कॉम अपने स्वयं के नकदी प्रवाह और बजटीय सब्सिडी के जरिये ऋण देने में सक्षम है. पिछले वित्त वर्ष के पहले से ही कम आधार, बढ़ती लागत, और कोरोना महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन की वजह से बिजली की कमजोर मांग के कारण परिदृश्य इस वित्तीय वर्ष में और खराब हो जाएगा.
क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर मनीष गुप्ता ने कहा कि इस वित्तीय वर्ष के अंत तक उच्च लागत और नकदी की कमी के बीच बिजली की गिरती मांग के कारण डिस्कॉम की प्रति-यूनिट 83 पैसे प्रति यूनिट तक बढ़ जाएगी. दूसरे शब्दों में, राज्य सरकारों की उच्च सब्सिडी सहायता के बावजूद, इस वित्तीय वर्ष में नकदी घाटा पिछले वित्त वर्ष की तुलना में लगभग दोगुना होकर 58,000 करोड़ रुपये हो सकता है.
अप्रैल और मई में संयुक्त रूप से बिजली की मांग पांचवी बार गिरी है हालांकि इसके धीरे-धीरे ठीक होने के संकेत हैं. इस वित्तीय वर्ष अखिल भारतीय बिजली की मांग 2 प्रतिशत या 31 बिलियन यूनिट कम हो सकती है क्योंकि औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ता जो 50 से 100% अधिक भुगतान करते हैं और क्रॉस सब्सिडाइज घरेलू और कृषि उपभोक्ता इन्हें लॉकडाउन के कारण सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है.
इसके अलावा बिल कलेक्शन दबाव में होगा क्योंकि आने वाली मंदी के कारण डिस्कॉम ने सभी श्रेणियों के उपभोक्ताओं को भुगतान करने में छूट दी है और इस वजह से सभी बकाया राशि की उपलब्धता में कमी रहेगी. इस वजह से इस वित्तीय वर्ष में नकदी की कमी होगी. घरेलू और कृषि क्षेत्रों से भी नुकसान होगा. महामारी के चलते जो नुकसाना है उसने डिस्कॉम के पहले भारी आर्थिक बोझ को और बढ़ा दिया है. पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन और आरईसी लिमिटेड द्वारा दी जाने वाली नब्बे हजार करोड़ की राशि उनके कर्ज का भार कुछ कम कर सकती है लेकिन ये एक अस्थायी हल है,