रांची: झारखंड के धनबाद जिले के गोविंदपुर प्रखंड में उर्दू प्राथमिक विद्यालय में पारा शिक्षक तौर पर काम कर रहे मोहमम्द अकबर अंसारी ने बताया कि वह 2005 से स्कूल में पढ़ा रहे हैं लेकिन सरकार ने उन्हें अभी तक नियमित नहीं किया है. उन्होंने बताया कि कभी-कभी उनका वेतन चार महीने तक के लिए रुक जाता जाता है. इस कारण उन्हें काफी परेशानी होती है. इन सब परेशानियों के बाद भी वह विद्यालय में बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं.
दिव्यांग शिक्षक मोहम्मद अकबर अंसारी का कहना है कि जब इनका जन्म हुआ था, उसी समय से इनके दोनों हाथ नहीं थे. जन्म लेने के बाद आस-पड़ोस के लोग इस अनोखे बच्चे को देखने के लिए आए तो उन्होंने उनके मां और पिताजी को सलाह दी कि बच्चे को फेंक दीजिए. यह बच्चा रह कर क्या करेगा, कैसे जियेगा.
अकबर ने कहा कि मां आखिर मां होती है और मेरी मां ने कहा कि जैसा भी है, मेरा बच्चा मेरे जिगर का टुकड़ा है. इसे मैं अपने पैरों पर खड़ा करूंगी. फिर मां की देखभाल के बाद बड़े होने पर अकबर धीरे-धीरे स्कूल जाने लगे और आज इस मुकाम तक पहुंच गए हैं.
खुद करते हैं सारा काम
मोहम्मद अकबर अपना सभी काम खुद ही कर लेते हैं जैसे खाना बनाना, नहाना, चापानल चलाना. स्कूल आकर बच्चों की पढ़ाई में लग जाते हैं. पैरों से ब्लैक बोर्ड पर लिख बच्चों को पढ़ाते हैं. पैरों से लिखने के बाद भी लेगराइटिंग या फिर हैंडराइटिंग ऐसी रहती है कि लोग हाथों से भी वैसा नहीं लिख सकते.
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2005 में पारा शिक्षक के पद पर हुए थे बहाल
बता दें, 2005 में मोहम्मद अकबर अंसारी का इस स्कूल में पारा शिक्षक के रूप में चयन हुआ था. तत्कालीन धनबाद उपायुक्त के आदेश पर इनका चयन हुआ था. इनकी शादी 2011 में हुई है. इनकी दो बेटियां भी हैं.
अकबर ने सोशियोलॉजी से बीए किया हुआ है. दिव्यांग होने के बावजूद इन्होंने आज तक दिव्यांगता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. अपने दम पर इन्होंने यह मुकाम हासिल किया और आज एक साधारण व्यक्ति की तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
सरकार से की गुजारिश
प्रशिक्षक मोहम्मद अकबर अंसारी का कहना है कि कभी-कभी दो चार महीने वेतन नहीं मिलता है तो ऐसे में भाड़े के घर में रहना कठिन हो जाता है. मकान मालिक पैसे का दबाव बनाने लगते हैं. ऐसे में सरकार से बस एक ही गुजारिश है कि मुझे नियमित कर दें. जिससे कि मैं अपने और अपने परिवार का भरण-पोषण सही तरीके से कर सकूं.
वहीं अन्य दिव्यांगों पर अकबर ने कहा कि कभी भी हार नहीं माननी चाहिए. मन में अगर कुछ कर गुजरने की मजबूत इच्छाशक्ति हो तो लोग उसे कर ही लेते हैं, जैसा मैंने किया है.