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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : मुआवजा न मिलने से उठ रहा किसानों का भरोसा - प्रोफेसर डांडेकर

भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है, लेकिन देश में आज भी फसलों के प्रति किसानों की चिंताएं पहले जैसी ही बनी हुई हैं. किसानों को हमेशा यह बात परेशान करती रहती है कि फसल तैयार होने से पहले यदि कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो क्या उन्हें उनके परिश्रम का कुछ फल मिल पाएगा या नहीं. सरकार लगातार किसानों की चिंताएं दूर करने के लिए फसल बीमा योजना लाई और समय-समय पर इस योजना में संशोधन भी किया जाता रहा. इसके बावजूद यह योजना किसानों को विश्वास दिलाने में असफल रही है, जिसकी वजह से किसानों के अंदर आपदा के समय में फसलों को लेकर चिंतित रहते हैं.

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Published : Jun 29, 2020, 8:25 PM IST

हैदराबाद : मानसून की शुरुआत के साथ ही देश में खेतों में बोआई शुरू हो जाती है. बोआई के बाद से किसान हमेशा अनिश्चित रहता है कि अगर आपदा आती है तो उसके कठिन परिश्रम का लाभांश का क्या होगा. भारत जैसे कृषि प्रधान देश में हर बार यही कहानी रही है. देश में इस असंगठित क्षेत्र में पहले से मौजूद अपर्याप्त बीमा कवरेज अब परीक्षण की स्थितियों में ईंधन को भी जोड़ रहा है, जिसका भार किसानों पर पड़ेगा.

1979 में प्रोफेसर दांडेकर की सिफारिशों के बाद किसानों की पर्याप्त सुरक्षा के लिए फसल बीमा योजना में कई बदलाव किए गए थे.

फसल सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने चार वर्ष पहले प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की घोषणा की थी और कहा था इससे किसानों की हालात में बहुत सुधार होगा, लेकिन किसानों को आज भी फसलों के लिए पूर्ण बीमा अभी एक सपने की तरह दिखता है!

दशकों से कृषि मंत्रालय फसल बीमा योजना को अधिकतम 23 फीसदी सीमित कर रहा था, इसी मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मोदी की योजना को लेकर घोषणा की कि आने वाले दो से तीन वर्षों में आधे से अधिक किसानों को इस योजना के तहत लाभ दिया जाएगा.

हकीकत में तथ्य बताते हैं कि इस योजना के आने के बाद दो फसलें आ चुकी हैं, लेकिन इस योजना से किसानों के हजारों करोड़ रुपये का भुगतान अब तक नहीं किया गया, जिससे इस योजना से किसानों का विश्वास कम हो रहा है.

पढ़ें : कोविड-19 : ऑनलाइन शिक्षा ही सबसे सुरक्षित विकल्प, करने होंगे कई बदलाव

बीमा की प्रीमियम का समय पर भुगतान करने के बाद भी किसानों को आपदा के समय में भी मामूली प्रतिपूर्ती समय पर नहीं हो पा रही है, जिससे किसान परेशान हो रहे हैं. बता दें कि पिछल वर्ष तक बैंकों द्वारा दिए गए फसली ऋणों में से प्रीमियम की कटौती की गई.

किसानों को फसल बीमा योजना में शामिल करने के लिए नियमों में छूट और कई विकल्प दिए गए हैं. इन सब के बावजूद योजना के प्रति किसानों की रुचि कम होती जा रही है.

आपदा के समय में पूरी फसल बर्बाद हो जाने के मामले में किसानों की सुरक्षा कहां है? जिन कारकों ने फसल बीमा को लगभग चार दशकों से खोखला बना दिया, अब उसके कारण सामने आ रहे हैं.

कर्ज लेने वालों को बीमा कवरेज के आवेदन जैसी अनुचित स्थिति, औसत वार्षिक उपज की गणना, आदि ने लाखों किसानों को योजना के लाभ से वंचित किया है.

कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल बैंक से कर्ज लेने वालों को बीमा कवरेज से सीमित करने की वजह से तीन चौथाई से अधिक किसान इस अवसर वंचित रह जाते हैं.

झारखंड, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में इस योजना में शामिल होने वाले किसानों को अभी तक एक रुपया भी मुआवजा नहीं मिला है. इससे किसान निराश हो रहे हैं.

खामियों को दुरुस्त करने के बजाय सरकार की योजना को स्वैच्छिक और वैकल्पिक बनाकर अपनी जिम्मेदारी को निभाने की प्रवृत्ति जापान, साइप्रस, कनाडा जैसे देशों के सख्त दृष्टिकोण के विपरीत है, जहां फसल बीमा योजनाओं को व्यवस्थित रूप से संचालित किया जा रहा है.

पढ़ें : भारत की अनिच्छा के बीच पाकिस्तान ने फिर खोला करतारपुर कॉरिडोर

देश में किसानों को गंभीर प्राकृतिक आपदाओं के समय में भी तत्काल मदद का आश्वासन दिया जाता है. वहीं ब्राजील में अकाल और बाढ़ के खिलाफ फसलों को सुरक्षित करने की सबसे आदर्श प्रणाली है. भारत में आज तक देश के सभी जिलों में सभी फसलों के लिए बीमा सुनिश्चित करने की स्वामीनाथन की सिफारिश लागू नहीं की गई है.

केंद्र को राज्यों के साथ मिलकर किसानों को फसल के नुकसान से बचाने और लाभदायक कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक कार्य योजना शुरू करनी चाहिए.

देश में मिट्टी की प्रकृति और विभिन्न फसल किस्मों के लिए उनकी उपयुक्तता का मूल्यांकन करना और घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद निर्यात क्षमता का पता लगाना आवश्यक है.

योजना के कार्यान्वयन में भाग लेने वाले किसानों को फसल बीमा सहित सभी प्रकार की सब्सिडी और प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए. इससे देश को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक निश्चित तरीका होगा.

हैदराबाद : मानसून की शुरुआत के साथ ही देश में खेतों में बोआई शुरू हो जाती है. बोआई के बाद से किसान हमेशा अनिश्चित रहता है कि अगर आपदा आती है तो उसके कठिन परिश्रम का लाभांश का क्या होगा. भारत जैसे कृषि प्रधान देश में हर बार यही कहानी रही है. देश में इस असंगठित क्षेत्र में पहले से मौजूद अपर्याप्त बीमा कवरेज अब परीक्षण की स्थितियों में ईंधन को भी जोड़ रहा है, जिसका भार किसानों पर पड़ेगा.

1979 में प्रोफेसर दांडेकर की सिफारिशों के बाद किसानों की पर्याप्त सुरक्षा के लिए फसल बीमा योजना में कई बदलाव किए गए थे.

फसल सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने चार वर्ष पहले प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की घोषणा की थी और कहा था इससे किसानों की हालात में बहुत सुधार होगा, लेकिन किसानों को आज भी फसलों के लिए पूर्ण बीमा अभी एक सपने की तरह दिखता है!

दशकों से कृषि मंत्रालय फसल बीमा योजना को अधिकतम 23 फीसदी सीमित कर रहा था, इसी मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मोदी की योजना को लेकर घोषणा की कि आने वाले दो से तीन वर्षों में आधे से अधिक किसानों को इस योजना के तहत लाभ दिया जाएगा.

हकीकत में तथ्य बताते हैं कि इस योजना के आने के बाद दो फसलें आ चुकी हैं, लेकिन इस योजना से किसानों के हजारों करोड़ रुपये का भुगतान अब तक नहीं किया गया, जिससे इस योजना से किसानों का विश्वास कम हो रहा है.

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बीमा की प्रीमियम का समय पर भुगतान करने के बाद भी किसानों को आपदा के समय में भी मामूली प्रतिपूर्ती समय पर नहीं हो पा रही है, जिससे किसान परेशान हो रहे हैं. बता दें कि पिछल वर्ष तक बैंकों द्वारा दिए गए फसली ऋणों में से प्रीमियम की कटौती की गई.

किसानों को फसल बीमा योजना में शामिल करने के लिए नियमों में छूट और कई विकल्प दिए गए हैं. इन सब के बावजूद योजना के प्रति किसानों की रुचि कम होती जा रही है.

आपदा के समय में पूरी फसल बर्बाद हो जाने के मामले में किसानों की सुरक्षा कहां है? जिन कारकों ने फसल बीमा को लगभग चार दशकों से खोखला बना दिया, अब उसके कारण सामने आ रहे हैं.

कर्ज लेने वालों को बीमा कवरेज के आवेदन जैसी अनुचित स्थिति, औसत वार्षिक उपज की गणना, आदि ने लाखों किसानों को योजना के लाभ से वंचित किया है.

कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल बैंक से कर्ज लेने वालों को बीमा कवरेज से सीमित करने की वजह से तीन चौथाई से अधिक किसान इस अवसर वंचित रह जाते हैं.

झारखंड, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में इस योजना में शामिल होने वाले किसानों को अभी तक एक रुपया भी मुआवजा नहीं मिला है. इससे किसान निराश हो रहे हैं.

खामियों को दुरुस्त करने के बजाय सरकार की योजना को स्वैच्छिक और वैकल्पिक बनाकर अपनी जिम्मेदारी को निभाने की प्रवृत्ति जापान, साइप्रस, कनाडा जैसे देशों के सख्त दृष्टिकोण के विपरीत है, जहां फसल बीमा योजनाओं को व्यवस्थित रूप से संचालित किया जा रहा है.

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देश में किसानों को गंभीर प्राकृतिक आपदाओं के समय में भी तत्काल मदद का आश्वासन दिया जाता है. वहीं ब्राजील में अकाल और बाढ़ के खिलाफ फसलों को सुरक्षित करने की सबसे आदर्श प्रणाली है. भारत में आज तक देश के सभी जिलों में सभी फसलों के लिए बीमा सुनिश्चित करने की स्वामीनाथन की सिफारिश लागू नहीं की गई है.

केंद्र को राज्यों के साथ मिलकर किसानों को फसल के नुकसान से बचाने और लाभदायक कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक कार्य योजना शुरू करनी चाहिए.

देश में मिट्टी की प्रकृति और विभिन्न फसल किस्मों के लिए उनकी उपयुक्तता का मूल्यांकन करना और घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद निर्यात क्षमता का पता लगाना आवश्यक है.

योजना के कार्यान्वयन में भाग लेने वाले किसानों को फसल बीमा सहित सभी प्रकार की सब्सिडी और प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए. इससे देश को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक निश्चित तरीका होगा.

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