नई दिल्ली : 27 मई को सुबह 10:30 बजे असम के तिनसुकिया जिले में एक तेल कुएं से गैस रिसाव होने लगा. यह रिसाव तेल के कुएं पर हो रही मरम्मत के दौरान शुरू हुआ. मरम्मत का काम गुजरात की मेसर्स जॉन एनर्जी (M/s John Energy) नाम की एक कंपनी कर रही थी. इसके बाद सोमवार, आठ जून को कुएं में आग लग गई और तब से यह रास्ते में आने वाली हर चीज को तबाह कर रही है.
इस मामले में कार्रवाई करने में करीब दो हफ्ते की देरी हुई. इस घटना में दो दमकल कर्मियों की मौत हो गई है. ऑयल इंडिया लिमिटेड (Oil India limited) को यह देरी महंगी पड़ सकती है. बता दें कि यह आग करीब 1.5 किलोमीटर के क्षेत्र में फैल गई है.
तेल की खोज में 'ब्लो-आउट' और 'वर्क-ओवर' शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है. 'ब्लो-आउट' का मतलब होता है जब कुएं से निकल रहे तेल या गैस को नियंत्रित नहीं किया जा सकता हो. वहीं कुएं पर चल रहे मरम्मत के काम को 'वर्क-ओवर' कहा जाता है.
असम में हुई घटना 'ब्लो-आउट' वाली स्थिति है. इससे स्थानीय लोगों में बहुत ज्यादा गुस्सा है. इस आग ने मगुरी मोटापुंग की आर्द्रभूमि के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं. यही नहीं इससे डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान को भी खासा नुकसान पहुंचा है.
ऑयल इंडिया लिमिटेड ने बुधवार को अपने दो कर्मचारियों को लापरवाही के लिए निलंबित कर दिया. घटना की जांच के लिए एक पांच सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गई है और मेसर्स जॉन एनर्जी को कारण बताओ नोटिस भेजा गया है.
मेसर्स जॉन एनर्जी को 1987 में स्थापित किया गया था. यह कंपनी 2,500 तेल के कुओं पर काम करती है. जून 2014 में आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में गेल (GAIL) के केजी-बेसिन पाइपलाइन में रिसाव के दौरान इसी कंपनी ने उसपर काबू पाया था.
भारत सरकार की कंपनी ऑयल इंडिया लिमिटेड के पास असम में हो रहे गैस रिसाव को रोकने के लिए तीन वीदेशी कंपनियों में से किसी एक को चुनने का विकल्प था. इनमें Boots and Coots, Wild Well और सिंगापुर की Alert Disaster Control शामिल हैं. रिसाव को रोकने के लिए Alert Disaster Control को चुना गया था.
ऑयल इंडिया लिमिटेड का परिचालन मुख्यालय पूर्वी असम के दुलियाजान में स्थित है. सिंगापुर की कंपनी के विशेषज्ञों को परिचालन मुख्यालय तक पहुंचने में 13 दिन लग गए. वह नौ जून को वहां पहुंचे थे.
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ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि सिंगापुर से विशेषज्ञों को बुलाया गया है. यदि तत्काल अनुमति मिल जाती है तो आग पर कबू पाने में कम से कम एक महीने का समय लगेगा. अगर तत्काल अनुमति नहीं मिलती है तो इससे ज्यादा समय भी लग सकता है.
कुंए तक पहुंच पाने में एक समस्या यह है कि इस घटना में स्थानीय लोगों के घरों और खेतों को काफी नुकसान पहुंचा है. बागजन गांव के लोगों ने इसके विरोध में ऑयल इंडिया लिमिटेड की कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया और वह किसी को भी घटनास्थल के करीब नहीं जाने दे रहे हैं.
2005 में असम के डिकोम में ऐसी ही एक घटना हुई थी. अधिकारियों को आग पर काबू पाने में 45 दिनों का समय लगा था. ऑयल इंडिया लिमिटेड को अपनी कमर कस लेनी चाहिए.