जयपुर : कोरोना संकट के बीच लागू किए गए लॉकडाउन के कारण कई लोगों की नौकरियां चली गईं तो कई काम नहीं मिलने से बेरोजगार हो गए. ऐसे में इन लोगों के सामने परिवार पालने का भी संकट खड़ा हो गया. संकट की इस घड़ी में सरकार की एक योजना ऐसी भी है, जो बेरोजगार लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है. केवल मजदूरों ही नहीं बल्कि पढ़े-लिखे डिग्रीधारी लोगों के लिए भी यह योजना कारगर साबित हो रही है.
जयपुर से 50 किलोमीटर दूर आसलपुर गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना के तहत काम चल रहा है. इस योजना के तहत प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में लोगों को रोजगार मिल रहा है. बता दें कि आसलपुर गांव में मनरेगा के तहत कई डिग्रीधारी भी काम कर रहे हैं.
निजी स्कूलों और प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले डिग्रीधारी लोग भी जब लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए तो उन्हें भी मनरेगा के तहत ही रोजगार मिला. मनरेगा में मिले रोजगार के कारण संकट की इस घड़ी में उनके घरों का चूल्हे जल रहे हैं.
परिवार के सामने आर्थिक संकट
डिग्रीधारी मजदूरों ने बताया कि वे निजी स्कूलों और प्राइवेट कंपनियों में नौकरी करते हैं. लेकिन जबसे लॉकडाउन हुआ है, न तो स्कूल वालों ने तनख्वाह दी और ना ही निजी कंपनियों ने सैलरी दी है. ऐसे में उनके परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था.
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मजदूरों का कहना है कि बच्चों की परवरिश कैसे हो, यही चिंता सताती रहती थी. लॉकडाउन के दौरान जब मनरेगा में रोजगार शुरू हुआ था, तो उन्होंने भी जॉबकार्ड में अपना नाम लिखवाया और उन्हें रोजगार मिल गया. वहीं, अपने डिग्रीधारी होने के बावजूद मनरेगा में काम करने की बात पर उन्होंने कहा कि क्या करें मजबूरी में सही, लेकिन परिवार का पेट तो पालना ही है.
राजस्थान देश का पहला राज्य, जहां श्रमिकों को बड़े पैमाने पर मिल रहा काम
बता दें कि राजस्थान देश का पहला राज्य है, जो संकट की इस घड़ी में ग्रामीण इलाकों में इतने बड़े पैमाने पर मजदूरों को काम मुहैया करा रहा है.
अप्रैल महीने के पहले पखवाड़े के अंत में राजस्थान में जहां मनरेगा श्रमिकों की संख्या केवल 60 हजार थी वहीं करीब 36 दिनों के भीतर 21 मई तक यह संख्या बढ़कर साढ़े 36 लाख को भी पार कर गई. मनरेगा में दूसरे प्रदेशों से आने वाले प्रवासी राजस्थानी मजदूरों को भी उनके गांवों में रोजगार दिया जा रहा है.