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कोविड 19 महामारी का मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा बुरा असर

कोविड -19 महामारी की वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है. लोगों को सामाजिक अलगाव में रहने को कहा गया है. उन्हें एक दूसरे से दूरी बनाकर कोई भी काम करने को कहा जा रहा है. लगातार अलग-अलग रहते हुए मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. कुछ लोगों ने आत्महत्या तक के प्रयास भी किए हैं. इस महामारी की वजह से किस प्रकार की मानसिक स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, इस पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है. पेश है उसका एक अंश.

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Published : Apr 17, 2020, 4:48 PM IST

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सांकेतिक चित्र

कोविड 19 महामारी का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इस पर एक रिपोर्ट पेश की गई है. इसे लैंसेट साइकेट्री ने प्रकाशित किया है. अनुसंधानकर्ताओं ने इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य कर्मियों और जनता पर महामारी पर पड़ने वाले असर के बारे में बताया है.

इस अध्ययन को चिकित्सा विज्ञान अकादमी ने वित्त पोषित किया है. इसमें कोविड 19 की वजह से मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और तंत्रिका-संबंधी प्रभाव का अध्ययन किया गया है. रिपोर्ट महामारी के बड़े दुष्परिणामों की चेतावनी देता है. खासकर बढ़े हुए सामाजिक अलगाव और अकेलेपन की वजह से. इसमें अवसाद, आत्महत्या और इसके प्रयास की बात कही गई है.

मानसिक अवसाद कम करने के लिए तत्काल और लंबी अवधि, दोनों स्तर पर कदम उठाने की बात कही गई है. कहा गया है कि साक्ष्य आधारित कार्यक्रमों पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है.

इसके लिए एक सर्वे कराया गया था. इसमें 24 विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया. इसमें वैसे लोगों को भी शामिल किया गया, जिन्होंने मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का अध्ययन किया हुआ है. इप्सोस एमओआरआई ने 1099 लोगों को सर्वे में शामिल किया. मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान चैरिटी एमक्यू ने 2198 लोगों को शामिल किया था. मार्च के अंतिम पखवाड़े में यह अध्ययन किया गया है. उत्तरदाताओं ने विशिष्ट चिंताओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि उनकी चिंताए बढ़ गईं. अस्वस्थ होने का डर सताता है. मानसिक तौर पर बीमार होने का भाव आता रहता है.

2003 में सिवियर एक्यूट रेस्पिरेट्री सिन्ड्रोम (सार्स) एपिडेमिक की भी रिपोर्ट शामिल की गई है. उस समय मृत्यु दर 10 फीसदी तक चली गई थी. जबकि कोविड 19 में मृत्यु दर अभी एक से दो फीसदी के बीच है. लेकिन उस समय यह बीमारी के बारे में तेजी से फैलने की रिपोर्ट नहीं आई थी. उस समय 8098 मामले सामने आए थे. 774 लोगों की मौत हो गई थी.

अध्ययन पत्र में बताया गया है कि सार्स की वजह से आत्महत्या की दर में 30 फीसदी तक का इजाफा हो गया. खासकर जिनकी उम्र 65 साल से ज्यादा थी. जो लोग ठीक हो गए थे, उनमें से 50 फीसदी लोग चिंतित रहने लगे. 29 फीसदी स्वास्थ्यकर्मियों ने भावनात्मक तनावग्रस्त में रहने की शिकायत की. जो लोग इस गंभीर और जानलेवा बीमारी से बचे, उनमें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का खतरा बना रहा.

रिपोर्ट के अनुसार क्वारेन्टीन और सोशल या फिजीकल डिस्टेंसिंग की वजह से मानसिक तनाव बढ़ गया. आत्महत्या और खुद को नुकसान करने की सोच हावी होने लगी. अल्कोहल का सेवन बढ़ा, चिड़चिड़ापन और उग्र स्वभाव का उभार दिखने लगा. जुआ खेलने की लत बढ़ी. बच्चों से बदसलूकी की शिकायतें बढ़ गईं. सामाजिक वियोग, अर्थ की कमी या एनोमी जैसी समस्याएं सामने आने लगीं. कुछ शिकायतें ऐसी भी रहीं- जैसे - साइबर हमला करना, बोझ महसूस करना, वित्तीय तनाव, शोक, हानि, बेरोजगारी.

पढ़ें- कोरोना लॉकडाउन : स्कूल बंदी से प्रभावित हो रहा बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य

कोविड -19 महामारी का एक बड़ा प्रतिकूल परिणाम सामाजिक अलगाव की संभावना है. अलगाव और अकेलापन (जैसा कि हमारे सर्वेक्षणों में परिलक्षित होता है), जो चिंता, अवसाद, आत्म-क्षति और जीवन भर आत्महत्या के प्रयासों से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है.

इसका मुकाबला करने के लिए शोधकर्ताओं ने चिंता, अवसाद, आत्म-हानि, आत्महत्या और अन्य मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों की दरों की निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए बुलाया, खासकर दोनों तंत्र को समझने और हस्तक्षेप को सूचित करने के लिए. इसे सामान्य लोगों और कमजोर समूहों में अपनाया जाना चाहिए, जिसमें फ्रंटलाइन कार्यकर्ता भी शामिल हैं.

रिपोर्ट में बताया गया है कि मनोवैज्ञानिक उपचार की प्रभावशीलता का अनुकूलन करने के लिए, उन्हें यंत्रवत् होना चाहिए. एक ही समाधान हरेक के लिए नहीं हो सकता है.

मैथ्यू होटोफ, अध्ययन के लेखक, जो किंग्स कॉलेज लंदन के अनुसंधान के उपाध्यक्ष हैं, ने कहा कि वास्तविक समय में क्या हो रहा है, यह जानने से हमें इसकी अनुमति मिल जाएगी. अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए अधिक उपयोगकर्ता के अनुकूल और प्रभावी तरीके डिजाइन करके जवाब देना होगा. उन्होंने कहा कि हालांकि, सबसे ऊपर, हम चाहते हैं कि सभी हस्तक्षेपों को शीर्ष पायदान अनुसंधान द्वारा सूचित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे काम करते हैं.

स्वीडन में उप्साला विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक एमिली होम्स ने कहा कि सरकारों को खोजना होगा, साक्ष्य हमारे समाजों के लचीलेपन को बढ़ाने के तरीकों पर आधारित हैं और उन लोगों के साथ व्यवहार करने के तरीके खोजने होंगे. खासकर जो मानसिक बीमार हैं. इस महामारी से अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में बाहर आने के लिए सीमावर्ती चिकित्सा कर्मचारी और कमजोर समूह जैसे बुजुर्ग और गंभीर मानसिक स्वास्थ्य वाले लोग तीव्र मानसिक स्वास्थ्य सहायता के लिए शर्तों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

लेखकों ने मीडिया को लेकर भी रिपोर्ट शामिल की है. इसमें बताया गया है कि बार-बार ऐसी खबर देखने और उसे चलाने से मानसिक चिंताएं बढ़ती हैं. तनाव बढ़ता है. कौन सा फुटेज चलाना है, इस पर विस्तृत रूप से काम करने की जरूरत है. क्या देखा जाए, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है. साक्ष्य आधारित रिपोर्टिंग की आवश्यकता पर बले देने की बात कही गई है.

अध्ययन के लेखकों ने कुछ हितों की घोषणा की, जिसमें फंडिंग भी शामिल है जो उन्हें इसके बाहर प्राप्त हुआ था.

कोविड 19 महामारी का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इस पर एक रिपोर्ट पेश की गई है. इसे लैंसेट साइकेट्री ने प्रकाशित किया है. अनुसंधानकर्ताओं ने इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य कर्मियों और जनता पर महामारी पर पड़ने वाले असर के बारे में बताया है.

इस अध्ययन को चिकित्सा विज्ञान अकादमी ने वित्त पोषित किया है. इसमें कोविड 19 की वजह से मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और तंत्रिका-संबंधी प्रभाव का अध्ययन किया गया है. रिपोर्ट महामारी के बड़े दुष्परिणामों की चेतावनी देता है. खासकर बढ़े हुए सामाजिक अलगाव और अकेलेपन की वजह से. इसमें अवसाद, आत्महत्या और इसके प्रयास की बात कही गई है.

मानसिक अवसाद कम करने के लिए तत्काल और लंबी अवधि, दोनों स्तर पर कदम उठाने की बात कही गई है. कहा गया है कि साक्ष्य आधारित कार्यक्रमों पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है.

इसके लिए एक सर्वे कराया गया था. इसमें 24 विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया. इसमें वैसे लोगों को भी शामिल किया गया, जिन्होंने मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का अध्ययन किया हुआ है. इप्सोस एमओआरआई ने 1099 लोगों को सर्वे में शामिल किया. मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान चैरिटी एमक्यू ने 2198 लोगों को शामिल किया था. मार्च के अंतिम पखवाड़े में यह अध्ययन किया गया है. उत्तरदाताओं ने विशिष्ट चिंताओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि उनकी चिंताए बढ़ गईं. अस्वस्थ होने का डर सताता है. मानसिक तौर पर बीमार होने का भाव आता रहता है.

2003 में सिवियर एक्यूट रेस्पिरेट्री सिन्ड्रोम (सार्स) एपिडेमिक की भी रिपोर्ट शामिल की गई है. उस समय मृत्यु दर 10 फीसदी तक चली गई थी. जबकि कोविड 19 में मृत्यु दर अभी एक से दो फीसदी के बीच है. लेकिन उस समय यह बीमारी के बारे में तेजी से फैलने की रिपोर्ट नहीं आई थी. उस समय 8098 मामले सामने आए थे. 774 लोगों की मौत हो गई थी.

अध्ययन पत्र में बताया गया है कि सार्स की वजह से आत्महत्या की दर में 30 फीसदी तक का इजाफा हो गया. खासकर जिनकी उम्र 65 साल से ज्यादा थी. जो लोग ठीक हो गए थे, उनमें से 50 फीसदी लोग चिंतित रहने लगे. 29 फीसदी स्वास्थ्यकर्मियों ने भावनात्मक तनावग्रस्त में रहने की शिकायत की. जो लोग इस गंभीर और जानलेवा बीमारी से बचे, उनमें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का खतरा बना रहा.

रिपोर्ट के अनुसार क्वारेन्टीन और सोशल या फिजीकल डिस्टेंसिंग की वजह से मानसिक तनाव बढ़ गया. आत्महत्या और खुद को नुकसान करने की सोच हावी होने लगी. अल्कोहल का सेवन बढ़ा, चिड़चिड़ापन और उग्र स्वभाव का उभार दिखने लगा. जुआ खेलने की लत बढ़ी. बच्चों से बदसलूकी की शिकायतें बढ़ गईं. सामाजिक वियोग, अर्थ की कमी या एनोमी जैसी समस्याएं सामने आने लगीं. कुछ शिकायतें ऐसी भी रहीं- जैसे - साइबर हमला करना, बोझ महसूस करना, वित्तीय तनाव, शोक, हानि, बेरोजगारी.

पढ़ें- कोरोना लॉकडाउन : स्कूल बंदी से प्रभावित हो रहा बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य

कोविड -19 महामारी का एक बड़ा प्रतिकूल परिणाम सामाजिक अलगाव की संभावना है. अलगाव और अकेलापन (जैसा कि हमारे सर्वेक्षणों में परिलक्षित होता है), जो चिंता, अवसाद, आत्म-क्षति और जीवन भर आत्महत्या के प्रयासों से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है.

इसका मुकाबला करने के लिए शोधकर्ताओं ने चिंता, अवसाद, आत्म-हानि, आत्महत्या और अन्य मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों की दरों की निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए बुलाया, खासकर दोनों तंत्र को समझने और हस्तक्षेप को सूचित करने के लिए. इसे सामान्य लोगों और कमजोर समूहों में अपनाया जाना चाहिए, जिसमें फ्रंटलाइन कार्यकर्ता भी शामिल हैं.

रिपोर्ट में बताया गया है कि मनोवैज्ञानिक उपचार की प्रभावशीलता का अनुकूलन करने के लिए, उन्हें यंत्रवत् होना चाहिए. एक ही समाधान हरेक के लिए नहीं हो सकता है.

मैथ्यू होटोफ, अध्ययन के लेखक, जो किंग्स कॉलेज लंदन के अनुसंधान के उपाध्यक्ष हैं, ने कहा कि वास्तविक समय में क्या हो रहा है, यह जानने से हमें इसकी अनुमति मिल जाएगी. अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए अधिक उपयोगकर्ता के अनुकूल और प्रभावी तरीके डिजाइन करके जवाब देना होगा. उन्होंने कहा कि हालांकि, सबसे ऊपर, हम चाहते हैं कि सभी हस्तक्षेपों को शीर्ष पायदान अनुसंधान द्वारा सूचित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे काम करते हैं.

स्वीडन में उप्साला विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक एमिली होम्स ने कहा कि सरकारों को खोजना होगा, साक्ष्य हमारे समाजों के लचीलेपन को बढ़ाने के तरीकों पर आधारित हैं और उन लोगों के साथ व्यवहार करने के तरीके खोजने होंगे. खासकर जो मानसिक बीमार हैं. इस महामारी से अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में बाहर आने के लिए सीमावर्ती चिकित्सा कर्मचारी और कमजोर समूह जैसे बुजुर्ग और गंभीर मानसिक स्वास्थ्य वाले लोग तीव्र मानसिक स्वास्थ्य सहायता के लिए शर्तों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

लेखकों ने मीडिया को लेकर भी रिपोर्ट शामिल की है. इसमें बताया गया है कि बार-बार ऐसी खबर देखने और उसे चलाने से मानसिक चिंताएं बढ़ती हैं. तनाव बढ़ता है. कौन सा फुटेज चलाना है, इस पर विस्तृत रूप से काम करने की जरूरत है. क्या देखा जाए, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है. साक्ष्य आधारित रिपोर्टिंग की आवश्यकता पर बले देने की बात कही गई है.

अध्ययन के लेखकों ने कुछ हितों की घोषणा की, जिसमें फंडिंग भी शामिल है जो उन्हें इसके बाहर प्राप्त हुआ था.

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