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कोरोना महामारी ने की भूटान और असम की सदियों पुरानी दोस्ती तोड़ने की कोशिश

कोविड-19 वैश्विक महामारी ने पश्चिमी असम और भूटान के किसानों के बीच सदियों पुरानी दोस्ती और पारंपरिक संबंधों को तोड़ने की कोशिश की. हालांकि भूटान के अधिकारियों की सतर्कता ने इसे नाकाम बना दिया. इस मामले में पेश है ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की विस्तृत रिपोर्ट...

मरम्मत करते अधिकारी
मरम्मत करते अधिकारी
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Published : Jun 26, 2020, 7:47 PM IST

Updated : Jun 27, 2020, 4:01 PM IST

हैदराबाद : कोविड-19 वैश्विक महामारी विश्वभर में लाखों लोगों की न केवल जान ले रही है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं को भी प्रभावित कर रही है. अगर बात की जाए भारत की तो देश के पूर्वोत्तर राज्यों में कोविड 19 के दुष्प्रभावों का एक अलग ही रूप देखने को मिला. जहां चीन के साथ भारत के सैन्य गतिरोध और नेपाल के साथ सीमावर्ती सीमा पर रह रहे आम लोगों के मन में भय पैदा हो रहा है. वहीं पश्चिमी असम और भूटान के किसानों के बीच सदियों पुरानी दोस्ती और पारंपरिक संबंधों को तोड़ने की कोशिश भी हुई. हालांकि अधिकारियों की सतर्कता ने इसे नाकाम बना दिया.

शुक्रवार को भूटान ने पश्चिमी असम के बोडोलैंड में बक्सा और उदलगुरी जिलों में किसानों के लिए पानी की आपूर्ति बंद कर दी. इस मामले को लेकर भूटान की रॉयल सरकार के विदेश मंत्रालय ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि यह एक झूठा आरोप है. भूटान और असम के मैत्रीपूर्ण संबंधों में दरार डालने के लिए गलतफहमी पैदा की जा रही है.

बता दें कि पश्चिमी असम बोडो जनजाति द्वारा बसाया गया है. इन्हें 'डोंग्स' नामक मानव निर्मित माध्यम से पारंपरिक सिंचाई के अनूठे रूप से खेती करने के लिए जाना जाता है.

मरम्मत करते अधिकारी
मरम्मत करते अधिकारी

पश्चिम असम के मैदानी इलाकों की ओर दक्षिण भूटान के पहाड़ी इलाकों से तेजी से बहने वाली नदियों के पानी के इस जटिल नेटवर्क की मदद से बड़े पैमाने पर धान की खेती की जाती है.

हर वर्ष मानसून से ठीक पहले पश्चिमी असम के किसान भूटान के समदरप जोंगखर जिले में सीमा के पास के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं और नियमित रूप से इन डोंग्स की मरम्मत और रखरखाव करते हैं. लेकिन इस साल, कोविड-19 के कारण लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से भूटान ने संक्रमण के डर से किसी भी किसान को अपने क्षेत्र में प्रवेश देने से मना कर दिया है, जो कि छोटे भूटानी आबादी में कहर बरपा सकता है.

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हालांकि राहत की बात यह है कि इस फैसले के विपरीत, भूटानी अधिकारियों और आम जनता ने अपने दम पर सिंचाई चैनलों की मरम्मत करने का फैसला किया है, जो भारी मानसून की बारिश और जल स्तर में अचानक वृद्धि गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इसके अलावा भूटानी अधिकारी, भारी मशीनरी सहित, किसी भी रुकावट को साफ करने के लिए स्टैंडबाय मोड पर हैं.

पढ़ें- भारत-चीन सीमा विवाद : गलवान घाटी में पीछे हटे चीन के सैनिक

दूसरी तरफ असम के किसानों को लगा कि भूटान जानबूझकर पानी रोक रहा है इसलिए वे सड़कों पर उतर आए.

भूटानी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि भारत में लॉकडाउन और कोविड-19 महामारी के कारण भूटान की सीमाओं को बंद करने के बाद से, असम के किसानों द्वारा खेती के लिए बनाए चैनलों के रखरखाव के लिए भूटान में प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं.

साथ ही उन्होंने असम के किसानों से थोड़ा और सहन करने का अनुरोध किया है क्योंकि भारी मानसून की बारिश के कारण होने वाले व्यवधानों और दोनों देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से उत्पन्न परिचालन संबंधी कठिनाइयों के कारण पानी के प्रवाह में कुछ और देरी हो सकती है.

हैदराबाद : कोविड-19 वैश्विक महामारी विश्वभर में लाखों लोगों की न केवल जान ले रही है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं को भी प्रभावित कर रही है. अगर बात की जाए भारत की तो देश के पूर्वोत्तर राज्यों में कोविड 19 के दुष्प्रभावों का एक अलग ही रूप देखने को मिला. जहां चीन के साथ भारत के सैन्य गतिरोध और नेपाल के साथ सीमावर्ती सीमा पर रह रहे आम लोगों के मन में भय पैदा हो रहा है. वहीं पश्चिमी असम और भूटान के किसानों के बीच सदियों पुरानी दोस्ती और पारंपरिक संबंधों को तोड़ने की कोशिश भी हुई. हालांकि अधिकारियों की सतर्कता ने इसे नाकाम बना दिया.

शुक्रवार को भूटान ने पश्चिमी असम के बोडोलैंड में बक्सा और उदलगुरी जिलों में किसानों के लिए पानी की आपूर्ति बंद कर दी. इस मामले को लेकर भूटान की रॉयल सरकार के विदेश मंत्रालय ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि यह एक झूठा आरोप है. भूटान और असम के मैत्रीपूर्ण संबंधों में दरार डालने के लिए गलतफहमी पैदा की जा रही है.

बता दें कि पश्चिमी असम बोडो जनजाति द्वारा बसाया गया है. इन्हें 'डोंग्स' नामक मानव निर्मित माध्यम से पारंपरिक सिंचाई के अनूठे रूप से खेती करने के लिए जाना जाता है.

मरम्मत करते अधिकारी
मरम्मत करते अधिकारी

पश्चिम असम के मैदानी इलाकों की ओर दक्षिण भूटान के पहाड़ी इलाकों से तेजी से बहने वाली नदियों के पानी के इस जटिल नेटवर्क की मदद से बड़े पैमाने पर धान की खेती की जाती है.

हर वर्ष मानसून से ठीक पहले पश्चिमी असम के किसान भूटान के समदरप जोंगखर जिले में सीमा के पास के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं और नियमित रूप से इन डोंग्स की मरम्मत और रखरखाव करते हैं. लेकिन इस साल, कोविड-19 के कारण लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से भूटान ने संक्रमण के डर से किसी भी किसान को अपने क्षेत्र में प्रवेश देने से मना कर दिया है, जो कि छोटे भूटानी आबादी में कहर बरपा सकता है.

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हालांकि राहत की बात यह है कि इस फैसले के विपरीत, भूटानी अधिकारियों और आम जनता ने अपने दम पर सिंचाई चैनलों की मरम्मत करने का फैसला किया है, जो भारी मानसून की बारिश और जल स्तर में अचानक वृद्धि गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इसके अलावा भूटानी अधिकारी, भारी मशीनरी सहित, किसी भी रुकावट को साफ करने के लिए स्टैंडबाय मोड पर हैं.

पढ़ें- भारत-चीन सीमा विवाद : गलवान घाटी में पीछे हटे चीन के सैनिक

दूसरी तरफ असम के किसानों को लगा कि भूटान जानबूझकर पानी रोक रहा है इसलिए वे सड़कों पर उतर आए.

भूटानी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि भारत में लॉकडाउन और कोविड-19 महामारी के कारण भूटान की सीमाओं को बंद करने के बाद से, असम के किसानों द्वारा खेती के लिए बनाए चैनलों के रखरखाव के लिए भूटान में प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं.

साथ ही उन्होंने असम के किसानों से थोड़ा और सहन करने का अनुरोध किया है क्योंकि भारी मानसून की बारिश के कारण होने वाले व्यवधानों और दोनों देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से उत्पन्न परिचालन संबंधी कठिनाइयों के कारण पानी के प्रवाह में कुछ और देरी हो सकती है.

Last Updated : Jun 27, 2020, 4:01 PM IST
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