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ट्रांसजेंडर पर 2019 के कानून के खिलाफ याचिका पर SC ने केंद्र से जवाब मांगा - ट्रांसजेंडर कानून पर कोर्ट में सुनवाई

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को ट्रांसजेंडर कानून के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुनवाई की और केंद्र सरकार से जवाब देने को कहा है. बता दें कि यह कानून 2019 में लगाया गया था. जानें विस्तार से..

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Published : Jan 28, 2020, 12:02 AM IST

Updated : Feb 28, 2020, 5:30 AM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के संरक्षण के लिए 2019 में लाये गए कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब देने को कहा.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई तथा न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता स्वाति विधान बरुआ की जनहित याचिका पर सामाजिक न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी किया.

याचिका में मांग की गयी है कि ट्रांसजेंडर जन (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 को असंवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि यह ऐसे लोगों के उनके लिंग की स्वयं पहचान के अधिकार को राज्य से प्रमाणपत्र की अनिवार्यता के जरिए पाबंद करता है.

ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के संरक्षण का विषय तब भी उठा था जब शीर्ष अदालत असम में एनआरसी से संबंधित विषय पर सुनवाई कर रही थी.

ये भी पढ़ें- राज्यसभा में ट्रांसजेंडर पर्सन्स बिल पर चर्चा, संजय सिंह ने सरकार को घेरा

नई याचिका में आरोप लगाया गया है कि ऐसे किसी व्यक्ति के लिंग निर्धारण के लिए राज्य से प्रमाणपत्र की अनिवार्यता भेदभावपूर्ण है क्योंकि किसी गैर-ट्रांसजेंडर को अपनी लैंगिक पहचान के प्रमाणन के लिए ऐसी किसी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के संरक्षण के लिए 2019 में लाये गए कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब देने को कहा.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई तथा न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता स्वाति विधान बरुआ की जनहित याचिका पर सामाजिक न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी किया.

याचिका में मांग की गयी है कि ट्रांसजेंडर जन (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 को असंवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि यह ऐसे लोगों के उनके लिंग की स्वयं पहचान के अधिकार को राज्य से प्रमाणपत्र की अनिवार्यता के जरिए पाबंद करता है.

ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के संरक्षण का विषय तब भी उठा था जब शीर्ष अदालत असम में एनआरसी से संबंधित विषय पर सुनवाई कर रही थी.

ये भी पढ़ें- राज्यसभा में ट्रांसजेंडर पर्सन्स बिल पर चर्चा, संजय सिंह ने सरकार को घेरा

नई याचिका में आरोप लगाया गया है कि ऐसे किसी व्यक्ति के लिंग निर्धारण के लिए राज्य से प्रमाणपत्र की अनिवार्यता भेदभावपूर्ण है क्योंकि किसी गैर-ट्रांसजेंडर को अपनी लैंगिक पहचान के प्रमाणन के लिए ऐसी किसी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता.

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पीटीआई-भाषा संवाददाता 21:50 HRS IST




             
  • ट्रांसजेंडर पर 2019 के कानून के खिलाफ याचिका पर न्यायालय ने केंद्र से जवाब मांगा



नयी दिल्ली, 27 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के संरक्षण के लिए 2019 में लाये गये कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब देने को कहा।



प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई तथा न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता स्वाति विधान बरुआ की जनहित याचिका पर सामाजिक न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी किया।



याचिका में मांग की गयी है कि ट्रांसजेंडर जन (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 को असंवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि यह ऐसे लोगों के उनके लिंग की स्वयं पहचान के अधिकार को राज्य से प्रमाणपत्र की अनिवार्यता के जरिये पाबंद करता है।



ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के संरक्षण का विषय तब भी उठा था जब शीर्ष अदालत असम में एनआरसी से संबंधित विषय पर सुनवाई कर रही थी।



नयी याचिका में आरोप लगाया गया है कि ऐसे किसी व्यक्ति के लिंग निर्धारण के लिए राज्य से प्रमाणपत्र की अनिवार्यता भेदभावपूर्ण है क्योंकि किसी गैर-ट्रांसजेंडर को अपनी लैंगिक पहचान के प्रमाणन के लिए ऐसी किसी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता।


Conclusion:
Last Updated : Feb 28, 2020, 5:30 AM IST
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