नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान पिछले साल 19 दिसंबर को मेंगलोर में हुयी हिंसा के मामले में गिरफ्तार पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के 21 सदस्यों को बुधवार को जमानत प्रदान कर दी. इस हिंसा में दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी.
शीर्ष अदालत ने इससे पहले उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ कर्नाटक सरकार की अपील पर इन प्रदर्शनकारियों को दी गयी जमानत पर रोक लगा दी थी.
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई करते हुये अपने आदेश में कहा कि आवेदकों को इस शर्त पर जमानत पर रिहा कर दिया जाये कि वे किसी भी हिंसक गतिविधि या बैठक में शामिल नही होंगे.
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि उच्च न्यायालय की इस टिप्पणी को देखते हुये कि पहली नजर में यह निर्धारित करना संभव नहीं है कि आरोपी मौके पर मौजूद थे और इस टिप्पणी को अंतिम निष्कर्ष माने बगैर, हम आवेदकों को निचली अदालत की संतुष्टि के अनुरूप 25-25 हजार रूपए के मुचलके पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश देना उचित समझते हैं.
न्यायालय ने जमानत देते हुये दो शर्ते लगायी हैं. पहली तो यह कि आरोपी हर दूसरे सोमवार को नजदीकी थाने में हाजिरी देंगे और वे सुनिश्चित करेंगे कि वे किसी हिंसक गतिविधि या बैठक में शामिल नहीं होंगे.
पीठ ने कहा कि हम स्पष्ट करते हैं कि उच्च न्यायालय की तथ्यों और कानून के सवाल पर की गयी टिप्पणी प्रथम दृष्टया है और यह सुनवाई को प्रभावित नहीं करेगी.
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देने के खिलाफ छह मार्च को कर्नाटक सरकार की अपील पर आरोपियों को नोटिस जारी किये थे और उसके आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी.
राज्य सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इससे पहले उच्च न्यायालय के आदेश पर सवाल उठाते हुये पीठ से कहा था कि इन हिंसक प्रदर्शनों के दौरान 56 पुलिसकर्मी जख्मी हो गये थे.
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उन्होंने कहा था कि प्रदर्शनकारियों ने थाने पर हमला किया और उसे आग लगा दी. इस हिंसक विरोध में दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी.
पुलिस ने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को तितर बितर करने के लिये आंसू गैस के गोले दागे थे और लाठी चार्ज करने के बाद हवा में गोलियां भी दागी थीं.