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अब यूरोप में रहेगी बिहार की बेटी श्रेया, लक्जमबर्ग के दंपति ने अडॉप्ट कर कहा- थैंक्स इंडिया

यूरोपीय देश लक्जमबर्ग से बच्चा पाने की चाहत लिए भारत आए एक दंपति की मुराद सोमवार को पूरी हो गई. यूरोपीय दंपति ने बिहार की श्रेया को गोद ले लिया है. तीन वर्षीय श्रेया अब विदेश में रहेगी. पढ़ें पूरी खबर...

बिहार के बेतिया जिले की रहने वाली श्रेया
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Published : Sep 9, 2019, 11:26 PM IST

Updated : Sep 30, 2019, 1:49 AM IST

बेतिया: बिहार के बेतिया जिले की रहने वाली 3 साल की श्रेया अब यूरोप जाएगी. उसे अब नया परिवार नए माता-पिता मिल गए हैं. यूरोप के लक्जमबर्ग से बच्चा पाने की चाहत लिए भारत आए एक दंपति की मुराद सोमवार को पूरी हो गई. उन्होंने श्रेया को गोद ले लिया है. अब श्रेया विदेश में रहेगी. जहां उसका अपना एक अलग नाम, एक अलग पहचान होगी.

डीएम डॉ. नीलेश रामचंद्र देवरे की उपस्थिति में लक्जमबर्ग से आए जीन मार्टिन स्टोफेल और उनकी पत्नी शहरा गजाला हेलने लोबो ने बच्ची को गोद लिया. इस आयोजन को संस्था में उत्सव की तरह मनाया गया. जहां नन्हें मासूमों ने, 'नन्हें-नन्हें बालक, हमें ममता लगे प्यारी, माता-पिता ना बिछड़ें, चाहे बिछड़े दुनिया सारी' गाने पर डांस किया.

जन्मदिन मनाकर किया गया विदा
सोमवार को श्रेया का जन्मदिन था. इस दिन को संस्था ने केक काटकर सेलिब्रेट किया, फिर जिलाधिकारी डॉ. नीलेश रामचंद देवरे ने बच्ची को तिलक लगाकर दंपति को सौंप दिया. गोद में बच्ची को लेकर जीन मार्टिन स्टोफेल और उनकी पत्नी शहरा गजाला के चेहरे खिल उठे.

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जन्मदिन मनाकर किया गया विदा
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जन्मदिन मनाकर किया गया विदा

पढ़ें: दूसरे देशों को मुकाबले भारत की अर्थव्यवस्था मजूबत

'अच्छे अभिभावक बनने की पूरी कोशिश करेंगे'
बच्ची को गोद लेकर दंपति ने कहा कि वे एक अच्छे अभिभावक बनकर इस बच्ची का पालन पोषण करेंगे. उन्होंने अपने आप को सौभाग्यशाली बताया. वहीं, डीएम ने कहा कि विशिष्ट दत्तक संस्था में बच्चों का पालन बेहतर तरीके से हो रहा है. यह खुशी की बात है कि गोद लेने वाले अभिभावकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है.

सात समंदर पार मिला बिहार की बेटी श्रेया को नया घर

यह है पूरी प्रक्रिया:

  • दिल्ली स्थित सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी को ऑनलाइन आवेदन देने के बाद दंपति गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया की शुरुआत करते हैं.
  • इसमें नंबर के अनुसार उन्हें देश के विभिन्न भागों में स्थित दत्तक ग्रहण संस्थान के बच्चों की तस्वीर दिखाकर चयन का ऑफर दिया जाता है.
  • फिर संबंधित जिले के परिवार न्यायालय के माध्यम से कानूनी प्रक्रिया पूरी करवाई जाती है.
  • तब जाकर बच्चे या बच्ची को दंपति को सौंपा जाता है.
  • हर 3 महीने बाद दंपति को कोर्ट जाकर बच्चे का हाल बताना पड़ता है.

गौरतलब है कि 2018 से शुरू हुई विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्था से 7 बच्चों के माता-पिता अब तक मिल चुके हैं. अभी 11 बच्चे-बच्चियां हैं. जिनमें से 5 का चयन विदेशी दंपति कर चुके हैं.

बेतिया: बिहार के बेतिया जिले की रहने वाली 3 साल की श्रेया अब यूरोप जाएगी. उसे अब नया परिवार नए माता-पिता मिल गए हैं. यूरोप के लक्जमबर्ग से बच्चा पाने की चाहत लिए भारत आए एक दंपति की मुराद सोमवार को पूरी हो गई. उन्होंने श्रेया को गोद ले लिया है. अब श्रेया विदेश में रहेगी. जहां उसका अपना एक अलग नाम, एक अलग पहचान होगी.

डीएम डॉ. नीलेश रामचंद्र देवरे की उपस्थिति में लक्जमबर्ग से आए जीन मार्टिन स्टोफेल और उनकी पत्नी शहरा गजाला हेलने लोबो ने बच्ची को गोद लिया. इस आयोजन को संस्था में उत्सव की तरह मनाया गया. जहां नन्हें मासूमों ने, 'नन्हें-नन्हें बालक, हमें ममता लगे प्यारी, माता-पिता ना बिछड़ें, चाहे बिछड़े दुनिया सारी' गाने पर डांस किया.

जन्मदिन मनाकर किया गया विदा
सोमवार को श्रेया का जन्मदिन था. इस दिन को संस्था ने केक काटकर सेलिब्रेट किया, फिर जिलाधिकारी डॉ. नीलेश रामचंद देवरे ने बच्ची को तिलक लगाकर दंपति को सौंप दिया. गोद में बच्ची को लेकर जीन मार्टिन स्टोफेल और उनकी पत्नी शहरा गजाला के चेहरे खिल उठे.

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जन्मदिन मनाकर किया गया विदा
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जन्मदिन मनाकर किया गया विदा

पढ़ें: दूसरे देशों को मुकाबले भारत की अर्थव्यवस्था मजूबत

'अच्छे अभिभावक बनने की पूरी कोशिश करेंगे'
बच्ची को गोद लेकर दंपति ने कहा कि वे एक अच्छे अभिभावक बनकर इस बच्ची का पालन पोषण करेंगे. उन्होंने अपने आप को सौभाग्यशाली बताया. वहीं, डीएम ने कहा कि विशिष्ट दत्तक संस्था में बच्चों का पालन बेहतर तरीके से हो रहा है. यह खुशी की बात है कि गोद लेने वाले अभिभावकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है.

सात समंदर पार मिला बिहार की बेटी श्रेया को नया घर

यह है पूरी प्रक्रिया:

  • दिल्ली स्थित सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी को ऑनलाइन आवेदन देने के बाद दंपति गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया की शुरुआत करते हैं.
  • इसमें नंबर के अनुसार उन्हें देश के विभिन्न भागों में स्थित दत्तक ग्रहण संस्थान के बच्चों की तस्वीर दिखाकर चयन का ऑफर दिया जाता है.
  • फिर संबंधित जिले के परिवार न्यायालय के माध्यम से कानूनी प्रक्रिया पूरी करवाई जाती है.
  • तब जाकर बच्चे या बच्ची को दंपति को सौंपा जाता है.
  • हर 3 महीने बाद दंपति को कोर्ट जाकर बच्चे का हाल बताना पड़ता है.

गौरतलब है कि 2018 से शुरू हुई विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्था से 7 बच्चों के माता-पिता अब तक मिल चुके हैं. अभी 11 बच्चे-बच्चियां हैं. जिनमें से 5 का चयन विदेशी दंपति कर चुके हैं.

Intro:बेतिया: हम नन्हे नन्हे बालक, हमें ममता लगे प्यारी, माता-पिता ना बिछड़े, चाहे बिछड़े दुनिया सारी, मम्मी डैडी का प्यार मम्मी डैडी का प्यार, के बोल पर विशिष्ट दत्तक संस्था बेतिया में छोटे-छोटे बच्चों के भाव नृत्य जैसे ही प्रस्तुत किया गया वहां उपस्थित सभी लोगों की आंखें भर आई, इस बीच चेहरे पर करुणा का भाव और आंखों में बच्ची को पाने की बेचैनी लिए लक्जमबर्ग से आए जीन मार्टिन स्टोफेल और उनकी पत्नी शहरा गजाला हेलने लोबो को जब बेतिया डीएम डॉ. नीलेश रामचंद्र देवरे की उपस्थिति में बच्ची को गोद में लिया तो वह पल एक सपने से कम नहीं था।

इस बीच केक काटकर बच्ची का जन्मदिन मनाया गया, फिर बेतिया डीएम डॉ नीलेश रामचंद देवरे ने बच्ची को तिलक लगा लक्जमबर्ग से आए दंपति को सौंप दिया, गोद में बच्ची को लेकर जीन मार्टिन स्टोफेल और उनकी पत्नी शहरा गजाला हेलने लोबो की खुशी बाहर आ गई थी और खुशी में सभी की आंखों में आंसू आ गए, महज तीन साल की इस छोटी सी गुड़िया को क्या पता था कि अब वह सात समुंदर पार जाने वाली है, उसे क्या पता था कि अब उसका अपना नाम होगा, अपने माता-पिता होंगे और अब अपना आशियाना भी होगा।


Body:वही बच्ची को गोद में लिए दंपति ने कहा कि वे एक अच्छे अभिभावक बनकर इस बच्ची का पालन पोषण करेंगे, अपने आप को सौभाग्यशाली बताया।

बाइट-जीन मार्टिन स्टोफेल, बच्ची के पिता

इस मौके पर बेतिया डीएम डॉ. नीलेश रामचंद्र देवरे ने कहा कि यह विशिष्ट दत्तक संस्था में बच्चों का पालन बेहतर तरीके से हो रहा है और खुशी की बात है कि गोद लेने वाले अभिभावकों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

बाइट- डॉ. नीलेश रामचंद्र देवरे, डीएम, बेतिया


Conclusion:इस प्रक्रिया के तहत आज बेनाम बच्चों को मिल रहा है नाम।


दिल्ली स्थित सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी को ऑनलाइन आवेदन देने के बाद दंपति गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया का शुरुआत करते हैं, इसमें नंबर के अनुसार उन्हें देश के विभिन्न भागों में स्थित दत्तक ग्रहण संस्थान के बच्चों की तस्वीर देखकर उन्हें इस चयन का ऑफर दिया जाता है, फिर संबंधित जिले के परिवार न्यायालय के माध्यम से कानूनी प्रक्रिया पूरी करवाई जाती है, तब बच्चों को गोद में दंपति को दिया जाता है, यही नहीं हर 3 महीने बाद दंपतियों को कोर्ट को बताना पड़ता है बच्चा स्वस्थ है।

2018 से शुरू हुई विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्था से 7 बच्चों के माता-पिता अब तक मिल चुके हैं , अभी 11 बच्चे बच्चियां हैं जिनमें पांच का चयन विदेशी दंपति कर चुके हैं।
Last Updated : Sep 30, 2019, 1:49 AM IST
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