हैदराबाद : गरीबी वह जाल है, जो चुपचाप दुनियाभर के लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करता है. संयुक्त राष्ट्र ने अपनी ताजा रिपोर्ट में इन लाखों गरीब लोगों की दुर्दशा का वर्णन किया है, जिन्हें कोविड-19 महामारी ने गरीबी और भुखमरी की ओर धकेल दिया है. डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि जब तक बुनियादी सावधानियों का पालन नहीं किया जाता कोरोना संकट हालात को और बदतर बनाता जाएगा.
डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना ने अब तक दुनियाभर में लगभग 1.31 करोड़ लोगों को संक्रमित किया है और 5.72 लाख लोगों की जान ले ली है. इसके अलावा इस महामारी ने देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी तहस-नहस कर दिया है. इससे लोगों के जीवन स्तर में भारी गिरावट आई है.
एक अनुमान के अनुसार बीते वर्ष लगभग 69 करोड़ लोग ऐसे थे, जिनके पास पर्याप्त मात्रा में पोषक खाना तक नहीं था, जबकि इस वर्ष कोरोना संकट के कारण यह आंकड़ा और बढ़ गया है. भारतीय चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष की 69 करोड़ की संख्या में लगभग 13.2 मिलियन लोगों का इजाफा हो सकता है.
हाल के अध्ययनों से पता चला है कि दुनियाभर में लगभग 300 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो अपने लिए स्वस्थ, पौष्टिक भोजन नहीं खरीद सकते.
कोरोना के कारण रोजगार के अवसरों में कटौती और वयस्कों के लिए नौकरियों के नुकसान युवा और वृद्ध लोगों को गरीबी जैसे बड़े संकट में डाल सकता है, जबकि कोरोना के दौरान बच्चों के लिए स्कूलों बंद करने से मिड-डे मील योजना के माध्यम से दोपहर को मिलने वाले भोजन खत्म हो गया, जो भुखमरी को बढ़ावा देगा.
बदले में कोरोना ने सरकारों को इस दुविधा में डाल दिया कि यदि वह अपने नागरिकों को उचित पोषण प्रदान करते हैं, तो क्या वह 2030 तक हर वर्ष स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च होने वाली रकम में से कम से कम $ 1,30,000 करोड़ बचा सकते हैं. जैसे-जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था एक गहरी मंदी के रूप में आगे बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे यह खतरा बढ़ता जा रहा है कि 2030 तक हासिल किए जाने वाले सतत विकास लक्ष्य छूट सकते हैं.
कोरोना के अलावा बाढ़ और टिड्डियों जैसी प्राकृतिक आपदाएं भी सामान्य रूप से लोगों की घटती सामाजिक जीवन स्थितियों के लिए गंभीर चिंता का कारण बन रही हैं!
2015 में, 193 देशों ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित 17 सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स एजेंडा की पुष्टि की, जिससे बाकी दुनिया के सभी देशों को प्रगति के पथ पर एकीकृत किया जा सके. कोविड महामारी ने भारत जैसे देशों की पहल को कड़ी टक्कर दी है, जो पंद्रह वर्ष से बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है.
दुनियाभर में गरीबी उन्मूलन पहला लक्ष्य है, जबकि भूख मिटाना दूसरा. अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता और ऐसे लक्ष्य हैं जिनका इसके बाद पालन किया जाता है, जबकि भारत पिछले पांच वर्षों से इन लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश कर रहा है, लोकिन उसके सभी थका देने वाले प्रयास इस घातक वायरस द्वारा धो दिए गए हैं. महामारी के कारण भारत का आर्थिक स्थिति बदतर हालात में आ चुकी है.
एक सप्ताह पहले संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग ने कहा कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिक, जहां दुनिया के आधे कर्मचारी काम करते है, जो लगभग 160 करोड़ श्रमिकों को रोजगार देते हैं. उनकी आय में गिरावट आई, जिसने वैश्विक आर्थिक सूचकांक में भी भारी गिरावट ला दी.
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रिपोर्ट में कहा गया है कि टीकाकरण और विभिन्न अन्य पोषण कार्यक्रमों में आई रुकावटों के कारण इस वर्ष मातृ-मृत्यु में वृद्धि होने भी की आशंका है.
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि लगभग 157 करोड़ बच्चे कोरोना के कारण स्कूली शिक्षा के अवसर से वंचित हो सकते हैं. साथ ही कंप्यूटर और इंटरनेट सुविधाओं की कमी के कारण अरबों बच्चों की शिक्षा को नुकसान पहुंचा है.
इस तरह कोरोना न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि भविष्य को भी प्रभावित कर रहा है. भारत सरकार के थिंक टैंक के रूप में स्थापित नीती अयोग का कहना है कि भारत का सतत विकास लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP)का अतिरिक्त 6.2 प्रतिशत खर्च करे, जो वित्तीय संकट के वर्तमान परिदृश्य में सरकार के लिए एक बहुत बड़ी परीक्षा है, जिसे प्रत्येक देश उजागर कर रहा है!