लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे नागरिक हैं, जो कोरोना वायरस की चपेट में हैं. इसके बाद भी खुलेआम घूम रहे हैं और ठीक भी हो रहे हैं. केजीएमयू में मरीजों के रक्त में एंटीबॉडी की जांच से यह साबित हो रहा है. सवाल यह है कि आखिर बिना लक्षण के संक्रमण या फिर स्वस्थ होने वाले लोग समाज और खुद के परिवार के लिए खतरा नहीं हैं. ऐसे लोगों की पहचान का क्या तरीका हो, स्वास्थ्य अधिकारियों को फिलहाल इसका जवाब नहीं मिला है. केजीएमयू के ब्लड बैंक और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्ष तूलिका चंद्रा ने बचाव के लिए अतिरिक्त सतर्कता बरतने के सुझाव दिए हैं.
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्रा ने कोरोना का संक्रमण बढ़ने के बाद जून और जुलाई के महीने में रक्तदान करने वालों के ब्लड सैंपल का परीक्षण शुरू किया. 1 महीने के अंतराल में 2,121 रक्तदाताओं के ब्लड में एमिनोग्लोबिन जी एंटीबॉडी का परीक्षण किया गया. जांच के लिए कैमेल्यूमिनिसेंस के टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया.
42 लोगों में मिली एंटीबॉडी
इस स्टडी का परीक्षण चौंकाने वाला था. 2,121 व्यक्तियों के ब्लड सैंपल में से 42 व्यक्तियों के ब्लड में कोरोना वायरस से लड़ने वाली प्रतिरोधक क्षमता यानी एंटीबॉडी मिली. चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों की मानें तो इसका अर्थ साफ है कि 42 लोगों को कुछ समय पहले ही कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ, लेकिन इनमें लक्षण नहीं दिखे. इस वजह से इलाज भी नहीं किया गया. फिर भी ये लोग कोरोना को हराकर ठीक हो गए.
डॉ. चंद्रा कहती हैं कि हमने इन ब्लड डोनर्स को एसिंप्टोमेटिक ब्लड डोनर्स की श्रेणी में रखा है. एनालिसिस में यह भी खुलासा हुआ है कि प्रतिरोधक क्षमता पाए जाने वाले ब्लड डोनर्स में ज्यादातर पुरुष शामिल हैं. इसका कारण यह हो सकता है कि अप्रैल और मई में ज्यादातर पुरुष वर्ग ही कतिपय कारणों से घर से बाहर निकले. वहीं महिलाएं अधिकतर घरों के अंदर ही थीं, जिसकी वजह से पुरुषों का एक्सपोजर हुआ और उनमें संक्रमण फैला.
इस उम्र के लोग हैं शामिल
इनमें 18 से 29 वर्ष के लोग शामिल थे. जाहिर है, इस उम्र में स्वत: ही रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है. स्टडी में यह भी खुलासा हुआ है कि 50 वर्ष से अधिक के व्यक्तियों में जिन्होंने भी ब्लड डोनेट किया. उनमें से किसी में भी एंटीबॉडी नहीं पाई गई. इसका मतलब साफ है कि 50 वर्ष से अधिक की आयु वाले व्यक्ति अगर कोरोना वायरस से संक्रमित हुए तो उनमें लक्षण मिले और उन्हें इलाज करवाना पड़ा. जिसकी वजह से उन्हें एसिंप्टोमेटिक की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
स्टडी में यह भी खुलासा हुआ है कि जिन लोगों में अधिक प्रतिरोधक क्षमता मिली है, वह हम मेहनतकश लोग थे. सिंप्टोमेटिक लोगों में लेबर क्लास होने का यह मतलब है कि उनके अंदर अन्य सभी लोगों की अपेक्षा प्रतिरोधक क्षमता अधिक है. लिहाजा यह सावधानी रखने की आवश्यकता है कि जो भी आपके घर में काम करने के लिए आ रहे हैं यदि वह स्वस्थ भी दिख रहे हैं तो भी उनसे सावधान रहें, उनसे उचित दूरी बनाए रखें. हो सकता है कि वो संक्रमित हों,लेकिन उनमें लक्षण न दिख रहे हों.
क्या होती है इम्यूनोग्लोबिन जी एंटीबॉडी
इम्यूनोग्लोबिन जी कोरोनावायरस से लड़ने की क्षमता वाली एंटीबॉडीज होती हैं. ये सिर्फ उन्हीं लोगों में बनती हैं जिनमें कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ है. इसके अलावा ब्लड बैंक में वही व्यक्ति ब्लड डोनेट भी कर सकता है, जो पूरी तरह से स्वस्थ हो, जो कोविड-19 के संक्रमण में आए व्यक्ति के संपर्क में न रहा हो.
कैसे होता है कैमेल्यूमिनिसेंस टेस्ट
कोरोना वायरस से लड़ने वाली इम्यूनोग्लोबिन जी एंटीबॉडी को रक्तदाता में कैमेल्यूमिनिसेंट की ऑटोमेटेड मशीन की मदद से किया जाता है. इसमें कोविड एंटीजन कोटेड किट मौजूद होती है. इसमें ब्लड डाला जाता है, जिसमें एंटीबॉडी की उपस्थिति पता चलती है. इसके साथ ही एंटीबॉडी की मात्रा भी इस मशीन से पता लगाई जा सकती है.
कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग करना बेहद मुश्किल
डॉक्टर चंद्रा के अनुसार इस बात से बिल्कुल नकारा नहीं जा सकता है कि जो एसिंप्टोमेटिक की श्रेणी में व्यक्ति रहे हैं या जिनमें एंटीबॉडी पाई गई है, उन्होंने संक्रमण नहीं फैलाया होगा. इस बात का पता लगाना भी बेहद मुश्किल है कि उन्होंने कितने व्यक्तियों को और कैसे संक्रमण दिया है. ऐसा इसलिए भी है कि ब्लड डोनर को भी यह नहीं पता कि उसे कब संक्रमण हुआ और वह कब ठीक हो गया. इस लिहाज से कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग कर पाना बेहद मुश्किल है.