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छत्तीसगढ़ : 'बोझ' बनी बोझ उठाने वालों की जिंदगी, दाने-दाने को मोहताज हुए कुली

हमने सफर के कितने ठिकाने देखे...बोझ में भी सपने सुहाने देखे...थके बदन के साथ घर लेकर गए खुशियां...अपने कंधों पर जिंदगी के जमाने देखे...और जिन्होंने सबका बोझ उठाया, उनके लिए वक्त क्या हो गया है...देखिए इस रिपोर्ट में...

'Burden' becomes the life of those who carry the burden
'बोझ' बनी बोझ उठाने वालों की जिंदगी, दाने-दाने को मोहताज हुए कुली
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Published : Jul 11, 2020, 4:47 AM IST

बिलासपुर : कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन ने हर तबके को नुकसान पहुंचाया है. सबसे ज्यादा दु:ख तो हर रोज कमाने-खाने वालों के हिस्से आए हैं. प्रवासी मजदूरों का रोजगार छिना तो वे घरों की तरफ लौट गए. ट्रेनों का संचालन रुका तो कुलियों की जिंदगी से हंसी छिन गई. जेब खाली, दूसरा कोई रोजगार नहीं. ईटीवी भारत ने जब व्यथा जानी, तो बोले कुछ नहीं चाहिए बस दूसरा काम मिल जाए. भीख मांगकर, कर्ज लेकर कितने दिन रहेंगे. छत्तीसगढ के बिलासपुर के कुलियों का हाल बहुत खराब है.

कोरोना काल में जूझ रहे कुली.

बिलासपुर रेलवे स्टेशन से करीब 151 कुलियों के परिवार का पेट पलता है. किसी के परिवार में 10 लोग हैं, तो किसी की फैमिली में 14 लोग. उनका कहना है कि बस अब कैसा भी काम मिल जाए, परिवार का पेट पालने के लिए कुछ भी कर लेंगे. बिलासपुर में रहने वाले कुली दिलीप कुमार के घर चावल के अलावा कुछ और नहीं. जब से लॉकडाउन लगा तब से सिर्फ सरकार की तरफ से मिलने वाले चावल और दाल के सहारे हैं. न बच्चों के लिए सब्जी ला पाते हैं और न दूध. हाल ये है कि बच्चे पानी और चावल खाने को मजबूर हैं. दिलीप की पत्नी ने वो खाली बर्तन दिखाए, जिसमें वो कभी सामान रखा करती थी. इनका बस इतना ही कहना है कि रेलवे की तरफ से या तो कुछ मदद हो जाए या फिर दूसरा रोजगार मिल जाए. जिससे परिवार का पेट पाल सकें. इनके लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो रहा है.

'Burden' becomes the life of those who carry the burden
बिलासपुर रेलवे स्टेशन में कुली संघ.

कर्ज लेकर पाल रहे हैं परिवार
ईटीवी भारत ने बिलासपुर रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर काम करने वाले कुलियों से उनकी आपबीती जानी. करीब ढाई महीने के लॉकडाउन के बाद सरकार ने अनलॉक की घोषणा भले कर दी, लेकिन स्थिति अभी भी दयनीय है. ट्रेनें गिन कर चल रही हैं. कुली यात्रियों की राह ताकते हैं लेकिन ज्यादातर दिन खाली हाथ ही घर लौटना पड़ रहा है. किसी ने कहा कि भीख मांगने की नौबत आ गई है, तो किसी ने कहा कि कर्ज लेकर दो वक्त का निवाला नसीब हो रहा है. कुली संघ के जिलाध्यक्ष गणेश राम यादव का कहना है कि अभी की स्थिति ऐसी है कि बहुत मुश्किल से कुछ लोगों को कभी-कभी काम मिल रहा है और ज्यादातर लोग निराश होकर ही लौट रहे हैं.

नहीं चल रही ट्रेन, नहीं मिल रही मजदूरी
शहर के दूसरे कुलियों से बात करने पर उन्होंने बताया कि पहले गाड़ियों के नियमित संचालन से उनके आय का साधन बना रहता था, लेकिन अब गिनी-चुनी गाड़ियां चल रही हैं. इसकी वजह से अब उनके सामने जीवन यापन करने के लिए बड़ी दिक्कत खड़ी हो गई है. हर किसी का परिवार है. घर में बच्चे हैं और किसी के मां-बाप भी हैं. वे कहते हैं कि पैसा आना बंद हो गया है, किसके दर पर हाथ फैलाएं. कुलियों ने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दौर में उन्हें सामाजिक संस्थाओं और व्यक्तिगत तौर पर कुछ सहायता भी मिली, लेकिन अब उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. कोई बताता है कि किसी का घर राज्य सरकार की योजना से मिलने वाले चावल से चल रहा है, तो किसी ने बताया कि उनका राशन कार्ड ही अब तक नहीं बना है, जिसकी वजह से वे दाने-दाने के मोहताज हैं.

रेलवे ऑफिसर ने जताई सहानुभूति
बिलासपुर रेलवे के चीफ पब्लिक रिलेशन ऑफिसर साकेत रंजन का कहना है कि कुलियों के प्रति रेलवे की सहानुभूति है, लिहाजा लॉकडाउन के शुरुआती दौर में रेलवे प्रशासन ने भी कुलियों की मदद की थी. इसके अलावा कई सामाजिक संस्थाओं ने कुलियों के लिए राशन की मदद की. ज्यादा ट्रेनें बंद हैं, ऐसे में उनकी माली हालत खराब होना स्वाभाविक है. अधिकारी ने जहां कुलियों के प्रति संवेदना जताई तो वहीं रेलवे की अपनी मजबूरी गिना दी. उम्मीद है शायद दिन फिरें और इनकी जिंदगी में फिर से रौनक लौटे.

बिलासपुर : कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन ने हर तबके को नुकसान पहुंचाया है. सबसे ज्यादा दु:ख तो हर रोज कमाने-खाने वालों के हिस्से आए हैं. प्रवासी मजदूरों का रोजगार छिना तो वे घरों की तरफ लौट गए. ट्रेनों का संचालन रुका तो कुलियों की जिंदगी से हंसी छिन गई. जेब खाली, दूसरा कोई रोजगार नहीं. ईटीवी भारत ने जब व्यथा जानी, तो बोले कुछ नहीं चाहिए बस दूसरा काम मिल जाए. भीख मांगकर, कर्ज लेकर कितने दिन रहेंगे. छत्तीसगढ के बिलासपुर के कुलियों का हाल बहुत खराब है.

कोरोना काल में जूझ रहे कुली.

बिलासपुर रेलवे स्टेशन से करीब 151 कुलियों के परिवार का पेट पलता है. किसी के परिवार में 10 लोग हैं, तो किसी की फैमिली में 14 लोग. उनका कहना है कि बस अब कैसा भी काम मिल जाए, परिवार का पेट पालने के लिए कुछ भी कर लेंगे. बिलासपुर में रहने वाले कुली दिलीप कुमार के घर चावल के अलावा कुछ और नहीं. जब से लॉकडाउन लगा तब से सिर्फ सरकार की तरफ से मिलने वाले चावल और दाल के सहारे हैं. न बच्चों के लिए सब्जी ला पाते हैं और न दूध. हाल ये है कि बच्चे पानी और चावल खाने को मजबूर हैं. दिलीप की पत्नी ने वो खाली बर्तन दिखाए, जिसमें वो कभी सामान रखा करती थी. इनका बस इतना ही कहना है कि रेलवे की तरफ से या तो कुछ मदद हो जाए या फिर दूसरा रोजगार मिल जाए. जिससे परिवार का पेट पाल सकें. इनके लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो रहा है.

'Burden' becomes the life of those who carry the burden
बिलासपुर रेलवे स्टेशन में कुली संघ.

कर्ज लेकर पाल रहे हैं परिवार
ईटीवी भारत ने बिलासपुर रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर काम करने वाले कुलियों से उनकी आपबीती जानी. करीब ढाई महीने के लॉकडाउन के बाद सरकार ने अनलॉक की घोषणा भले कर दी, लेकिन स्थिति अभी भी दयनीय है. ट्रेनें गिन कर चल रही हैं. कुली यात्रियों की राह ताकते हैं लेकिन ज्यादातर दिन खाली हाथ ही घर लौटना पड़ रहा है. किसी ने कहा कि भीख मांगने की नौबत आ गई है, तो किसी ने कहा कि कर्ज लेकर दो वक्त का निवाला नसीब हो रहा है. कुली संघ के जिलाध्यक्ष गणेश राम यादव का कहना है कि अभी की स्थिति ऐसी है कि बहुत मुश्किल से कुछ लोगों को कभी-कभी काम मिल रहा है और ज्यादातर लोग निराश होकर ही लौट रहे हैं.

नहीं चल रही ट्रेन, नहीं मिल रही मजदूरी
शहर के दूसरे कुलियों से बात करने पर उन्होंने बताया कि पहले गाड़ियों के नियमित संचालन से उनके आय का साधन बना रहता था, लेकिन अब गिनी-चुनी गाड़ियां चल रही हैं. इसकी वजह से अब उनके सामने जीवन यापन करने के लिए बड़ी दिक्कत खड़ी हो गई है. हर किसी का परिवार है. घर में बच्चे हैं और किसी के मां-बाप भी हैं. वे कहते हैं कि पैसा आना बंद हो गया है, किसके दर पर हाथ फैलाएं. कुलियों ने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दौर में उन्हें सामाजिक संस्थाओं और व्यक्तिगत तौर पर कुछ सहायता भी मिली, लेकिन अब उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. कोई बताता है कि किसी का घर राज्य सरकार की योजना से मिलने वाले चावल से चल रहा है, तो किसी ने बताया कि उनका राशन कार्ड ही अब तक नहीं बना है, जिसकी वजह से वे दाने-दाने के मोहताज हैं.

रेलवे ऑफिसर ने जताई सहानुभूति
बिलासपुर रेलवे के चीफ पब्लिक रिलेशन ऑफिसर साकेत रंजन का कहना है कि कुलियों के प्रति रेलवे की सहानुभूति है, लिहाजा लॉकडाउन के शुरुआती दौर में रेलवे प्रशासन ने भी कुलियों की मदद की थी. इसके अलावा कई सामाजिक संस्थाओं ने कुलियों के लिए राशन की मदद की. ज्यादा ट्रेनें बंद हैं, ऐसे में उनकी माली हालत खराब होना स्वाभाविक है. अधिकारी ने जहां कुलियों के प्रति संवेदना जताई तो वहीं रेलवे की अपनी मजबूरी गिना दी. उम्मीद है शायद दिन फिरें और इनकी जिंदगी में फिर से रौनक लौटे.

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