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कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने दुष्कर्म पीड़िता पर की विवादास्पद टिप्पणी

कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश कृष्ण दीक्षित ने आरोपी की अंतरिम जमानत मंजूर करते समय दुष्कर्म पीड़िता के खिलाफ कटु टिप्पणी की. संशोधित आदेश में न्यायाधीश ने कहा कि जैसा कि राज्य सरकार की अर्जी में मांग की गई है, वह 22 जून के आदेश के पृष्ठ संख्या चार के अनुच्छेद तीन (सी) की अंतिम चार पंक्तियों को मिटाना उचित समझते हैं. पढ़ें खबर विस्तार से...

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Published : Jul 5, 2020, 12:16 PM IST

बेंगलुरु : कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश कृष्ण दीक्षित ने आरोपी की अंतरिम जमानत मंजूर करते समय दुष्कर्म पीड़िता के खिलाफ कटु टिप्पणी की. एक अधिकारी ने यह बात कही.

राज्य विधि विभाग के अधिकारी ने कहा, 'राज्य सरकार की एक अर्जी पर 22 जून को आरोपी की अंतरिम जमानत मंजूर करते समय न्यायाधीश ने दुष्कर्म पीड़िता पर विवादास्पद टिप्पणी की, जिस पर वकीलों और देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आपत्ति की है.'

संशोधित आदेश में न्यायाधीश ने कहा कि जैसा कि राज्य सरकार की अर्जी में मांग की गई है, वह 22 जून के आदेश के पृष्ठ संख्या चार के अनुच्छेद तीन (सी) की अंतिम चार पंक्तियों को मिटाना उचित समझते हैं.

आरोपी पीड़िता निजी कंपनी की कर्मचारी है. न्यायाधीश ने उसकी अंतरिम जमानत मंजूर करते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि इससे मामले की जांच प्रभावित नहीं होगी. साथ ही उन्होंने पीड़िता के बारे में भी टिप्पणी की.

पढे़ं : कर्नाटक : हाईकोर्ट ने भर्ती में ट्रांसजेंडरों को शामिल न करने पर मांगा जवाब

उनकी टिप्पणी पर चिंता जताते हुए वकीलों, सामाजिक संगठनों और एडवोकेट अपर्णा भट ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे और न्यायमूर्ति आर. भानुमती, इंदु मल्होत्रा व इंदिरा बनर्जी को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह सभी अदालतों को परामर्श जारी करें कि यौन अपराध पीड़िताओं पर टिप्पणी करते समय मर्यादा को ध्यान में रखा जाए.

बेंगलुरु : कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश कृष्ण दीक्षित ने आरोपी की अंतरिम जमानत मंजूर करते समय दुष्कर्म पीड़िता के खिलाफ कटु टिप्पणी की. एक अधिकारी ने यह बात कही.

राज्य विधि विभाग के अधिकारी ने कहा, 'राज्य सरकार की एक अर्जी पर 22 जून को आरोपी की अंतरिम जमानत मंजूर करते समय न्यायाधीश ने दुष्कर्म पीड़िता पर विवादास्पद टिप्पणी की, जिस पर वकीलों और देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आपत्ति की है.'

संशोधित आदेश में न्यायाधीश ने कहा कि जैसा कि राज्य सरकार की अर्जी में मांग की गई है, वह 22 जून के आदेश के पृष्ठ संख्या चार के अनुच्छेद तीन (सी) की अंतिम चार पंक्तियों को मिटाना उचित समझते हैं.

आरोपी पीड़िता निजी कंपनी की कर्मचारी है. न्यायाधीश ने उसकी अंतरिम जमानत मंजूर करते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि इससे मामले की जांच प्रभावित नहीं होगी. साथ ही उन्होंने पीड़िता के बारे में भी टिप्पणी की.

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उनकी टिप्पणी पर चिंता जताते हुए वकीलों, सामाजिक संगठनों और एडवोकेट अपर्णा भट ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे और न्यायमूर्ति आर. भानुमती, इंदु मल्होत्रा व इंदिरा बनर्जी को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह सभी अदालतों को परामर्श जारी करें कि यौन अपराध पीड़िताओं पर टिप्पणी करते समय मर्यादा को ध्यान में रखा जाए.

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