हैदराबाद : संयुक्त राष्ट्र अपना 75वां स्थापना दिवस मना रहा है. भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर में निहित लक्ष्यों और सिद्धांतों पर पूरी दुनिया को कायम रहना चाहिए. आज का दिन हमें हमारे प्रयासों को फिर से जीवंत और पुनर्जीवित करने का अवसर प्रदान करती है.
भारत ने रेखांकित किया कि इस तरह के परिवर्तनकारी पुनरोद्धार के एजेंडा को व्यापक और समावेशी बनाने की आवश्यकता है. अपनी सार्वभौमिक सदस्यता के साथ महासभा परिवर्तन के इस प्रयास में अहम भूमिका निभा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत का योगदान
- भारत के पास संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में सेवा का एक लंबा और विशिष्ट इतिहास है. भारत ने किसी भी अन्य देश की तुलना में इसमें अधिक योगदान दिया है. सन् 1948 से दुनिया भर में स्थापित 71 संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में से 49 अभियानों में 244,500 से अधिक भारतीय सैनिकों ने सेवाएं दी है.
- वर्तमान में भारत से 6,178 सैन्य दल और पुलिसकर्मी हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में तैनात किया गया है, जो सैन्य योगदान करने वाले सबसे बड़े देशों में चौथा है.
- संयुक्त राष्ट्र के मूल संस्थापक सदस्य के रूप में भारत ने अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए सैनिकों के योगदान के लिए संयुक्त राष्ट्र को मना नहीं किया.
- भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद 1950 में कोरियाई युद्ध के दौरान भारतीय सेना की 60 पैराशूट फील्ड एम्बुलेंस को U.S./R.O.K को मेडिकल कवर प्रदान करने के लिए भेजा गया था. इस यूनिट ने कुल साढ़े तीन साल (नवंबर 1950- मई 1954) कोरिया में सेवा दी. यह संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले किसी भी सैन्य इकाई द्वारा सबसे लंबा एकल कार्यकाल था.
- भारत ने पांच सदस्यीय तटस्थ राष्ट्रीय प्रत्यावर्तन आयोग की अध्यक्षता की जबकि भारतीय कस्टोडियन फोर्स ने साक्षात्कार और प्रत्यावर्तन की प्रक्रिया का पर्यवेक्षण किया.
- 15 नवंबर 1956 से 19 मई 1967 तक भारत के ग्यारह इंफेंट्री बटालियनों ने संयुक्त राष्ट्र आपातकालीन बल (UNEF1) में सेवा प्रदान की ताकि फ्रांस, ब्रिटेन और इजरायल की मिस्र के क्षेत्र से वापसी सुनिश्चित की जा सके. इसके साथ इजरायल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच शांति बनाए रखी जा सके. इस ऑपरेशन में 27 भारतीय संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी.
- 1960 में बेल्जियम शासन खत्म होने के बाद, कांगो ने संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों की तैनाती के लिए अनुरोध किया था.
- 14 जुलाई 1960 और 30 जून 1964 के बीच, दो भारतीय ब्रिगेड ने कांगो में चलाए गए अभियानों में भाग लिया. इस ऑपरेशन में 39 भारतीयों ने अपनी जान गंवाई. कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया को परमवीर चक्र से नवाजा गया.
- संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा के लिए अपना जीवन लगाने के लिए भारत के सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया संयुक्त राष्ट्र के शांतिदूत बने.
- प्रारंभिक संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भारत की भागीदारी के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र के लिए भारतीय सैन्य अधिकारियों का एक बड़ा पूल विकसित हुआ, जिनके व्यावसायिकता और अनुभव ने संयुक्त राष्ट्र के शांति सिद्धांत में योगदान दिया है.
- मेजर जनरल आई जे रिखेइ को 1960-1967 के बीच संयुक्त राष्ट्र महासचिव के पहले सैन्य सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया.
- संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के अनुभव और कार्यों के आधार पर प्रभावी संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के तीन मूल सिद्धांतों की पहचान की गई थी. ये सिद्धांत थे, पार्टियों की सहमति, संचालन में निष्पक्षता और जनादेश की रक्षा करना. इसी के साथ बल का उपयोग (आत्म-रक्षा को छोड़कर) न करना भी एक सिद्धांत था.
- भारतीय सैन्य अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र के शांति सिद्धांत बनाने में योगदान दिया है. संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में दो भारतीय जनरलों ने हाल के वर्षों में सैन्य सलाहकार के रूप में काम किया है और 15 भारतीय जनरलों ने सेना कमांडरों के तौर पर काम किया है.
- शीत युद्ध के अंत में संकट बढ़ गया. 1989-1994 के बीच 20 नए संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान चलाए गए. इन नए कार्यों में भारत का योगदान काफी बढ़ गया.
तीन व्यापक क्षेत्र जहां भारत के योगदानों से फर्क पड़ा :-
- संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना का पहला क्षेत्र राजनीतिक परिवर्तन सुनिश्चित करना है. ऐसे संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में UNPROFOR यूगोस्लाविया शामिल हैं, जिसके पहले फोर्स कमांडर भारत के लेफ्टिनेंट जनरल सतीश नांबियार थे; कंबोडिया में UNTAC; अल साल्वाडोर में ONUSAL; मोजाम्बिक में ONUMOZ; सोमालिया में UNOSOM; अंगोला में UNAVEM; सिएरा लियोन में UNAMSIL; इथियोपिया-इरिट्रिया में UNMEE; और पूर्वी तिमोर में UNMIT शामिल है.
- दूसरा क्षेत्र राष्ट्रीय शासन संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण को प्रोत्साहित और परामर्श देकर शांति निर्माण गतिविधियों को बढ़ाना है. भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन पर महिलाओं को भेजने की एक लंबी परंपरा रही है. 2007 में, संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के लिए एक महिला टुकड़ी तैनात करने वाला भारत पहला देश बना था. लाइबेरिया में गठित इस पुलिस यूनिट ने 24 घंटे की गार्ड की ड्यूटी की और राजधानी मोनरोविया में रात्रि गश्त का संचालन किया और लाइबेरियन पुलिस की क्षमता का निर्माण करने में मदद भी की थी.
- तीसरा क्षेत्र नई चुनौतियों के लिए जमीनी स्तर की प्रतिक्रिया का नेतृत्व करना है. सुरक्षा परिषद में सुधारों को लेकर 2005 में आयोजित यूएन विश्व शिखर सम्मेलन में विश्व नेताओं द्वारा स्थापित किए गए कारणों के चलते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अपने फैसले को लागू करने में अप्रभावी थी.
अंतरराज्यीय संघर्षों में फंसे नागरिकों की सुरक्षा एक मुद्दा है जहां भारत के संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों ने सकारात्मक बदलाव किया है. ड्यूटी से परे जाकर, संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों ने इन संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में चिकित्सा सहायता और इंजीनियरिंग सेवाएं दी.
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भारत की सेना द्वारा संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में दी गई मदद के बावजूद सैनिकों को आतंकवादियों से खतरा है.
सीरिया के गोलन हाइट्स पर तैनात संयुक्त राष्ट्र की डिसएंगेजमेंट ऑब्जर्वर फोर्स (UNDOF) में भारतीय संयुक्त राष्ट्र के सैन्य अधिकारियों को आतंकियों का सामना करना पड़ा था जब 2014 में जब्हात अल-नुसरा आतंकी संगठन ने संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों को बंधक बना लिया गया था.
भारत जैसे सैन्य-योगदान करने वाले देशों के लिए एक बड़ी चुनौती सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों द्वारा उसके सैनिकों की तैनाती से संबंधित सुरक्षा परिषद के फैसले में भाग लेने से इनकार कर देना है.
संयुक्त राष्ट्र के सदस्य-राज्यों के 3802 सैन्य दलों ने 1948 से 2018 के बीच संयुक्त राष्ट्र चार्टर का बचाव करते हुए अपनी जान गवांई है. इनमें से सबसे अधिक संख्या (164) भारत से है.