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राम मंदिर के सहारे खोई जमीन वापस पाने की उम्मीद में कांग्रेस - सुरजेवाला का अयोध्या पर बयान

अयोध्या मामले पर फैसला आ चुका है. फैसला आने के बाद राजनीतिक दलों में इसका श्रेय लेने की होड़ मची है. कांग्रेस भी इसके जरिए पार्टी की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की धारणा वाली छवि को तोड़कर बहुसंख्यक समाज में लोकप्रियता का ग्राफ एक बार फिर से बढ़ाने के अवसर के तौर पर देख रही है. पढ़ें विस्तार से...

कांग्रेस
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Published : Nov 10, 2019, 1:18 PM IST

नई दिल्ली : अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले से भले ही एक बहुत पुराने विवाद का अंत हो गया हो, लेकिन कांग्रेस इसके जरिए अपने बारे में बनी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की धारणा को तोड़कर बहुसंख्यक समाज में लोकप्रियता का ग्राफ एक बार फिर से बढ़ाने के अवसर के तौर पर देख रही है. शायद यही वजह है कि निर्णय आने के तत्काल बाद उसने विवादित स्थान पर मंदिर निर्माण का खुलकर समर्थन किया.

मुख्य विपक्षी पार्टी को लगता है कि न्यायालय के फैसले के बाद अब उस मुद्दे का पूरी तरह पटाक्षेप हो जाएगा जो दशकों से भाजपा के लिए फायदे का मुद्दा रहा है.

फैसला आने के बाद पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से बातचीत में खुलकर कहा कि कांग्रेस अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की पक्षधर है.

वर्ष 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा क्योंकि उस वक्त यह धारणा बनी कि केंद्र की सत्ता में रहते हुए वह इस घटना को रोकने में नाकाम रही.

कांग्रेस का दावा है कि 26 साल पहले उसने अयोध्या मामले में मध्यस्थता की पहल की थी और सबकी सहमति या अदालती निर्णय से राम मंदिर का निर्माण चाहती थी. उसका आरोप है कि भाजपा ने ऐसा होने नहीं दिया.

मुख्य विपक्षी पार्टी के नेताओं ने यह दावा किया कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए एक फरवरी, 1986 को विवादित स्थल पर पूजा की अनुमति मिली और ताला खोला गया. इसके बाद 1989 में शिलान्यास हुआ.

कांग्रेसजनों का यह भी कहना है कि केंद्र में उसकी सरकार रहते हुए जनवरी, 1993 में अयोध्या अधिनियम लेकर आई जिसके तहत 2.77 एकड़ के विवादित क्षेत्र और आसपास की भूमि को अधिग्रहित किया गया. उस वक्त केंद्र में एस बी चव्हाण गृह मंत्री थे.

ये भी पढ़ें : अयोध्या फैसला : सुब्रमण्यम स्वामी ने अशोक सिंघल को भारतरत्न देने की मांग की

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, '26 साल के बाद उच्चतम न्यायालय ने वही किया जो कांग्रेस ने 1993 में अयोध्या अधिनियम के तहत करने की कोशिश की थी जिसमें राम मंदिर, मस्जिद और संग्रहालय बनाया जाना था. लेकिन भाजपा ने भारत सरकार द्वारा मंदिर निर्माण का विरोध किया और यहां तक कि भाजपा अध्यक्ष एस एस भंडारी ने अधिनियम को पक्षपातपूर्ण करार दिया.'

उन्होंने यह दावा भी किया कि 1989 में राजीव गांधी ने मस्जिद के निकट मंदिर निर्माण की अनुमति दी और लोकसभा एवं उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रचार का आगाज राम राज्य की स्थापना के वादे से किया.

ये भी पढ़ें : VHP को उम्मीद, राम जन्मभूमि न्यास के डिजाइन से होगा राम मंदिर निर्माण

राजीव गांधी के कार्यकाल में अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल रहे पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने कहा, ' इस विवादित मुद्दे के चलते पैदा हुए ध्रुवीकरण, सामाजिक एवं धार्मिक विभाजन के कारण कांग्रेस भारी कीमत चुकानी पड़ी है.'

उन्होंने कहा कि इस फैसले से अगर कोई पार्टी राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करती है तो वह अच्छा नहीं करती है.

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि अब लोगों के लिए रोजी-रोटी खासकर अर्थव्यवस्था की स्थिति बड़ा मुद्दा है और यह बात महाराष्ट्र एवं हरियाणा विधानसभा चुनावों में साबित हुई.

ये भी पढ़ें : आडवाणी, रथ यात्रा, लालू और एक गिरफ्तारी, जिससे BJP को हुआ लाभ

पूर्व गृह राज्य मंत्री सुबोधकांत सहाय ने दावा किया कि केंद्र इस मुद्दे का हमेशा सर्वसम्मति से हल चाहती थी, लेकिन भाजपा ने इसका समाधान नहीं होने दिया ताकि वह इसे भावनात्मक एवं वैचारिक मुद्दा बना सके.

पूर्व केंद्रीय मंत्री के के तिवारी कहते हैं, 'उच्चतम न्यायालय ने मामले का समाधान कर दिया है और अब भाजपा इसमें बहुत ज्यादा राजनीति नहीं कर सकती है. कांग्रेस ने इस मुद्दे का ध्रुवीकरण नहीं किया. वह हमेशा से मंदिर के पक्ष में रही.'

नई दिल्ली : अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले से भले ही एक बहुत पुराने विवाद का अंत हो गया हो, लेकिन कांग्रेस इसके जरिए अपने बारे में बनी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की धारणा को तोड़कर बहुसंख्यक समाज में लोकप्रियता का ग्राफ एक बार फिर से बढ़ाने के अवसर के तौर पर देख रही है. शायद यही वजह है कि निर्णय आने के तत्काल बाद उसने विवादित स्थान पर मंदिर निर्माण का खुलकर समर्थन किया.

मुख्य विपक्षी पार्टी को लगता है कि न्यायालय के फैसले के बाद अब उस मुद्दे का पूरी तरह पटाक्षेप हो जाएगा जो दशकों से भाजपा के लिए फायदे का मुद्दा रहा है.

फैसला आने के बाद पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से बातचीत में खुलकर कहा कि कांग्रेस अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की पक्षधर है.

वर्ष 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा क्योंकि उस वक्त यह धारणा बनी कि केंद्र की सत्ता में रहते हुए वह इस घटना को रोकने में नाकाम रही.

कांग्रेस का दावा है कि 26 साल पहले उसने अयोध्या मामले में मध्यस्थता की पहल की थी और सबकी सहमति या अदालती निर्णय से राम मंदिर का निर्माण चाहती थी. उसका आरोप है कि भाजपा ने ऐसा होने नहीं दिया.

मुख्य विपक्षी पार्टी के नेताओं ने यह दावा किया कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए एक फरवरी, 1986 को विवादित स्थल पर पूजा की अनुमति मिली और ताला खोला गया. इसके बाद 1989 में शिलान्यास हुआ.

कांग्रेसजनों का यह भी कहना है कि केंद्र में उसकी सरकार रहते हुए जनवरी, 1993 में अयोध्या अधिनियम लेकर आई जिसके तहत 2.77 एकड़ के विवादित क्षेत्र और आसपास की भूमि को अधिग्रहित किया गया. उस वक्त केंद्र में एस बी चव्हाण गृह मंत्री थे.

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कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, '26 साल के बाद उच्चतम न्यायालय ने वही किया जो कांग्रेस ने 1993 में अयोध्या अधिनियम के तहत करने की कोशिश की थी जिसमें राम मंदिर, मस्जिद और संग्रहालय बनाया जाना था. लेकिन भाजपा ने भारत सरकार द्वारा मंदिर निर्माण का विरोध किया और यहां तक कि भाजपा अध्यक्ष एस एस भंडारी ने अधिनियम को पक्षपातपूर्ण करार दिया.'

उन्होंने यह दावा भी किया कि 1989 में राजीव गांधी ने मस्जिद के निकट मंदिर निर्माण की अनुमति दी और लोकसभा एवं उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रचार का आगाज राम राज्य की स्थापना के वादे से किया.

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राजीव गांधी के कार्यकाल में अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल रहे पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने कहा, ' इस विवादित मुद्दे के चलते पैदा हुए ध्रुवीकरण, सामाजिक एवं धार्मिक विभाजन के कारण कांग्रेस भारी कीमत चुकानी पड़ी है.'

उन्होंने कहा कि इस फैसले से अगर कोई पार्टी राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करती है तो वह अच्छा नहीं करती है.

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि अब लोगों के लिए रोजी-रोटी खासकर अर्थव्यवस्था की स्थिति बड़ा मुद्दा है और यह बात महाराष्ट्र एवं हरियाणा विधानसभा चुनावों में साबित हुई.

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पूर्व गृह राज्य मंत्री सुबोधकांत सहाय ने दावा किया कि केंद्र इस मुद्दे का हमेशा सर्वसम्मति से हल चाहती थी, लेकिन भाजपा ने इसका समाधान नहीं होने दिया ताकि वह इसे भावनात्मक एवं वैचारिक मुद्दा बना सके.

पूर्व केंद्रीय मंत्री के के तिवारी कहते हैं, 'उच्चतम न्यायालय ने मामले का समाधान कर दिया है और अब भाजपा इसमें बहुत ज्यादा राजनीति नहीं कर सकती है. कांग्रेस ने इस मुद्दे का ध्रुवीकरण नहीं किया. वह हमेशा से मंदिर के पक्ष में रही.'

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AYODHYA-CONG-FORTUNES (RPT)
Ayodhya verdict: Cong sees opportunity to reclaim lost ground, endorses construction of temple
By Sanjeev Chopra
(Eds: Deletes para 11)
          New Delhi, Nov 9 (PTI) The Supreme Court giving finality to the Ayodhya dispute could provide an opportunity to the Congress, which was quick to endorse early construction of a Ram temple, to win back the confidence of the majority population and shrug off the charge of "minority appeasement".
          A section of party leaders feel that despite having initiated the process of starting prayers at the disputed site way back in 1986, the Congress has suffered electoral losses in the Hindi heartland, particularly Uttar Pradesh, since the demolition of the Babri mosque under its regime in 1992.
          As the Congress's fortunes dipped, its arch rival BJP emerged as the clear gainer, riding on the Ram Janmabhoomi movement to national limelight and subsequent electoral victories.
          "After 26 years, the Supreme Court has done exactly the same thing that the Congress party had sought to do through an Act of Parliament," Congress chief spokesperson Randeep Surjewala told PTI.
          The leaders claimed that though the Narasimha Rao government was blamed for failing to stall its demolition, it was the Congress which initiated the mediation 26 years ago and wanted the construction of a Ram temple through consensus or through court order.
          But the BJP, which used the matter to polarise people and reap electoral gains, did not support the party's proposals, the leaders said.
          They said it was then prime minister Rajiv Gandhi who on February 1, 1986 got the permission for starting prayers at the disputed site and got the locks opened. Thereafter, the 'shilanyas puja' was held in 1989, they say.
          They also claimed that the then Congress government at the Centre also brought the Ayodhya Act in January 1993 "to acquire the site of the disputed structure (2.77 acres) and suitable adjacent land (64 acres) for setting up a complex" that would have a temple dedicated to Lord Ram. This was stated by then Home Minister S B Chavan in Parliament.
          They said the party-led government planned to build "a Ram temple, a mosque, amenities for pilgrims, a library, museum and other suitable facilities" at the site, but the BJP opposed it then.
          "After 26 years, the Supreme Court has done exactly the same thing that the Congress party had sought to do through an Act of Parliament - The Ayodhya Act in 1993, vis-a-vis construction of the Ram temple, a mosque and a museum, but the BJP had vehemently opposed the construction of the temple by Government of India, with its Vice President S S Bhandari calling the Act as 'partisan, petty and perverse'," Surjewala said.
          Former Law minister Ashwani Kumar, who was additional solicitor general during Rajiv Gandhi's tenure as prime minister, said no political party or side should now reopen or seek to find fault with today's Supreme Court decision, even if it is not seen as perfect.
          "This is particularly so since the Congress has paid a huge price in terms of polarisation, social and religious divides generated by the controversy. Political parties will be doing a great disservice to seek political gains from this judgement," Kumar said.
          He said matters of faith and religious sensitivity are best addressed in a non-partisan judicial forum which has now happened. He added that the SC verdict on the sensitive and contentious issue must now receive a final closure, considering a detailed and credible analysis of the contentions of respective parties.
          Former Union Minister of State for Home Subodh Kant Sahai claims that the Congress always wanted the issue to be resolved through consensus, but the BJP never allowed so and wanted to make it an emotive and ideological issue to gain political dividend.
          The steps taken by the Congress in resolving the issue through consensus came to nought after the demolition of the mosque on December 6, 1992 and all discussion in this regard proved futile, he said.
          "I am happy that the Supreme Court did not talk about rights and considered the issue of faith and centered around temple construction...everyone should maintain peace and calm. But the question remains on whether those associated with the government will be supportive in maintaining peace or will continue to treat it as an issue of victory or loss," Sahai told PTI.
         "The Supreme Court verdict should be limited to temple construction and should bring an end to politics by those who vitiated the atmosphere," he said.
          Congress leader and former Uttar Pradesh minister Pramod Tiwari said, "The BJP has always said that this is an issue of faith and it cannot be resolved in the court.... But the Congress has stood by what it always said. The BJP has been befooling the people by taking advantage of Ayodhya issue, but the court decision has brought an end to the issue and everyone will have to follow it now."
          Another minister in the Rajiv Gandhi government, K K Tewary, said the BJP owes its rise to the Ayodhya movement. "The BJP cannot make much out of it now as the matter now rests after the SC verdict," he said.
          Settling a fractious issue that goes back more than a century, the Supreme Court in a historic verdict on Saturday backed the construction of a Ram temple by a government trust at the disputed site in Ayodhya, and ruled that an alternative five-acre plot must be found for a mosque in the Hindu holy town. PTI SKC SMN
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