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असम समझौते के खंड छह को लागू करने के लिए तय हो समय सीमा : आसू - महासचिव लुरिनज्योति गोगोई

1985 में हस्ताक्षर किए गए असम समझौते के खंड छह को लागू करने के लिए सुझाव देने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 'खंड 6 समिति' के रूप में नामित पैनल का गठन पिछले साल किया गया था. हालांकि उसे अब तक लागू नहीं किया गया.

लुरिनज्योति गोगोई
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Published : Aug 14, 2020, 11:05 PM IST

नई दिल्ली : ऐतिहासिक असम समझौते के कई खंडों के क्रियान्वयन की धीमी प्रगति को देखते हुए, एक सरकारी पैनल ने अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिए दो साल की समय सीमा तय की है.

1985 में हस्ताक्षर किए गए असम समझौते के खंड छह को लागू करने के लिए सुझाव देने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 'खंड छह समिति' के रूप में नामित पैनल का गठन पिछले साल किया गया था.

असम समझौते के खंड छह में असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन के लिए संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा प्रदान की जाती है.

न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बिप्लब कुमार सरमा की अध्यक्षता वाली 14 सदस्यीय समिति ने फरवरी में असम गवर्नमेंट को अपनी सिफारिशें सौंप दीं, लेकिन पांच महीने बीत जाने के बाद भी, केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिशों पर अभी विचार नहीं किया गया है.

समिति ने सुझाव दिया कि रिपोर्ट को जल्द से जल्द और दो साल के भीतर समयबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए. असम के प्रभावशाली छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने हाल ही में समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया है.

खंड 6 की सिफारिशें अब एक सार्वजनिक दस्तावेज हैं, हमने देखा है कि ऐतिहासिक असम समझौते का क्या हुआ था, तीन दशक से अधिक समय पहले हस्ताक्षर किए गए थे. समझौते के कार्यान्वयन के लिए कोई समय सीमा नहीं थी.

AASU के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने कहा, 'समझौते के कई महत्वपूर्ण खंड अभी लागू नहीं किए गए हैं ... सिफारिशों में कई जटिल मुद्दे हो सकते हैं, जिनके लिए समय की आवश्यकता हो सकती है, इसलिए हमने दो साल की समयसीमा निर्धारित की है और सरकार से कई सिफारिशों को लागू करने के लिए कहा है.'

70 के दशक के अंत में प्रभावशाली छात्र संगठन (AASU) द्वारा शुरू किए गए जोरदार विदेशी वरिधी (Anti foreigners ) आंदोलन को समाप्त करने के लिए भारत सरकार, असम सरकार और AASU के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।

आंदोलन ने 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले बांग्लादेश के सभी अवैध अप्रवासियों को पीछे धकेलने का लक्ष्य रखा. गौरतलब है कि AASU खंड छह समिति में एक प्रतिनिधि संस्था भी थी.

समिति ने सिफारिशों के निष्पादन की निगरानी करने और उनके कार्यान्वयन में उत्पन्न होने वाली किसी भी संवैधानिक और कानूनी चुनौतियों को समेटने के लिए एक उपयुक्त समिति गठित करने का भी सुझाव दिया.ॉ

गोगोई ने कहा, 'हमने मांग की है कि समिति में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, गृह मंत्रालय, असम सरकार और अखिल असम छात्र संघ के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि असम समझौते पर 1985 में हस्ताक्षर किए गए थे और तीन दशकों के बाद भी इसे लागू नहीं किया गया है.

पढ़ें - नगा विद्रोह : भारत में सबसे पुराना उग्रवादी अभियान

गोगोई ने कहा, कि हमने देखा है कि सभी सरकार ने हमारे साथ धोखा किया है, इसलिए हमने दो साल की समयसीमा तय की है.

गोगोई ने कहा कि असम समझौते का कार्यान्वयन एक राष्ट्रीय प्रतिबद्धता थी, जिसने 855 से अधिक लोगों के बलिदान को देखा. उन्होंने कहा कि इस समझौते तय सीमा के भीतर लागू करना सरकार का कर्तव्य था.

गोगोई ने कहा कि सरकार को असम समझौते के सभी खंडों को लागू करना चाहिए ... गृह मंत्री ने हमें आश्वासन दिया कि असम समझौते के सभी खंडों को लागू किया जाएगा. हालांकि, उन्होंने यह भी बतया कि समझौते को लागू करने के लिए सरकार की ओर से इच्छाशक्ति की कमी थी.

गोगोई ने कहा, 'सभी सरकार समझौते को लागू करने में विफल रहीं. पिछले कुछ दशकों में सभी राजनीतिक दलों ने विशेष रूप से कांग्रेस, भाजपा और यहां तक कि तीसरे मोर्चे ने भी असम के लोगों को धोखा दिया. वह असम समझौते को लागू करने की कोशिश नहीं कर रहे थे.'

नई दिल्ली : ऐतिहासिक असम समझौते के कई खंडों के क्रियान्वयन की धीमी प्रगति को देखते हुए, एक सरकारी पैनल ने अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिए दो साल की समय सीमा तय की है.

1985 में हस्ताक्षर किए गए असम समझौते के खंड छह को लागू करने के लिए सुझाव देने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 'खंड छह समिति' के रूप में नामित पैनल का गठन पिछले साल किया गया था.

असम समझौते के खंड छह में असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन के लिए संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा प्रदान की जाती है.

न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बिप्लब कुमार सरमा की अध्यक्षता वाली 14 सदस्यीय समिति ने फरवरी में असम गवर्नमेंट को अपनी सिफारिशें सौंप दीं, लेकिन पांच महीने बीत जाने के बाद भी, केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिशों पर अभी विचार नहीं किया गया है.

समिति ने सुझाव दिया कि रिपोर्ट को जल्द से जल्द और दो साल के भीतर समयबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए. असम के प्रभावशाली छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने हाल ही में समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया है.

खंड 6 की सिफारिशें अब एक सार्वजनिक दस्तावेज हैं, हमने देखा है कि ऐतिहासिक असम समझौते का क्या हुआ था, तीन दशक से अधिक समय पहले हस्ताक्षर किए गए थे. समझौते के कार्यान्वयन के लिए कोई समय सीमा नहीं थी.

AASU के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने कहा, 'समझौते के कई महत्वपूर्ण खंड अभी लागू नहीं किए गए हैं ... सिफारिशों में कई जटिल मुद्दे हो सकते हैं, जिनके लिए समय की आवश्यकता हो सकती है, इसलिए हमने दो साल की समयसीमा निर्धारित की है और सरकार से कई सिफारिशों को लागू करने के लिए कहा है.'

70 के दशक के अंत में प्रभावशाली छात्र संगठन (AASU) द्वारा शुरू किए गए जोरदार विदेशी वरिधी (Anti foreigners ) आंदोलन को समाप्त करने के लिए भारत सरकार, असम सरकार और AASU के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।

आंदोलन ने 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले बांग्लादेश के सभी अवैध अप्रवासियों को पीछे धकेलने का लक्ष्य रखा. गौरतलब है कि AASU खंड छह समिति में एक प्रतिनिधि संस्था भी थी.

समिति ने सिफारिशों के निष्पादन की निगरानी करने और उनके कार्यान्वयन में उत्पन्न होने वाली किसी भी संवैधानिक और कानूनी चुनौतियों को समेटने के लिए एक उपयुक्त समिति गठित करने का भी सुझाव दिया.ॉ

गोगोई ने कहा, 'हमने मांग की है कि समिति में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, गृह मंत्रालय, असम सरकार और अखिल असम छात्र संघ के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि असम समझौते पर 1985 में हस्ताक्षर किए गए थे और तीन दशकों के बाद भी इसे लागू नहीं किया गया है.

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गोगोई ने कहा, कि हमने देखा है कि सभी सरकार ने हमारे साथ धोखा किया है, इसलिए हमने दो साल की समयसीमा तय की है.

गोगोई ने कहा कि असम समझौते का कार्यान्वयन एक राष्ट्रीय प्रतिबद्धता थी, जिसने 855 से अधिक लोगों के बलिदान को देखा. उन्होंने कहा कि इस समझौते तय सीमा के भीतर लागू करना सरकार का कर्तव्य था.

गोगोई ने कहा कि सरकार को असम समझौते के सभी खंडों को लागू करना चाहिए ... गृह मंत्री ने हमें आश्वासन दिया कि असम समझौते के सभी खंडों को लागू किया जाएगा. हालांकि, उन्होंने यह भी बतया कि समझौते को लागू करने के लिए सरकार की ओर से इच्छाशक्ति की कमी थी.

गोगोई ने कहा, 'सभी सरकार समझौते को लागू करने में विफल रहीं. पिछले कुछ दशकों में सभी राजनीतिक दलों ने विशेष रूप से कांग्रेस, भाजपा और यहां तक कि तीसरे मोर्चे ने भी असम के लोगों को धोखा दिया. वह असम समझौते को लागू करने की कोशिश नहीं कर रहे थे.'

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