भुवनेश्वर : ओडिशा के गंजम जिले के रहने वाले प्रभाकर प्रधान गांव में दूसरों की जमीन पर खेती करके अपना जीवन यापन करते हैं. जीवन की विषम परिस्थितियों और अभिशाप के बावजूद वह हंसी-खुशी जीवन व्यतीत करने की कोशिश कर रहे हैं.
दरअसल, उनके परिवार में पैदा हुए बच्चों की एक अज्ञात बीमारी के कारण मौत हो जाती है. इस तरह उनके दो बेटों और दो बेटियों की मौत हो चुकी है. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
प्रभाकर का सबसे छोटा बेटा जगन्नाथ भी उसी अज्ञात बीमारी से पीड़ित है. वह दस वर्ष का है और जन्म से ही आस-पास के अस्पतालों में उसका इलाज चल रहा है.
अर्थिक रूप से कमजोर प्रभाकर के सामने इलाज के लिए पैसे जुटा पाना पहाड़ बन गया है. प्रभाकर के ऊपर अब सात लाख रुपये का कर्ज है और जगन्नाथ के उपचार के लिए पैसे इकट्ठा करने के सभी संसाधन खत्म हो गए हैं.
जगन्नाथ के माता-पिता को उम्मीद है कि अगर सरकार की ओर से उन्हें वित्तीय सहायता के साथ उन्नत चिकित्सा उपलब्ध कराई जाए तो उनके बेटे की जान बचाई जा सकती है.
बीमार जगन्नाथ ने अब स्कूल जाना भी बंद कर दिया है. मोहल्ले के बच्चों ने बीमार होने के डर से उससे दूरी बना ली है, लेकिन फिर भी कुछ बच्चे उसके साथ खेलते हैं.
सरकार की योजानाओं की बात करें तो वे प्रभाकर के परिवार तक नहीं पहुंच पाई हैं. प्रभाकर ने आरोप लगाया कि वह अपनी व्यथा लेकर जिलाधिकारी और अन्य लोगों के पास गए, लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा हाथ लगी.
जगन्नाथ के पूरे शरीर पर दरारें हैं और उसे जोरों से खुजली होता है. जब वह दर्द में होता है तो वह पानी में बैठ जाता है. गर्मियों में उसकी तकलीफ असहनीय हो जाती है.
जगन्नाथ को अब तक दिव्यांग होने का प्रमाणपत्र नहीं मिल पाया है, जिसके कारण वह सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित है. अब यह देखा जाना है कि सरकार कब अपनी नजर जगन्नाथ की ओर करती है.