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बदलता हिमालय बढ़ा सकता है परेशानी, सामने आए चौंकाने वाले तथ्य

हिमालय पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक मानते हैं कि अब भूकंप और तमाम चीजें साउथ की तरफ हो सकती हैं. कब होगा यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन जिस तरह से हिमालय के बदलते स्वरूप को वैज्ञानिक देख रहे हैं, उससे आने वाले समय में इसकी आहट दक्षिण क्षेत्र में होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

changing himalayas
बदलता हिमालय
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Published : Sep 22, 2020, 3:27 PM IST

देहरादून: हिमालय के स्वरूप में समय-समय पर बदलाव देखने को मिलते रहते हैं. हमेशा ही हिमालय में कुछ हलचल होती रहती है, जिसका कारण इसका डायनेमिक सिस्टम है. हिमालयी क्षेत्रों में लैंडस्लाइड, भूकंप सभी इसी का नतीजा है. वाडिया भू-विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं के मुताबिक, हिमालय के बदलते स्वरूप के चलते ही ये सब घटनाएं होती हैं.

डॉयरेक्टर डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि 50 मिलियन साल पहले इंडियन प्लेट यानी टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराने से हिमालय की उत्पत्ति हुई.

हालांकि, वर्तमान समय में भी इन दोनों प्लेट्स के टकराने का सिलसिला जारी है, जिसके चलते हिमालय का एवोल्यूशन चल रहा है. अभी भी हिमालय की हाइट उतनी ही बनी हुई है, जिसकी मुख्य वजह हिमालय से लगातार होता इरोजन है. उन्होंने बताया हर साल तीन से चार सेंटीमीटर तक दोनों प्लेट मूव कर रही हैं.

बदलता हिमालय

टेक्टोनिक प्लेट का इंटरफेस एक तरफ से एक्सपोज हुआ है, जिसे हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट कहते हैं. यही नहीं इस फ्रंटल थ्रस्ट के बीच में और भी बहुत सारे थ्रस्ट हैं, जिससे रॉक का जो भी डिफॉर्मेशन हो रहा है वह गति पैदा करता है, जिसकी वजह से भूकंप, हिमालय के स्वरूप में बदलाव आना, भूस्खलन आदि चीजें होती हैं.

साथ ही उन्होंने बताया कि हिमालय एक डायनेमिक सिस्टम है, जो सभी को कंट्रोल कर रहा है. उन्होंने बताया कि हिमालय का स्लोप भी ज्यादा स्टेबल नहीं है, जिस वजह से भूस्खलन जैसी घटनाएं होती हैं.

वैज्ञानिक मानते हैं कि 50 मिलियन साल पहले जब प्लेट्स टकराई थीं, उसके बाद से ही सभी मूवमेंट इंटरफेस की तरफ ही हो रहे हैं. इस इंटरफेस में होने वाली हलचल से उत्पन्न हो रही एनर्जी भूकंप के माध्यम से निकलती रही है.

हाल ही में हुए अध्ययन में सामने आया है कि टेक्टोनिक और यूरेशियन प्लेट्स के मूवमेंट के चलते हिमालय के बदलते स्वरूप के कारण जो बाहरी क्षेत्रों में भूकंप के तौर पर या अन्य रूप में बदलाव देखे जा रहे थे, वह सिर्फ और सिर्फ उत्तर भारत क्षेत्र में ही देखे जा रहे थे.

पढ़ें :- हिमालय दिवस 2020: हिमालय बचेगा तो हम बचेंगे

अब वैज्ञानिकों का दावा है कि हिमालय के बदलते स्वरूप के चलते इसका असर हिमालय के दक्षिण क्षेत्र की और भी बढ़ने लगा है. वैज्ञानिक कहते हैं कि हिमालय के साउथ में जो गंजेटिक प्लेन है वह पहले अनडिफॉम्ड होता है, ऐसे क्षेत्र में भूकंप और अन्य एक्टिविटी होने की संभावनाएं नहीं होती हैं. अब सब एक्टिविटीज हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट की ओर हो रही है, जिससे देखने में आ रहा है कि हिमालय के 30 से 40 किलोमीटर प्लेन साउथ की ओर भी इसका असर दिखाई दे रहा है. साउथ की तरफ डिफॉर्मेशन होने का मतलब साफ-साफ दक्षिण की तरफ हिमालय के बदलते स्वरूप का प्रोपेगेशन हो रहा है.

पढ़ें :- कोरोना महामारी : एक विश्वसनीय वैक्सीन की तलाश

ऐसे में वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इसका असर हिमालय के साउथ इंडो-गंजेटिक प्लेन में देखने को मिलेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि एहतियात के तौर पर हमें किन पहलुओं पर सुरक्षात्मक रूप से फोकस करने की आवश्यकता होगी? यह बदलता हुआ हिमालय का स्वरूप आखिर किस स्टेज तक पहुंचेगा? ये तमाम ऐसे अनसुलझे सवाल हैं, जिनका जवाब सिर्फ और सिर्फ रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक ही तथ्यात्मक रूप से दे पाएंगे.

देहरादून: हिमालय के स्वरूप में समय-समय पर बदलाव देखने को मिलते रहते हैं. हमेशा ही हिमालय में कुछ हलचल होती रहती है, जिसका कारण इसका डायनेमिक सिस्टम है. हिमालयी क्षेत्रों में लैंडस्लाइड, भूकंप सभी इसी का नतीजा है. वाडिया भू-विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं के मुताबिक, हिमालय के बदलते स्वरूप के चलते ही ये सब घटनाएं होती हैं.

डॉयरेक्टर डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि 50 मिलियन साल पहले इंडियन प्लेट यानी टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराने से हिमालय की उत्पत्ति हुई.

हालांकि, वर्तमान समय में भी इन दोनों प्लेट्स के टकराने का सिलसिला जारी है, जिसके चलते हिमालय का एवोल्यूशन चल रहा है. अभी भी हिमालय की हाइट उतनी ही बनी हुई है, जिसकी मुख्य वजह हिमालय से लगातार होता इरोजन है. उन्होंने बताया हर साल तीन से चार सेंटीमीटर तक दोनों प्लेट मूव कर रही हैं.

बदलता हिमालय

टेक्टोनिक प्लेट का इंटरफेस एक तरफ से एक्सपोज हुआ है, जिसे हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट कहते हैं. यही नहीं इस फ्रंटल थ्रस्ट के बीच में और भी बहुत सारे थ्रस्ट हैं, जिससे रॉक का जो भी डिफॉर्मेशन हो रहा है वह गति पैदा करता है, जिसकी वजह से भूकंप, हिमालय के स्वरूप में बदलाव आना, भूस्खलन आदि चीजें होती हैं.

साथ ही उन्होंने बताया कि हिमालय एक डायनेमिक सिस्टम है, जो सभी को कंट्रोल कर रहा है. उन्होंने बताया कि हिमालय का स्लोप भी ज्यादा स्टेबल नहीं है, जिस वजह से भूस्खलन जैसी घटनाएं होती हैं.

वैज्ञानिक मानते हैं कि 50 मिलियन साल पहले जब प्लेट्स टकराई थीं, उसके बाद से ही सभी मूवमेंट इंटरफेस की तरफ ही हो रहे हैं. इस इंटरफेस में होने वाली हलचल से उत्पन्न हो रही एनर्जी भूकंप के माध्यम से निकलती रही है.

हाल ही में हुए अध्ययन में सामने आया है कि टेक्टोनिक और यूरेशियन प्लेट्स के मूवमेंट के चलते हिमालय के बदलते स्वरूप के कारण जो बाहरी क्षेत्रों में भूकंप के तौर पर या अन्य रूप में बदलाव देखे जा रहे थे, वह सिर्फ और सिर्फ उत्तर भारत क्षेत्र में ही देखे जा रहे थे.

पढ़ें :- हिमालय दिवस 2020: हिमालय बचेगा तो हम बचेंगे

अब वैज्ञानिकों का दावा है कि हिमालय के बदलते स्वरूप के चलते इसका असर हिमालय के दक्षिण क्षेत्र की और भी बढ़ने लगा है. वैज्ञानिक कहते हैं कि हिमालय के साउथ में जो गंजेटिक प्लेन है वह पहले अनडिफॉम्ड होता है, ऐसे क्षेत्र में भूकंप और अन्य एक्टिविटी होने की संभावनाएं नहीं होती हैं. अब सब एक्टिविटीज हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट की ओर हो रही है, जिससे देखने में आ रहा है कि हिमालय के 30 से 40 किलोमीटर प्लेन साउथ की ओर भी इसका असर दिखाई दे रहा है. साउथ की तरफ डिफॉर्मेशन होने का मतलब साफ-साफ दक्षिण की तरफ हिमालय के बदलते स्वरूप का प्रोपेगेशन हो रहा है.

पढ़ें :- कोरोना महामारी : एक विश्वसनीय वैक्सीन की तलाश

ऐसे में वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इसका असर हिमालय के साउथ इंडो-गंजेटिक प्लेन में देखने को मिलेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि एहतियात के तौर पर हमें किन पहलुओं पर सुरक्षात्मक रूप से फोकस करने की आवश्यकता होगी? यह बदलता हुआ हिमालय का स्वरूप आखिर किस स्टेज तक पहुंचेगा? ये तमाम ऐसे अनसुलझे सवाल हैं, जिनका जवाब सिर्फ और सिर्फ रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक ही तथ्यात्मक रूप से दे पाएंगे.

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