जयपुर: सोमवार तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर मिशन चंद्रयान-2 लांच होगा. इसके दो महीने बाद चांद पर पहुंचकर लैंडर 'विक्रम' ऑर्बिटर से अलग होकर चांद की सतह पर उतरेगा. जो चांद की चट्टानों-मिट्टी की मौलिक संरचना का पता लगाएगा.
कैसे करेगा काम
⦁ 1 सेमी प्रति सेकंड की रफ्तार से लैंडर से बाहर निकलेगा रोवर.
⦁ लैंडर से बाहर निकलने के लिए कुल 4 घंटे का वक्त लेगा रोवर.
⦁ बाहर आने के बाद यह चांद की सतह पर 500 मीटर तक चलेगा.
⦁ रोवर प्रज्ञान चंद्रमा की सतह पर पूरा एक दिन तक काम करेगा.
⦁ चंद्रमा का एक दिन पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होता है.
चांद पर पहुंचने के बाद लैंडर विक्रम ऑर्बिटर से अलग होकर चांद की सतह पर उतरेगा. इस बीच लैंटर के अंदर से रोवर 1 सेमी प्रति सेकंड की रफ्तार से बाहर निकलकर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा. बाहर आने के बाद यह चांद की सतह पर 500 मीटर तक का सफर तय करेगा. रोवर के साथ 2 पेलोड भी जा रहे हैं. जिनका काम होगा लैंडिंग साइट के पास तत्वों की मौजूदगी और चांद की चट्टानों-मिट्टी की मौलिक संरचना का पता लगाना होगा. इन दोनों पेलोड के जरिए रोवर वहां से डेटा जुटाकर लैंडर को भेजेगा, और फिर लैंडर सीधे यह डेटा इसरो तक पहुंचाएगा जहां वैज्ञानिक शोध करेंगे.
मिशन चंद्रयान-2 के सामने ये हैं चुनौतियां:
⦁ हमारी धरती से चांद करीब 3,हजार 844 लाख किमी की दूरी.
⦁ यहां से किसी भी मेसेज को वहां पहुंचने में कुछ मिनट लगेंगे.
⦁ सोलर रेडिएशन का भी असर चंद्रयान-2 पर पड़ सकता है.
⦁ चंद्रमा में जाने के बाद वहां सिग्नल कमजोर हो सकते हैं.
⦁ बैकग्राउंड का शोर भी कम्युनिकेशन पर असर डालेगा.
अगर मिशन चंद्रयान-2 इन समस्याओं से निपट लेता है तो यह मिशन कामयाब होने में 99 प्रतिशन सफलता भारत को मिलेगी. भारत चंद्रमा पर बसने के लिहाज से कई तरह के विकल्पों पर शोध कर रहा है. इस मिशन के कामयाब होते ही भारत के चांद पर बसने के लिजाज से आगे अपने कदम बढ़ा सकेगा.
चंद्रयान-2 का क्या है मकसद ?
⦁ चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर पानी के प्रसार और मात्रा का अध्ययन करेगा.
⦁ चंद्रमा के मौसम का अध्ययन करेगा.
⦁ चंद्रमा की सतह में मौजूद खनिजों और रासायनिक तत्वों का अध्ययन करेगा.
⦁ चंद्रमा के बाहरी वातावरण का अध्ययन करेगा.
इस मिशन के तहत चांद की सतह पर पानी खोजने की संभावना जाताई जा रही है. यह संभावना इस लिए जताई जा सकती है क्योंकि चंद्रयान मिशन 1 के शोध के आधार पर इसरो ने यहां जल हिम जैसे स्थान पाए जाने की संभावना जताई थी. जहां चंद्रमा के घूर्णन अक्ष के थोड़ा झुके होने के कारण सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंच पाती. यही नहीं इस मिशन से यह भी सामने आएगा कि अपोलो 11 मिशन के ज़रिये नील आर्मस्ट्रॉन्ग द्वारा मानव सभ्यता के लिए उठाए गए अहम कदम के बाद से अंतरिक्ष विज्ञान कितना आगे निकल चुका है. और यही वजह है कि इस मिशन की पूरी दुनिया की नजर है. अपने चौथे और अंतिम भाग में हम आपको इस मिशन से जुड़े 10 चौंकाने वाली बातें बताएंगा जो आपके लिए जानना जरूरी है.