नई दिल्ली : अनुच्छेद 35 ए को समाप्त करने को सही ठहराते हुए केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि यह प्रावधान भेदभावपूर्ण था और सामाजिक-आर्थिक विकास में गंभीर बाधा था.
गौरतलब है कि अनुच्छेद 35 ए पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य के निवासियों को विशेष अधिकार प्रदान करता था. हालांकि, इसके तहत राज्य के बाहर के लोगों से विवाह करने वाली प्रदेश की महिलाओं से भेदभाव होता था.
गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव ज्ञानेश कुमार द्वारा शीर्ष अदालत में दायर हलफनामे में कहा गया है, 'विगत वर्षों में महसूस किया गया है कि यह व्यवस्था राज्य का अहित कर रही थी और आतंकवाद और अलगाववाद जैसी गंभीर समस्याओं में बड़ा योगदान दे रही थी.'
न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ विभिन्न याचिकाओं पर 14 नवंबर से सुनवाई करने वाली है, जिसमें अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को समाप्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.
पांच अगस्त को केंद्र द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को समाप्त करने के फैसले के परिणामस्वरूप अनुच्छेद 35 ए इतिहास बन गया.
राष्ट्रपति के आदेश के जरिये 1954 में भारत के संविधान में शामिल अनुच्छेद 35 ए जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान करता था और राज्य के बाहर के लोगों को कोई भी अचल संपत्ति खरीदने से रोकता था.
लिट्टे पर और 5 वर्षों के लिए प्रतिबंध की पुष्टि
यह राज्य की महिला को राज्य के बाहर के व्यक्ति से शादी करने पर संपत्ति अधिकारों से वंचित करता था. यह प्रावधान ऐसी महिलाओं के उत्तराधिकारियों पर भी लागू होता था.
हलफनामे में कहा गया है कि यह प्रावधान 'तत्कालीन राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए एक गंभीर बाधा साबित हुआ.' हलफनामे में कहा गया है, 'इसने राज्य में निवेश को रोक दिया है और युवाओं के लिए रोजगार सृजन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जिसके परिणामस्वरूप अन्य विकास संकेतकों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा.'