नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सभी मंत्रालयों और विभागों को अपना कैलेंडर और डायरी का प्रकाशन रोकने का निर्देश दिया है क्योंकि इससे वित्तीय संसाधनों का अपव्यय होता है.
सरकार ने इसके स्थान पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से प्रकाशित सामग्री का इस्तेमाल करने को कहा है.
कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने पिछले महीने मंत्रालयों का नेतृत्व कर रहे सभी संबंधित सचिवों को नए आदेश का सख्ती से अनुपालन करने का निर्देश दिया था.
मीडिया को गौबा द्वारा इस संबंध में लिखे पत्र की सामग्री मिली है. पत्र में कहा गया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत ब्यूरो ऑफ आउट्रीच एंड कम्युनिकेशन (बीओसी) की जिम्मेदारी सरकारी कैलेंडर एवं डायरी का मुद्रण कर मंत्रालयों, विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को शुल्क के आधार पर वितरित करने की है.
शीर्ष नौकरशाह ने लिखा,'‘हालांकि, यह देखा गया है कि विभिन्न मंत्रालय, विभाग और सार्वजनिक उपक्रम एवं उनके प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत आने वाले संगठन बीओसी की ओर से की गई आपूर्ति के अलावा कैंलेडर, डेस्क कैलेंडर और डायरी का प्रकाशन कर रहे हैं. इससे दोहराव हो रहा है और वित्तीय संसाधानों का अपव्यय हो रहा है.
गौबा ने कहा कि डिजिटल उपकरणों जैसे मोबाइल, आईपैड की पहुंच बढ़ने से कागज आधारित वस्तुओं के उपयोग में कमी आ रही है.
उन्होंने कहा, ' इसलिए फैसला किया गया है कि बीओसी द्वारा जारी कैलेंडर और डायरी का ही इस्तेमाल केंद्र सरकार के संस्थान करेंगे और विभाग एवं मंत्रालय स्वयं अपने स्तर पर इनका प्रकाशन नहीं करेंगे.
गौबा ने निर्देश दिया कि बीओसी प्रत्येक संस्थान में कर्मचारियों की वास्तविक संख्या का पता कर डायरी और कैलेंडर प्रकाशित करेगी और अगर मंत्रालय एवं विभागों में डायरी और कैलेंडर की अधिक जरूरत हुई तो निर्धारित प्रक्रिया के तहत आधिकारिक अनुरोध करना होगा.
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पत्र के मुताबिक, 'सार्वजनिक उपक्रमों और स्वायत्त संस्थाओं को डायरी और कैलेंडर की आपूर्ति भुगतान के आधार पर की जाएगी.'
गौबा ने बीओसी को भी निर्देश दिया कि वह प्रत्येक साल 31 दिसंबर तक सरकारी मंत्रालयों को कैलेंडर और डायरी की आपूर्ति संबंधित मोबाइल एप के साथ कर दे.
प्रक्रिया में शामिल वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रत्येक साल कैलेंडर और डायरी का प्रकाशन करने पर करोड़ों का खर्च आता है और बड़ी संख्या में कर्मचारियों को इस काम में लगाया जाता है.
उन्होंने कहा, ' इस आदेश से धन और श्रमबल का अपव्यय रूकेगा.'