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न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए केंद्र ने SC में दायर की याचिका - death penalty time frame

दोषियों के सजा निषपादन में हो रही देरी को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है. केंद्र सरकार ने मौत की सजा का वारंट जारी किये जाने के बाद दोषियों को फांसी देने के लिए सात दिन की समयसीमा तय करने की अपनी याचिका पर गुरूवार को उच्चतम न्यायालय से तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया और कहा कि दोषी न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jan 24, 2020, 12:09 AM IST

Updated : Feb 18, 2020, 4:53 AM IST

नयी दिल्ली: केंद्र सरकार ने मौत की सजा का वारंट जारी किये जाने के बाद दोषियों को फांसी देने के लिए सात दिन की समयसीमा तय करने की अपनी याचिका पर गुरूवार को उच्चतम न्यायालय से तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया और कहा कि दोषी न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हैं.


प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस ए नजीर तथा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि गृह मंत्रालय की याचिका को लिया जाए और 2014 के शत्रुघन चौहान मामले में जारी दिशानिर्देशों को बदलकर पीड़ित केंद्रित बनाया जाए जो अभी दोषी केंद्रित हैं.पीठ ने मेहता से कहा, 'जब आपकी याचिका सुनवाई के लिए आए तो आप दलील रखें.'


गृह मंत्रालय ने बुधवार को न्यायालय में दाखिल अपनी अर्जी में कहा कि शीर्ष अदालत को सभी सक्षम अदालतों, राज्य सरकारों और जेल प्राधिकारियों के लिये यह अनिवार्य करना चाहिये कि ऐसे दोषी की दया याचिका अस्वीकृत होने के सात दिन के भीतर सजा पर अमल का वारंट जारी करें और उसके बाद सात दिन के अंदर मौत की सजा दी जाए, चाहे दूसरे सह-मुजरिमों की पुनर्विचार याचिका, सुधारात्मक याचिका या दया याचिका लंबित ही क्यों नहीं हों.


मंत्रालय ने यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया है कि अगर मौत की सजा पाने वाला मुजरिम दया याचिका दायर करना चाहता है तो उसके लिये फांसी दिये जाने संबंधी अदालत का वारंट मिलने की तारीख से सात दिन के भीतर दायर करना अनिवार्य किया जाये.

नयी दिल्ली: केंद्र सरकार ने मौत की सजा का वारंट जारी किये जाने के बाद दोषियों को फांसी देने के लिए सात दिन की समयसीमा तय करने की अपनी याचिका पर गुरूवार को उच्चतम न्यायालय से तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया और कहा कि दोषी न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हैं.


प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस ए नजीर तथा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि गृह मंत्रालय की याचिका को लिया जाए और 2014 के शत्रुघन चौहान मामले में जारी दिशानिर्देशों को बदलकर पीड़ित केंद्रित बनाया जाए जो अभी दोषी केंद्रित हैं.पीठ ने मेहता से कहा, 'जब आपकी याचिका सुनवाई के लिए आए तो आप दलील रखें.'


गृह मंत्रालय ने बुधवार को न्यायालय में दाखिल अपनी अर्जी में कहा कि शीर्ष अदालत को सभी सक्षम अदालतों, राज्य सरकारों और जेल प्राधिकारियों के लिये यह अनिवार्य करना चाहिये कि ऐसे दोषी की दया याचिका अस्वीकृत होने के सात दिन के भीतर सजा पर अमल का वारंट जारी करें और उसके बाद सात दिन के अंदर मौत की सजा दी जाए, चाहे दूसरे सह-मुजरिमों की पुनर्विचार याचिका, सुधारात्मक याचिका या दया याचिका लंबित ही क्यों नहीं हों.


मंत्रालय ने यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया है कि अगर मौत की सजा पाने वाला मुजरिम दया याचिका दायर करना चाहता है तो उसके लिये फांसी दिये जाने संबंधी अदालत का वारंट मिलने की तारीख से सात दिन के भीतर दायर करना अनिवार्य किया जाये.

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केंद्र ने न्यायालय से मृत्युदंड के लिए सात दिन की सीमा तय करने की याचिका पर सुनवाई की मांग की



नयी दिल्ली, 23 जनवरी (भाषा) केंद्र सरकार ने मौत की सजा का वारंट जारी किये जाने के बाद दोषियों को फांसी देने के लिए सात दिन की समयसीमा तय करने की अपनी याचिका पर गुरूवार को उच्चतम न्यायालय से तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया और कहा कि दोषी न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हैं.



प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस ए नजीर तथा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि गृह मंत्रालय की याचिका को लिया जाए और 2014 के शत्रुघन चौहान मामले में जारी दिशानिर्देशों को बदलकर पीड़ित केंद्रित बनाया जाए जो अभी दोषी केंद्रित हैं.



पीठ ने मेहता से कहा, 'जब आपकी याचिका सुनवाई के लिए आए तो आप दलील रखें.'



गृह मंत्रालय ने बुधवार को न्यायालय में दाखिल अपनी अर्जी में कहा कि शीर्ष अदालत को सभी सक्षम अदालतों, राज्य सरकारों और जेल प्राधिकारियों के लिये यह अनिवार्य करना चाहिये कि ऐसे दोषी की दया याचिका अस्वीकृत होने के सात दिन के भीतर सजा पर अमल का वारंट जारी करें और उसके बाद सात दिन के अंदर मौत की सजा दी जाए, चाहे दूसरे सह-मुजरिमों की पुनर्विचार याचिका, सुधारात्मक याचिका या दया याचिका लंबित ही क्यों नहीं हों.



मंत्रालय ने यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया है कि अगर मौत की सजा पाने वाला मुजरिम दया याचिका दायर करना चाहता है तो उसके लिये फांसी दिये जाने संबंधी अदालत का वारंट मिलने की तारीख से सात दिन के भीतर दायर करना अनिवार्य किया जाये.


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Last Updated : Feb 18, 2020, 4:53 AM IST

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