नई दिल्ली: मॉब लिंचिंग की लगातार बढ़ती घटनाओं को देखते हुए कला, चिकित्सा और शिक्षा जगत की 49 हस्तियों ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने मॉब लिंचिंग पर चिंता जाहिर करते हुए इसे रोकने की मांग की है.
अलग-अलग क्षत्रों के कलाकारों ने पत्र में कहा है कि आपने (मोदी)संसद में मॉब लिंचिंग के मुद्दे को उठाया लेकिन ये काफी नहीं है. उन्होंने कहा है कि ये मामले सबसे अधिक 2014 के बाद से बढ़ें हैं, जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई.
आपको बता दें, इस पत्र को लिखने वालों में अनुराग कश्यप, रामचंद्र गुहा और मणिरत्नम जैसी कई अन्य मशहूर हस्तियां शामिल हैं. इन सभी लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक ऐसा भारत बनाने की मांग की है, जहां इस तरह की घटनाओं पर पाबंदी हो.
कलाकारों ने पत्र में लिखा है कि हमारे संविधान के मुताबिक, भारत एक सेकुलर गणतंत्र है. यहां हर धर्म, समूह, लिंग और जाति के लोगों को बराबर अधिकार दिया जाता है.
बता दें, इस पत्र में मांग की गई है कि मुसलमानों, दलितों और दूसरे अल्पसंख्यकों के साथ हो रही लिंचिंग पर तुरंत रोक लगाई जाए. पत्र में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को भी साझा किया गया है.
इनके अनुसार 1 जनवरी 2009 से लेकर 29 अक्टूबर 2018 तक धर्म की पहचान पर आधारित 254 अपराध दर्ज किये गए. इन घटनाओं में 91 लोगों की हत्या हुई और 579 लोग घायल पाए गए हैं.
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सबसे अहम बात है कि पत्र में इस बात का जिक्र भी किया गया है कि मुसलमानों की भारत की आबादी केवल 14 फीसदी है लेकिन वह ऐसे 62 फीसदी अपराधों का शिकार बने हैं.
वहीं क्रिश्चयन जिनकी आबादी 2 फीसदी है वह ऐसे 14 फीसदी अपराधों के शिकार हुए हैं. पत्र में साफ तौर पर कहा गया है कि ऐसे 90 फीसदी अपराध मई 2014 के बाद हुए हैं, जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे.
सेलेब्स ने खास तौर से जय श्री राम का नाम लेकर लिंचिंग करने को हाइलाइट किया है. उन्होंने कहा है कि भगवान राम का नाम लेकर धर्म और जात के नाम पर गरीब दलितों और अल्पसंख्यकों की लगातार हो रही हत्या न सिर्फ हमें दुनिया में बदनाम कर रही है लेकिन सैंकड़ों सालों से चली आ रही हमारी गंगा जमुनी तहजीब को भी बर्बाद करने की कोशिश है.
इस पत्र में ऐसे अपराध करने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने और ठोस कानून बनाने की बात कही गई है. इसके अलावा पत्र में लोकतंत्र में असहमति की भी पैरवी की गई है.
इसमें कहा गया है कि असहमति के बिना लोकतंत्र को बढ़ावा नहीं मिल सकता है. अगर कोई सरकार के खिलाफ राय देता है तो उसे 'एंटी-नेशनल' या 'अरबन नक्सल' घोषित नहीं किया जाना चाहिए.
पत्र में कहा गया है कि सत्ताधारी पार्टी की आलोचना करने का मतलब देश की आलोचना करना नहीं होता है इसलिए सरकार के खिलाफ बोलना देश विरोधी भावनाएं व्यक्त करना नहीं होता है.