हैदराबाद : दीपावली की शाम पूरे देश में हर्षोल्लास से त्योहार मनाया गया, लेकिन नियंत्रण रेखा पर इस पर्व के दिन भी तनाव बना रहा. शुक्रवार को पाकिस्तान द्वारा सीमा पर किए गए युद्ध विराम उल्लंघन में सेना के कई जवान शहीद हो गए और आम नागरिक भी मारे गए.
बीते कुछ वर्षों में सीमा पर युद्ध विराम के उल्लंघन की घटनाएं आम हो गई हैं. यदि आकड़ों की बात करें तो इस वर्ष जनवरी से लेकर सितंबर तक ही तीन हजार से ज्यादा बार नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम उल्लघंन की घटनाएं हुई हैं.
क्या है नियंत्रण रेखा या लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी)?
भारत-पाकिस्तान के बीच पहला संघर्ष 1947-48 में हुआ था. इसके बाद 1948 में पहला युद्ध विराम लागू हुआ, उसी समय दोनों देशों के बीच एक काल्पनिक रेखा खींची गई थी, यही एलओसी है.
इसे सीजफायर लाइन या सीएफएल नाम दिया गया, इस रेखा का 1972 के सुचेतगढ़ समझौते के तहत सीमांकित किया गया है, सुचेतगढ़ समझौते के बाद ही शिमला समझौता हुआ था. बता दें कि यह अंतरराष्ट्रीय सीमा से अलग है.
1972 के शिमला समझौते ने जम्मू-कश्मीर में सीजफायर लाइन की जगह नियंत्रण रेखा को स्थापित किया था. हालांकि सीजफायर लाइन और नियंत्रण रेखा लगभग एक जैसी ही हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि नियंत्रण रेखा 1971 के युद्ध के परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान के बीच कई छोटे क्षेत्रीय बदलावों का परिणाम है.
नियंत्रण रेखा की यथास्थिति को बनाए रखने की जिम्मेदारी भारत और पाकिस्तान के सेनाओं की है. वहीं, सीजफायर लाइन की निगरानी संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक समूह द्वारा की जाती थी.
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए पुलिस बलों की तैनाती की जाती है. नियंत्रण रेखा अलग है. नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की सेनाओं को तैनात किया जाता है.
जम्मू अंतरराष्ट्रीय सीमा क्यों अलग
जम्मू स्थित अंतरराष्ट्रीय सीमा पर विवाद इसलिए है क्योंकि भारत इसको सीमा मानता है और पाकिस्तान नहीं. पाकिस्तान इसको 'वर्किंग बाउंड्री' कहता है, जिसे भारत से मान्यता प्राप्त नहीं है.
भारत की तरफ इस सीमा पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और सीमा सुरक्षा बल की तैनाती की जाती है और पाकिस्तान की तरफ अर्धसैनिक बल, रेंजर्स को तैनात किया जाता है.
नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम उल्लंघन का इतिहास
1972 में नियंत्रण रेखा के चित्रण के बाद करीब एक दशक तक सीमा पर लगभग पूरे समय शांति रही थी. इस दौरान युद्ध विराम उल्लंघन की छोटी-मोटी घटनाएं ही घटित हुई थीं.
80 के दशक के अंत में युद्धविराम उल्लंघ की घटनाएं बढ़ गई थीं और 90 के दशक में कश्मीर विद्रोह के साथ यह और भी बढ़ गई थी. 2001 सीमा पर भारत द्वारा फेंसिग का काम शुरू करने के बाद क्रॉस बॉर्डर फायरिंग की घटनाएं बढ़ गई थी.
2003 में युद्ध विराम समझौते के बाद अगले पांच वर्षों तक युद्ध विराम उल्लंघन की कोई घटना नहीं घटित हुई. यह दोनों देशों की बीच वार्ता के बाद संभव हो पाया था. हालांकि मुंबई हमलों के बाद धीरे-धीरे सीमा पर युद्ध विराम उल्लंघन की घटनाएं फिर आम हो गईं.
2013 में भारत ने पाकिस्तान पर 347 बार युद्ध विराम उल्लंघन करने का आरोप लगाया था और पाकिस्तान ने यही आरोप भारत पर लगाया था कि भारत ने 464 बार युद्ध विराम उल्लंघन किया. तब से युद्ध विराम उल्लंघन की घटनाएं बढ़ी ही हैं.
2017 में पकिस्तान ने भारत पर 1970 बार युद्ध विराम उल्लंघन करने का आरोप लगाया और भारत ने पाकिस्तान पर 936 बार उल्लंघन करने का आरोप लगाया.
मई 2018 में भारत ने रमजान सीजफायर का एलान किया, लेकिन यह भी ज्यादा दिन तक नहीं चला और 2019-20 में हिंसा भड़कने के बाद युद्ध विराम उल्लंघन की घटनाएं फिर शुरू हो गईं.
2003 का सीजफायर समझौता
2003 में 25-26 नवंबर की दरम्यानी रात को पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम करने की घोषणा की. सैन्य अभियानों के महानिदेशकों द्वारा दोनों देशों को इसकी खबर दी गई और सीजफायर समझौता अस्तित्व में आ गया.
2003 का सीजफायर समझौता लिखित नहीं है और इसका उद्देश्य 1949 और 72 में हुए समझौतों को बनाए रखना है.
फिलहाल नियंत्रण रेखा और जम्मू अंतरराष्ट्रीय सीमा पर कई तरह से युद्ध विराम का उल्लंघन होता है. यह घटनाएं सीमा पर रहने वाले आम लोगों को भी प्रभावित करती हैं.
आंकड़े क्या कहते हैं ?
सितंबर 2010-2020 के बीच पाकिस्तान ने 11,572 बार युद्ध विराम उल्लंघन किया. इन घटनाओं में 240 भारतीय नागरिक मारे गए और 673 आम नागरिक और सुरक्षा बलों के 594 जवान घायल भी हुए हैं.
यदि 2010 से तुलना करें तो 2019 में पकिस्तान की ओर से ऐसी घटनाएं 50 गुना बढ़ गई हैं.
2018 में 2,140 बार युद्ध विराम उल्लंघन की घटनाओं में 59 लोगों की जान गई थी. यह औसतन छह बार हर रोज युद्ध विराम उल्लंघन करने के बराबर है. 2019 में यह औसत बढ़कर नौ हो गया था. 2019 में करीब 3,500 बार पाकिस्तान ने युद्ध विराम उल्लंघन किया, जिसमें 37 लोग मारे गए और करीब 250 लोग घायल हो गए थे.
इस साल सितंबर तक 3,186 बार युद्ध विराम उल्लंघन की घटनाएं हुईं.
नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना
नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना का काम दोगुना हो गया है. सेना को सीमा की सुरक्षा बनाए रखने के साथ-साथ पाकिस्तान की तरफ से होने वाली घुसपैठ को भी रोकना है. सेना को अत्यंत दुर्गम परिस्थितियों में चौकन्ना रहते हुए सुरक्षा को सुनिश्चित करना है.
पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ बढ़ने से भारत में आतंकियों की संख्या में वृद्धि हुई और भारतीय सेना के ऊपर भी दबाव बढ़ गया है.
पाकिस्तान युद्ध विराम का उल्लंघ क्यों करता है?
नियंत्रण रेखा और जम्मू अंतरराष्ट्रीय सीमा का इस्तेमाल पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदायों का ध्यान आकर्षित करने के लिए करता है. घाटी में तनाव बनाने में सफल न होने पर पाकिस्तान युद्ध विराम उल्लंघन का सहारा लेता है.
कुछ क्षेत्रों में हालात दुर्गम होने के कारण घुसपैठ का खतरा बढ़ जाता है. इसको रोकने के लिए कई पोस्ट पर कम संख्या में सैनिकों की तैनाती की जाती है.
पाकिस्तान की बर्बर बीएटी
नियंत्रण रेखा के पास कम संख्या में गश्त लगाना खतरे से भरा होता है क्योंकि इन दुर्गम क्षेत्रों में पाकिस्तान की बर्बर बॉर्डर एक्शन टीम बड़ी संख्या में रहती है. पूर्व में बॉर्डर एक्शन टीम ने भारतीय सैनिकों के सिर कलम करने जैसी बर्बर घटनाओं को अंजाम दिया है.