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बंगाल : बदहाल स्थिति में ऐतिहासिक धरोहर, सरकारी उपेक्षा की शिकार - Cannons of Murshidabads Barrack Square

पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद एक ऐतिहासिक शहर है. माना जाता है कि मुर्शिदाबाद के बहरामपुर के बैरक चौक से शुरू हुआ था. बैरक चौक में चार तोप हैं जो 1857 के सिपाही विद्रोह के गवाह हैं. लेकिन सरकार इनके संरक्षण के लिए ध्यान नहीं दे रही है.

Cannons of Murshidabads Barrack Square
धरोहर को सहेजने की ओर सरकार का ध्यान नहीं
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Published : Jul 29, 2020, 4:30 PM IST

कोलकाता : मुर्शिदाबाद पश्चिम बंगाल का एक ऐतिहासिक शहर है. जो मुगल और ब्रिटिश काल के दौरान एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा था. माना जाता है कि 1857 का सिपाही विद्रोह (Sepoy mutiny) मुर्शिदाबाद के बहरामपुर के बैरक चौक से शुरू हुआ था. बैरक चौक में चार तोप हैं जो 1857 के सिपाही विद्रोह के गवाह हैं. लेकिन इनकी हालत बदतर हो चुकी है और सरकार का इनकी तरफ जरा भी ध्यान नहीं है. स्थानीय प्रशासन इन धरोहरों की उपेक्षा कर रहा है.

धरोहर को सहेजने की ओर सरकार का ध्यान नहीं

1765 से 1767 के बीच बहरामपुर की स्थापना हुई थी. बैरक चौक के विपरीत ब्रिटिश ने वहां 'मैगजीन्स बिल्डिंग' नामक एक इमारत बनाई थी, जहां गोला-बारूद का भंडार था. अभी भी बहरामपुर में यहां इमारत बरकरार है.

पढ़े : झारखंड : पूरी तरह विलुप्त हो गए पलामू टाइगर रिजर्व से बाघ

विशेषज्ञ तोपों के संरक्षण की मांग कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को भारतीय इतिहास के इन साक्ष्यों का ध्यान रखना चाहिए. जिससे पर्यटकों और छात्रों को लाभ होगा.

कोलकाता : मुर्शिदाबाद पश्चिम बंगाल का एक ऐतिहासिक शहर है. जो मुगल और ब्रिटिश काल के दौरान एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा था. माना जाता है कि 1857 का सिपाही विद्रोह (Sepoy mutiny) मुर्शिदाबाद के बहरामपुर के बैरक चौक से शुरू हुआ था. बैरक चौक में चार तोप हैं जो 1857 के सिपाही विद्रोह के गवाह हैं. लेकिन इनकी हालत बदतर हो चुकी है और सरकार का इनकी तरफ जरा भी ध्यान नहीं है. स्थानीय प्रशासन इन धरोहरों की उपेक्षा कर रहा है.

धरोहर को सहेजने की ओर सरकार का ध्यान नहीं

1765 से 1767 के बीच बहरामपुर की स्थापना हुई थी. बैरक चौक के विपरीत ब्रिटिश ने वहां 'मैगजीन्स बिल्डिंग' नामक एक इमारत बनाई थी, जहां गोला-बारूद का भंडार था. अभी भी बहरामपुर में यहां इमारत बरकरार है.

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विशेषज्ञ तोपों के संरक्षण की मांग कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को भारतीय इतिहास के इन साक्ष्यों का ध्यान रखना चाहिए. जिससे पर्यटकों और छात्रों को लाभ होगा.

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