देहरादून: भारतीय सैन्य अकादमी में पासिंग आउट परेड इस बार कुछ नए अंदाज में दिखेगी. इस बार कैडेट्स के लिए उनके गुरू ही अभिभावक की भूमिका निभाएंगे. उत्तराखंड के आईएमए देहरादून में मंगलवार को डिप्टी कमांडेंट और चीफ इंस्ट्रक्टर की परेड हुई. कोरोना के मद्देनजर परेड में आईएमए के कैडेट्स मास्क के साथ सोशल डिस्टेंसिंग का पालनकर कदमताल करते नजर आए.
आईएमए में हर साल जून और दिसंबर में पासिंग आउट परेड का आयोजन किया जाता है. इस परेड के दौरान अंतिम पग पार करते ही कैडेट्स सेना में अधिकारी बन जाते हैं.
आईएमए देहरादून का 88 साल का गौरवपूर्ण इतिहास जवानों का सीना गर्व से चौड़ा कर देता है. आईएमए मित्र देशों की सेना के साथ भारतीय सेना को भी अधिकारी देता है. 13 जून को इंडियन मिलिट्री एकेडमी के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है. इस बार आईएमए के पासिंग आउट परेड में कुछ नई परंपराओं की शुरुआत की जाएगी. जेंटलमैन कैडेट्स देने वाली आईएमए के इतिहास में कुछ परंपराएं टूटेंगी और कुछ नई परंपराएं इसका हिस्सा बनेंगी.
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आईएमए पासिंग आउट परेड में जवानों का जोश और जज्बा देखने लायक होता है. आईएमए की कठिन ट्रेनिंग के बाद पास आउड कैडेट्स के लिए सबसे भावुक करने वाला पल तब होता है, जब उनके परिजन उनकी वर्दी पर रैंक लगाते हैं. लेकिन आईएमए के इतिहास में पहली बार पीपिंग सेरेमनी के दौरान ऑफिसर्स जेंटलमैन कैडेट्स की वर्दी पर रैंक लगाएंगे. इस बार आईएमए के जेंटलमैन कैडेट्स चैटवुड बिल्डिंग से अंतिम पग निकालते हुए अपने करियर की पहली 'पग' चढ़ेंगे. दरअसल अंतिम पग के साथ ही पासआउट अधिकारियों को उनके रेजिमेंट में तैनाती दे दी जाएगी.
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बता दें कि, 1 अक्टूबर 1932 में 40 कैडेट्स के साथ आईएमए की स्थापना हुई और 1934 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी से पहला बैच पासआउट हुआ था. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक रहे भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ भी इसी एकेडमी के छात्र रह चुके हैं. इंडियन मिलिट्री एकेडमी से देश-विदेश की सेनाओं को 62 हजार 139 युवा अफसर मिल चुके हैं. इनमें मित्र देशों के 2413 युवा अफसर भी शामिल हैं.