नई दिल्ली : सीपीएम के वरिष्ठ नेता हन्नान मोल्लाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) की आलोचना करते हुए इसे देश को विभाजित करने वाला बताया है. साथ ही उन्होंने कहा कि सीएबी के खिलाफ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) द्वारा शुरू किया गया विरोध सरकार के लिए सबसे कठिन चुनौती साबित होगा.
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधयेक पेश करेंगे, इस दौरान विधेयक पर चर्चा की जाएगी और उसे पास करने पर विचार किया जाएगा.
सरकार के सूत्रों ने कहा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में कुछ संशोधनों के साथ विधेयक को 'नए प्रारूप' में पेश किया जाएगा.
सूत्रों ने कहा कि सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा के सदस्यों के बीच नागरिकता संशोधन मसौदे की एक प्रति प्रसारित की है.
ऐसा माना जाता है कि इस विधेयक में असम, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर और त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों को बाहर रखा गया है, जैसा कि संविधान की छठी अनुसूची में शामिल है और बंगाल पूर्वी सीमा विनियमन, 1873 के तहत अधिसूचित "इनर लाइन" के तहत आने वाला क्षेत्र शामिल है.
हालांकि, ईटीवी भारत से बात करते हुए हन्नान मोल्लाह ने इस बिल को असंवैधानिक करार दिया.
मोल्लाह ने कहा, 'नागरिकता धर्म के आधार पर नहीं दी जा सकती. मुस्लिम समुदाय को नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं देने से यह बिल पुराने स्वरूप में आ रहा है.'
उन्होंने कहा कि म्यांमार और श्रीलंका में अल्पसंख्यक भी धार्मिक अभियोजन का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा, 'सरकार ने बिल के दायरे में म्यांमार और श्रीलंका को शामिल क्यों नहीं किया. क्या वे मानते हैं कि इससे रोहिंग्याओं को भी नागरिकता मिल सकती है.'
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मोल्लाह ने जनजातीय क्षेत्रों और इनर लाइन परमिट (ILP) वाले राज्यों को सीएबी से बाहर करने के सरकार के कदम पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, 'भाजपा सरकार एक राष्ट्र और एक कानून की बात करती है, लेकिन अब वह एक राष्ट्र दो कानून बना रही है.'
नए नागरिकता संशोधन विधेयक के बारे में माना जाता है कि हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, या बांग्लादेश, अफगानिस्तान या पाकिस्तान से आए ईसाई समुदाय से संबंधित किसी भी व्यक्ति के, जो 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले से भारत में रह रहा है, साथ अवैध प्रवासी का व्यवहार नहीं किया जाएगा.
सूत्रों के अनुसार विधेयक में यह भी कहा गया है कि इन छह विशेष समुदाय के व्यक्ति को भारत में नागरिकता प्राप्त करने के लिए न्यूनतम पांच साल से भारत का निवासी होने चाहिए.
हालांकि, आम सहमति के बिना बिल लाने के लिए सरकार को अपनों की आलोचना को भी आमंत्रित किया है.
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एनडीए के सहयोगी, जनता दल (यूनाइटेड) ने यहां तक सुझाव दिया है कि बिल को फिर से देखने और आम सहमति के लिए संसदीय स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए.
इस बीच, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के साथ-साथ नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन (NESO) ने बिल के विरोध में मंगलवार को पूर्वोत्तर बंद का आह्वान किया है.