नई दिल्ली : अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव के बाद मतगणना जारी है. डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन के बीच कांटे की टक्कर है. इन दोनों में कौन बाजी मारेंगे, यह कहना अभी मुश्किल है. जीत चाहे किसी की हो, भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा. इस विषय पर रक्षा मामलों के जानकार सी उदय भास्कर से बातचीत का ब्योरा पेश है. एक नजर.
अमेरिका के लिए यह चुनाव कितना महत्वपूर्ण है.
देखिए, यह अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण चुनाव है. अमेरिकी जनता को यह तय करना है कि वे आने वाले चार सालों में किसे देखना चाहते हैं. ट्रंप को या फिर बाइडेन को. लेकिन इतना तय है कि इसका असर कई स्तरों पर पडे़गा. पिछले चार सालों में अमेरिका में ध्रुवीकरण बढ़ा है. कई मामलों में यह काफी कड़वा भी रहा है. इस दौरान अमेरिका के कुछ अप्रिय और वीभत्स रूप भी देखने को मिले.
दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पहलू है- अमेरिका का चीन, जापान, रुस, जर्मनी और भारत के साथ रिश्ते किस ओर मुड़ेंगे. क्योंकि ट्रंप का ट्रैक रिकॉर्ड कुछ अलग रहा है. दोनों में से कोई भी जीतते हैं, तो इस पर असर पड़ना तय है. मेरी राय है कि सबसे अधिक असर अमेरिका और चीन के रिश्तों पर दिखेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि इसका असर भारत-अमेरिका और भारत-चीन पर भी पड़ेगा. इसलिए यह चुनाव अमेरिकन वोटर्स के लिए खास तो है, लेकिन भारत के लिए भी कम महत्वपूर्ण नहीं है.
अभी तक की जानकारी के मुताबिक कांटे का मुकाबला है. चुनाव के ठीक पहले अधिकांश मीडिया हाउस ने बाइडेन को बढ़त मिलते हुए दिखाया था. उनका मानना था कि बाइडेन ही जीतेंगे. लेकिन अभी तो अनिश्चिंतता का माहौल है. वहां पर काफी तनाव की खबरें आ रहीं हैं.
अमेरिकी नीति में किस हद तक बदलाव आने की संभावना है.
अगर ट्रंप जीतते हैं, तो यह उनका दूसरा कार्यकाल होगा. वे अपनी ही नीतियों को जारी रखेंगे. खासकर 'मेक अमेरिका ग्रेट अभियान' इस पर उनका जोर पहले की तरह ही रहेगा. आप इसे कह सकते हैं कि यह 'आत्मनिर्भर भारत' का अमेरिकन वर्जन है. वह चीन पर दबाव बढ़ाएंगे. लिहाजा, मुझे लग रहा है कि चीन के साथ अमेरिका का तनाव बढ़ेगा. विशेषकर आर्थिक और व्यापार के मुद्दों पर. सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है. जाहिर है, भारत इससे अछूता नहीं रह सकता है. सबसे अधिक विवादास्पद विषय है वैश्वीकरण और व्यापारिक व्यवस्था. ट्रंप पहले की तरह अपनी नीति पर आगे बढ़ते रहेंगे. वे अमेरिका में नौकरियों को वापस लाने पर जोर देते रहेंगे. इमीग्रेशन और वीजा के मुद्दे पर अभी हमलोगों को उनकी नीति का इंतजार करना होगा.
प्रायः देखा जाता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति अपने दूसरे कार्यकाल में ज्यादा विश्वस्त नजर आते हैं. भारत के प्ररिप्रेक्ष्य में हम जॉर्ज बुश का उदाहरण देख सकते हैं. परमाणु मुद्दे पर किस तरह से भारत और अमेरिका के बीच समझ बढ़ी थी. दोनों देशों के बीच बड़ी डील हुई.
अगर ट्रंप चुनाव नहीं जीतते हैं और बाइडेन को विजय हासिल होती है, तो हम बदलाव अवश्य ही देखेंगे. यह घरेलू नीतियों में भी देखने को मिलेगा और विदेश नीति में भी इसे देखा जाएगा. सूक्ष्म स्तर पर एक परिवर्तन दिखने की पूरी संभावना है. वे अपने सहयोगी कमला हैरिस के साथ हीलिंग नीति अपना सकते हैं. अमेरिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती ध्रुवीकरण की है. आप जानते हैं कि अमेरिका एक बहु विविध समाज है. यहां पर आप्रवासियों की बड़ी तादाद है. अधिकांश अमेरिकन मानते हैं कि बाहर से आए हुए लोगों ने अमेरिकन समाज को संपन्न किया है. अर्थव्वस्था मजबूत की है. लेकिन पिछले चार सालों में ये सारे दृष्टिकोण बाधित हुए हैं. निश्चित तौर पर इस विश्वास को फिर से बहाल किया जाएगा. ये कुछ ऐसे बदलाव हैं, जिसकी उम्मीद की जा सकती है.
अमेरिका और भारत- एक सबसे बड़ा और दूसरा सबसे पुराना प्रजातांत्रिक देश है, इनके सामने दो प्रमुख चुनौती है. एक है कोविड की समस्या और दूसरी है असुरक्षित समुदाय के नागरिकों को मदद पहुंचाना. यह सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण ढांचागत समस्या है.
अमेरिका में हाल के वर्षों में नागरिक हिंसा भी देखने को मिली है. क्या चुनाव के परिणाम की वजह से ऐसा फिर देखने को मिल सकता है.
जिस तरीके से लोग इस चुनाव पर अपनी-अपनी टिप्पणियां कर रहे हैं, उससे चिंताएं तो बढ़ी हैं. आज ही ट्रंप जिस तरीके से अपने क्षेत्र में लोगों को प्रेरित कर रहे थे, उन्होंने तो अपनी जीत की घोषणा ही कर दी. उनका ट्वीट देखकर कह सकता हूं कि वे बहुत ही डरावने रहे हैं. उन्होंने लिखा- सावधान रहें, वे चुनाव की चोरी कर सकते हैं. बिना किसी सबूत के आप ऐसा कैसे कह सकते हैं. इसका मतलब यह है कि यदि वे चुनाव हार गए, तो वे इसे एक आधार बना सकते हैं. क्या इसका जवाब गैर संवैधानिक तरीके से देने के लिए उकसा रहे हैं. शहरों की गलियों में ट्रंप के समर्थक जुट रहे हैं. मुझे लगता है कि यह बहुत ही खतरनाक है. कई प्रमुख शहरों के स्टोर्स मालिकों ने अपनी दुकानें बंद रखने पर विचार किया है, क्योंकि उन्हें हिंसा की आशंका है. आने वाले वर्षों में इसका अलग ही असर देखने को मिल सकता है. डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अफ्रीकन-अमेरिकन अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं.
चीन के आक्रामक रवैए के मद्देनजर आप किस नेता को बेहतर मानते हैं, जो उनके दबदबे पर नकेल कस सकता है.
आप चाहे ट्रंप की कितनी भी आलोचना क्यों न कर लें, उन्हें अभद्र, अशिष्ट कह लें, लेकिन उन्होंने अमेरिका को चीन के चैलेंज के प्रति जागरूक तो अवश्य ही कर दिया है. वे यह समझाने में कामयाब रहे हैं कि चीन रणनीतिक रूप से चुनौती होने जा रहा है. इस लिहाज से देखें, तो ट्रंप ने जो काम किए हैं, आजतक किसी भी अमेरिकन राष्ट्रपति ने ऐसा नहीं किया है. भारत के लिहाज से देखें, तो कुछ हद तक ट्रैक्शन देखने को मिल सकता है. आखिर दोनों चाहते हैं कि आक्रामक और महत्वाकांक्षी चीन पर लगाम लग सके.
बाइडेन चीन के प्रति परंपरागत नीति ही अपनाएंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि वे आठ सालों तक उप राष्ट्रपति रह चुके हैं. वे चीन को बेहतर तरीके से जानते हैं. वे ट्रंप से ज्यादा समय तक राजनीति में रह चुके हैं. हां, थोड़ा बहुत बदलाव देखने को मिल सकता है.