नई दिल्ली : अब तक मिले संकेत इस बात का इशारा कर रहे हैं कि सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (इसाक-मुइवा) (NSCN-IM) के बीच चल रही नगा शांति प्रक्रिया खतरे में है और विघटित हो रही है. दरअसल, असम राइफल्स अर्धसैनिक बल और अरुणाचल प्रदेश पुलिस के जवानों की एक संयुक्त टीम ने छह एनएससीएन-आईएम विद्रोहियों को मार गिराया गया. इस टीम में सेना के लगभग 80 सैन्यकर्मी शामिल थे. इस दौरान असम राइफल्स का एक जवान भी घायल हुआ है. फिलहाल उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है.
क्या है घटना
सुरक्षा सूत्रों के अनुसार, एनएससीएन (आईएम) समूह एके-47, चीनी निर्मित एमक्यू राइफल्स और अन्य हथियारों से लैस लोंगडिंग जिले में न्यानु गांव के पास एक पहाड़ी के शीर्ष के पास देखा गया था. इसके बाद शनिवार को सुबह 4:30 बजे सुरक्षाबलों और उग्रवादियों के बीच गोलीबारी शुरू हुई.
ईटीवी भारत के सूत्र ने बताया, 'आगे बढ़ने से पहले कुछ समय तक इंतजार करते रहे, इसलिए पूरे ऑपरेशन में लगभग दो घंटे लग गए. हालांकि, गोलाबारी केवल 20 मिनट तक हुई.'
सूत्र ने कहा कि अभी इस बात की पुष्टि होनी है कि क्या वहां पर एनएससीएन (आईएम) को और भी विद्रोही मौजूद थे.
घटाने के लेकर सरकारी अधिकारियों ने कहा कि एनएससीएन (आईएम) की टीम ने लोंगडिंग के एक व्यवसायी के अपहरण के लिए नीनू और नगीसा गांव के बीच जंगलों में अपना शिविर लगाया था.
शनिवार की घटना के बाद नगालैंड की राजधानी कोहिमा के पास एक गांव चेडेमा से एंटी टैंक ग्रेनेड, मोर्टार बम, स्नाइपर गोला-बारूद और युद्ध में इस्तेमाल होने वाली अन्य सामाग्री बरामद की गई.
इससे पहले शुक्रवार को भी, NSCN (IM) कैडर को राज्य की वाणिज्यिक राजधानी दीमापुर से बड़ी मात्रा में हथियारों के साथ गिरफ्तार किया गया था.
क्यों और कैसे
सरकार और NSCN (IM) के बीच पिछले 23 वर्षों से बातचीत चल रही है. उल्लेखनीय है कि संघर्ष विराम नियम केवल नगालैंड राज्य में लागू होते हैं, जबकि यह संघर्ष विराम नियम अरुणाचल प्रदेश या मणिपुर में लागू नहीं होते, जो मणिपुर में तंगखाल व माओ और अरुणाचल में नोक्टे व वानचो जैसी प्रमुख जनजातियों का घर है.
लोंगडिंग एनकाउंटर इस समय ही क्यों हुआ इससे पहले क्यों नहीं. दोनों राज्यों में एनएससीएन (आईएम) कैडर नगा बहुल क्षेत्रों में खुलेआम अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं.
उत्तर शायद इस तथ्य में छिपा है कि नगा मुद्दे पर बातचीत की प्रक्रिया धीरे-धीरे पिछले कुछ वर्षों में अपना महत्व खोती गई, जब तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पीएम आवास पर नगा विद्रोही नेताओं को 'फ्रेमवर्क एग्रीमेंट' पर हस्ताक्षर के लिए आमंत्रित नहीं किया गया.
NSCN (IM) पूर्ण संप्रभुता की अपनी मांग से एक कदम पीछे साझा संप्रभुता की मांग पर आने के बाद से लगातार बैकफुट पर रहा है. वहीं, नई दिल्ली ने 'ग्रेटर नगालिम' की मांग कर रहे संगठन को एक अलग झंडा और एक अलग संविधान देने से भी इनकार कर दिया.
इतना ही नहीं हाल ही में राज्य के राज्यपाल आर.एन. रवि ने 6 जून, 2020 को जोरदार शब्दों में मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर विद्रोही संगठनों की तुलना 'सशस्त्र गिरोहों' से की, जो बड़े पैमाने पर जबरन वसूली और गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे. यह गिरोह राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति को ध्वस्त कर चुके थे.
इसके ठीक एक दिन बाद यानी सात जुलाई को नगालैंड सरकार ने अपने कर्मचारियों को एक घोषणा पत्र प्रस्तुत करने का आदेश दिया है, जिसमें परिवार के उन सदस्यों या रिश्तेदारों की जानकारी का विवरण मांगा गया है, जो विद्रोही संगठनों से जुड़े हैं.
इस प्रकार सरकार और NSCN (IM) के बीच चल रही बातचीत ने पेशेवर सौहार्द के साथ बातचीत का नया रास्ता दिखाया, जिसमें न तो पक्षों के बीच गतिरोध है, और न कोई टकराव. लेकिन शनिवार को हुई मुठभेड़ ने फिर से शत्रुता के संकेत दिए हैं.
सरकार का लक्षय
दूसरी ओर, पिछले कुछ वर्षों में कुछ अन्य नगा विद्रोही संगठनों ने NSCN (IM) से प्रतिस्पर्धा की है. इन संगठनों के साथ सरकार ने बातचीत की एक श्रृंखला शुरू की है. इन विद्रोही संगठनों द्वारा लगाए गए टैक्स का नागा समाज के कुछ वर्गों द्वारा विरोध किया गया, जो सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करने में कामयाब रहे.
नतीजतन, एक आक्रामक और कमजोर एनएससीएन (आईएम) सरकार का विरोध कर रही है. सरकार अब यह जांचना चाहती है कि सरकार के विरोध में संगठन किस हद तक आगे बढ़ेगा. यह कहा जा सकता है कि शनिवार को नगा विद्रोहियों को निशाना बनाकर सरकार ने NSCN-IM की क्षमता का परीक्षण किया है.
NSCN (IM) के सामने विकल्प
NSCN (IM) के सामने अब केवल तीन ही विकल्प मौजूद हैं. पहला यह कि सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई न करे और सरकार जो भी दे कम या अधिक स्वीकार करने के लिए तैयार रहे. इस स्थिति में, उन्हें अपने ही लोगों से सवालों का सामना करना पड़ेगा.
दूसरा विकल्प यह है कि म्यांमार के शिविरों से संचालित एनएससीएन के खापलांग गुट को मामले में बातचीत से बाहर निकलकर सरकार के खिलाफ जवाबी कदम उठाए और सरकार के खिलाफ आक्रामकता अपनाए.
लेकिन इस स्थिति में एनएससीएन (आईएम) के विद्रोहियों को लगेगा कि बातचीत करना रुबिकॉन (विरोधियों पर जीत दिखाने की एक्टिंग करना) रहा. हालांकि, यह सब इतना आसान नहीं हो सकता है. सरकार इस तरह की कार्रवाई शुरू करने की कोशिश कर रही है, ताकि पहले से ही मजबूत कदम उठाए जा सकें.
तीसरा रास्ता यह है कि अगर एनएससीएन (आईएम) झूठ बोलने और प्रतिक्रिया न करने की रणनीति का निर्णय लेता है, ताकि वह सरकार को अपनी शर्तों पर राजी कर सके.
इस स्थिति में केवल समय ही बताएगा कि क्या रणनीति अपनाई जाएगी, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि नगा उग्रवादी आंदोलन अपने सात-दशकों के इतिहास में सबसे कठिन समय का सामना कर रहा है.