पटना : हाल के दिनों में हुई सिंडिकेट की बैठक में पटना विश्वविद्यालय के लिए 583.98 करोड़ का बजट पारित किया गया है. बजट में पटना विश्वविद्यालय के पुराने गौरवशाली गरिमा को पुनः वापस लाने के लिए शोध और इंफ्रास्ट्रक्चर पर विशेष ध्यान दिया गया है.
कुलपति प्रोफेसर गिरीश कुमार चौधरी ने बताया कि इस बार सिंडिकेट की बैठक में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शोध पर विशेष ध्यान देने की चर्चा हुई है. प्रयास है कि विश्वविद्यालय में शोध पत्रिकाओं की गुणवत्ता में सुधार हो और इसके लिए अलग से बजट का भी प्रावधान किया गया है. विश्वविद्यालय में अधिक से अधिक शोध पत्र छपे और प्रतिष्ठित जर्नल में भी इन शोध पत्रों को जगह मिले.
पीयू को कहा जाता था 'पूरब का ऑक्सफोर्ड'
कभी पटना विश्वविद्यालय को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' कहा जाता था. मगर हाल के दिनों में जब नैक का ग्रेडेशन हुआ था तब पीयू के शोध की गुणवत्ता पर काफी सवाल उठे. यूजीसी ने भी विश्वविद्यालय के कई शोध पेपर और जर्नल को सवालों के घेरे में रखा है. ऐसे में जब पटना विश्वविद्यालय में पुरानी गरिमा वापस लाने की बात हो रही है. पटना विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी डॉ रास बिहारी सिंह ने बताया कि वह जब 1967 में विश्वविद्यालय में दाखिला लिए थे तब विश्वविद्यालय की ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट के तौर पर जाना जाता है.
'...तब की बात कुछ और थी'
पूर्व वीसी रास बिहारी सिंह ने बताया कि जब वह दाखिले के लिए थे तब विश्वविद्यालय में एक अलग माहौल हुआ करता था. सुबह 9:00 बजते ही विश्वविद्यालय कैंपस में एक अलग शैक्षणिक माहौल दिखने को मिलता था और शाम 5:00 बजे तक ऐसा ही माहौल बना रहता था. विश्वविद्यालय के सभी शिक्षक और प्रोफेसर समय से पहले विश्वविद्यालय में आ जाया करते थे और शाम 5:00 बजने के बाद भी कई प्रोफेसर विश्वविद्यालय में बने रहते थे.
'70 फीसदी छात्र रहे थे मौजूद'
1967 के समय में लगभग 70% छात्र भी मौजूद रहते थे. उस जमाने में शिक्षकों को विश्वविद्यालय में अपना पूरा समय देने के लिए कोई अधिसूचना की जरूरत नहीं पड़ती थी. उन्होंने बताया कि उनके समय में शिक्षकों का एक वैभव हुआ करता था. किसी भी शिक्षक को पूरे सम्मान की नजर से देखा करते थे और शिक्षक से नजर पड़ते ही छात्र सहम जाते थे. सभी शिक्षक बहुत समर्पित शिक्षक हुआ करते थे.
'जेपी आंदोलन के बाद शिक्षा का गिरा स्तर'
पूर्व वीसी रासबिहारी सिंह ने कहा कि वह मानते हैं कि जयप्रकाश नारायण ने समाज को बहुत कुछ दिया है. मगर जब वह शिक्षा के क्षेत्र में सोचते हैं, तो यह पाते हैं कि जेपी आंदोलन के बाद प्रदेश में शिक्षा के पतन की शुरुआत हुई. आंदोलन के कारण विश्वविद्यालय का शैक्षणिक सत्र लेट हो गया था और उसके बाद छात्रों में परीक्षा के दौरान चोरी करने की नई आदत भी पनप गई. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की गुणवत्ता में पतन और भी कई कारणों से आए जिसमें एक प्रमुख कारण टाइमबॉन्ड में शिक्षकों को प्रमोशन देने का निर्णय है.
'लेक्चरर को बनाया जाता था प्रोफेसर'
रासबिहारी सिंह बताते हैं कि बिहार में एक समय ऐसा आया की सरकार ने निर्णय लिया कि जिन लोगों ने विश्वविद्यालय में 20 वर्षों तक लेक्चरर का काम किया है उसे प्रोफेसर बना दिया जाए. उस समय प्रोफेसर बनना आसान बात नहीं थी. लेकिन धीरे-धीरे पीयू का ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट का दर्जा खत्म होता चला गया. उन्होंने बताया कि बाद में विश्वविद्यालय में शिक्षकों की कमी होती चली गई और यह भी गुणवत्ता में गिरावट का एक बड़ा कारण रहा.
2018 में सुधार की कोशिश
पूर्व वीसी रास बिहारी सिंह ने कहा कि वह अपने कार्यकाल में 2018 में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय में एकेडमिक ऑडिटिंग की शुरूआत की. लेकिन विशेष ध्यान नहीं दिया गया. रासबिहारी सिंह का मानना है कि इसपर सख्ती बतरने की जरूरत है. विश्वविद्यालय में 1 साल में लगभग 7 से 8 महीने ही कक्षाएं चलती हैं. ऐसे में बाकी समय में शिक्षकों को यह परफॉर्मेंस रिपोर्ट पेश करना होगा कि आपने कितने छात्रों को पीएचडी कराया. एकेडमिक ऑडिटिंग में यह आता है कि किसी शिक्षक ने कितने रिसर्च पेपर सबमिट किए और कितने सेमिनार आयोजित कराए या फिर कितने इनोवेटिव कार्य किए और अपनी जो रिसर्च पेपर लिखा वह किस जर्नल में पब्लिश हुआ. अगर स्टैंडर्ड जर्नल में छपा तो उसका साइटेशन वैल्यू है की नहीं.
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रेगुलर प्रकाशन से भी सुधार संभव
रासबिहारी सिंह का कहना है कि गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए यह भी किया जा सकता है कि विश्वविद्यालय में जो फैकेल्टी जर्नल्स निकलते हैं इसका रेगुलर प्रकाशन हो. उन्होंने बताया कि शोध प्रकाशन के लिए एक करोड़ रुपया फिक्स है. ऐसे में इसका सदुपयोग करने की जरूरत है. इसके साथ ही विश्वविद्यालय के रिसर्च जर्नल को यूजीसी के केयर लिस्ट में डालने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि यह तभी होगा जब यह जर्नल रेगुलर छपने लगे और क्वालिटी पेपर छपे.
फिलहाल रिसर्च का हाल बेहाल
पटना विश्वविद्यालय के छात्र अली ने बताया कि विश्वविद्यालय में वर्तमान समय में रिसर्च की बात करें तो हाल बहुत खराब है और इसका प्रमुख कारण है कि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की घोर कमी है. कई विभाग एडहॉक प्रोफेसर के भरोसे चल रहे हैं. एक प्रोफेसर 8 स्टूडेंट को एक बार में रिसर्च करा सकते हैं, एसोसिएट प्रोफेसर 6 स्टूडेंट्स को और असिस्टेंट प्रोफेसर 4 स्टूडेंट को रिसर्च करा सकते हैं. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में जिस विभाग में प्रोफ़ेसर हैं. वहां शोध की फैसिलिटी नहीं है और जहां फैसिलिटी है वहां प्रोफेसर नहीं है.