हैदराबाद : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मीडिया में जोर-शोर से चर्चा थी कि इस बार परिवर्तन देखने को मिल सकता है. महागठबंधन में अंदरुनी खींचतान नहीं है. नेतृत्व को लेकर फैसला हो चुका है. कांग्रेस को राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर पूरा भरोसा है. ऊपर से वाम दलों में भी न सिर्फ एक राय बनी, बल्कि सभी वाम पार्टियां पहली बार महागठबंधन का हिस्सेदार भी बनने को तैयार हो गईं. इसके बाद ऐसा लग रहा था कि वोटों का समीकरण महागठबंधन के पक्ष में जा रहा है. सर्वे और एग्जिट पोल ने भी ऐसा ही दावा किया, लेकिन परिणाम उसके अनुरूप नहीं आया. जीत एनडीए को मिली. वैसे, अंत समय तक यह कहना मुश्किल था कि बिहार में किसकी सरकार बनेगी.
एनडीए को 125, महागठबंधन को 110 और लोजपा को एक सीट मिली. अन्य को सात सीटें मिलीं. बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं. बहुमत के लिए 122 सीट चाहिए.
चुनाव प्रचार के दौरान सबसे अधिक चर्चा तेजस्वी यादव की सभाओं में उमड़नेवाली भीड़ की रही. महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच सबसे अधिक मांग तेजस्वी की ही थी.
राहुल गांधी ने बहुत अधिक सभाएं नहीं कीं. सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने चुनाव प्रचार के दौरान हिस्सा नहीं लिया. परिणाम आने के बाद महागठबंधन के नेताओं ने इसे कांग्रेस की कमजोरी बताया. राजद नेता शिवानंद तिवारी ने तो ऐसी टिप्पणी कर दी, जिसे लेकर कांग्रेस राजद से नाराज हो गई. तिवारी ने कहा कि चुनाव के समय राहुल गांधी शिमला में पिकनिक मना रहे थे. राहुल गांधी केवल तीन दिन के लिए बिहार आए.
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राहुल गांधी जी के बारे में बिहार में महागठबंधन के सहयोगी पार्टी RJD के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि राहुल गांधी नॉन सीरीयस पर्यटक राजनेता है।
— Shandilya Giriraj Singh (@girirajsinghbjp) November 15, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
शिवानंद जी तो राहुल जी को ओबामा से ज़्यादा जानने लगे है ।
फिर भी कांग्रेस चुप क्यू ? pic.twitter.com/mWD6ToQYCJ
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शिवानंद जी तो राहुल जी को ओबामा से ज़्यादा जानने लगे है ।
फिर भी कांग्रेस चुप क्यू ? pic.twitter.com/mWD6ToQYCJराहुल गांधी जी के बारे में बिहार में महागठबंधन के सहयोगी पार्टी RJD के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि राहुल गांधी नॉन सीरीयस पर्यटक राजनेता है।
— Shandilya Giriraj Singh (@girirajsinghbjp) November 15, 2020
शिवानंद जी तो राहुल जी को ओबामा से ज़्यादा जानने लगे है ।
फिर भी कांग्रेस चुप क्यू ? pic.twitter.com/mWD6ToQYCJ
कुछ नेताओं ने कहा कि कांग्रेस को उसकी जीतने की क्षमता से अधिक सीट दे दी गईं और ऐसा नहीं होता, तो महागठबंधन की जीत पक्की थी. वरिष्ठ वकील और कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठा दिए.
तेजस्वी यादव ने चुनाव की शुरुआत में रोजगार का मुद्दा उठाया. उन्होंने पहली कैबिनेट में 10 लाख युवाओं को नौकरी देने की बात कही. इसके बाद यह मुद्दा धीरे-धीरे कर मीडिया में अपना असर दिखाने लगा. संभवतः यह एक वजह थी कि उनकी सभाओं में बड़ी-बड़ी भीड़ जुटने लगी. स्थिति को भांपकर की एनडीए ने अपनी रणनीति बदल ली. एनडीए ने अपने संकल्प पत्र में 19 लाख रोजगार के असवर पैदा करने की बात कही.
एनडीए की जीत के प्रमुख कारणों में से एक था 'जंगलराज' का मुद्दा. प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के सभी नेताओं ने बार-बार लालू और राबड़ी शासन के दौरान हुई आपराधिक वारदातों का जिक्र किया.
उन्होंने कहा कि आपने उन्हें वोट दिया, तो एक बार फिर से 'जंगलराज' वापस आ जाएगा. दूसरा प्रमुख कारण था-जातीय समीकरण. और तीसरा प्रमुख कारण रहा - ओवैसी फैक्टर. सीमांचल के इलाके में ओवैसी ने महागठंधन को जोरदार झटका दिया, वहां पर उन्होंने पांच सीटें हासिल कर सबको चौंका दिया. इससे भी बड़ी बात ये रही कि उन्होंने सीमांचल के कई इलाकों में महागठबंधन के उम्मीदवारों की हार को पक्का कर दिया. इससे एनडीए को वहां पर बढ़त मिली.
एनडीए में इस बार भाजपा बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लोजपा महजा एक सीट पर जीती, लेकिन उसने कई सीटों पर जदयू का खेल बिगाड़ दिया. चुनाव प्रचार के दौरान चिराग पासवान एक तरफ नीतीश का विरोध करते, वहीं दूसरी ओर वह बार-बार पीएम मोदी की तारीफ करते रहते. उन्होंने अपने आपको उनका 'हनुमान' तक बता दिया. हालांकि, बड़ी पार्टी होने के बावजूद भाजपा ने सीएम पद को लेकर अपना दावा पेश नहीं किया. मंत्रिमंडल में पिछली बार जो विभाग जदयू के पास थे, इस बार भी वही सारे विभाग उनके पास हैं. इसलिए यह कहना कि नीतीश किसी दबाव में हैं, उचित नहीं होगा.