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दुनिया की सबसे सस्ती कोरोना वैक्सीन का उत्पादन भारत बायोटेक का लक्ष्य

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Published : Jul 1, 2020, 10:59 PM IST

Updated : Jul 2, 2020, 12:49 AM IST

ईटीवी भारत के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, भारत बायोटेक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ कृष्णा एल्ला ने कहा कंपनी का लक्ष्य दुनिया की सबसे सस्ती कोरोना वैक्सीन का उत्पादन करना है.

Dr Krishna Ella
डॉ कृष्णा एल्ला

हैदराबाद : कोरोना महामारी से पूरी दुनिया त्रस्त है. वैक्सीन बनाने का काम जारी है. इस बीच भारत के पहले स्वदेशी कोविड-19 टीके को भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) से मानव पर परीक्षण की अनुमति मिल गई है. देश में अगले महीने से इस टीके का पहले और दूसरे चरण का परीक्षण शुरू होगा. इस विषय पर भारत बायोटेक के चेयरमैन डॉक्टर कृष्णा एल्ला ने वैक्सीन से जुड़ी कई बातों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया. प्रस्तुत है उनसे हुई खास बातचीत के प्रमुख अंश:

बता दें कि 'कोवैक्सीन' नामक टीके का विकास भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) के साथ मिलकर विकसित किया है. देश में इसी महीने में इस टीके का प्रथम और द्वितीय चरण का परीक्षण शुरू किया जाएगा.

डॉ कृष्णा एल्ला से बातचीत-1

ईटीवी भारत के साथ एक विशेष साक्षात्कार में भारत बायोटेक के प्रबंध निदेश डॉ. कृष्णा एल्ला ने टीके के विकास से जुड़ी चुनौतियों, परीक्षणों और दुनिया की सबसे सस्ती कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन से जुड़ी कई अहम जानकारी दी.

डॉ कृष्णा एल्ला से बातचीत-2

प्रश्न : वैक्सीन बनाने की होड़ मची है. क्या आपकी कंपनी एक सफल वैक्सीन बनाने वाली पहली कंपनी होगी?

डॉ.कृष्णा एल्ला : आमतौर पर हर टीका को विकसित होने में 14-15 वर्ष लगते हैं. इतने वर्षों की मेहनत को समेटकर एक साल में पूरा करना इस तरह की वैक्सीन बनाने वाली कंपनी के लिए वाकई में चुनौती भरा कार्य है.

प्रश्न : भारत बायोटेक इसे सबसे कम अवधि में लाने में सक्षम रहा है. यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. इसके विकास में सबसे अधिक किससे सहायता प्राप्त हुई. क्या वैश्विक सहयोग एक कारण हो सकता है या वैज्ञानिक साहित्य ने इसमें मदद की.

डॉ.कृष्णा एल्ला : कोरोना महामारी की शुरुआती दौर के 2-3 महीने पहले इस विषय पर अधिक जानकारी नहीं थी. हालांकि अब इससे जुड़ी कई सारे डाटा उपलब्ध हो रहे हैं. मुझे खुशी है कि चीन, अमेरिका इसे विश्व के साथ साझा कर रहे हैं. यह वाकई में बड़ी अच्छी बात है, लेकिन निर्माताओं की तरफ से, कुछ भी प्रकाशित नहीं हुआ है. जो कुछ भी प्रकाशित किया गया है वह पशु और नैदानिक आंकड़े ​​हैं.

विनिर्माण का व्यापार हमेशा रहस्य रहता है. इसलिए वैक्सीन निर्माण से जुड़ी कोई भी जिज्ञासा सार्वजनिक नहीं की जाती है. कोई भी निर्माण प्रक्रिया आमतौर पर पेटेंट के लिए भी दायर नहीं की जाती है. वह सभी इसे कंपनी के भीतर स्वामित्व, तकनीकी जानकारी के रूप में रखते हैं.

प्रश्न : क्या आप हमें बता सकते हैं कि टीके को बाजार में लाने से पहले परीक्षण प्रक्रिया कैसे शुरू होती है?

डॉ.कृष्णा एल्ला : नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी), पुणे ने वायरस को आइसोलेट किया. उन्होंने वायरस की विशेषता बताई और वह वायरस हमें दिया जा रहा है. फिर हम रिसर्च एंड डेवलपमेंट बैच और फिर जीएमपी बैच का निर्माण करते हैं.

प्रश्न : हम एक वैक्सीन के कितने करीब हैं?

डॉ.कृष्णा एल्ला : निश्चित रूप से एक वैक्सीन तो बनेगा ही. हम तीन प्लेटफार्मों पर काम कर रहे हैं और हमें यकीन है कि दो प्लेटफार्मों में यह निश्चित रूप से काम करेगा. सैकड़ों रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनियां हैं, लेकिन केवल कुछ ही विनिर्माण कंपनियों के पास वैक्सीन निर्माण का अनुभव है.

प्रश्न : भारत में नीति आयोग ने कहा है कि छह उम्मीदवार हैं, जिन्होंने इस सूची में शामिल हैं. भारतीय निर्माता इसको किस तरह से देख रहे हैं? भारत में प्रयोगशालाओं और निर्माताओं के बीच का अनुपात क्या है?

डॉ.कृष्णा एल्ला : भारत में अधिकांश निर्माता वैक्सीन क्षेत्र में हैं और रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) कंपनियां बहुत कम हैं. उनके पास गुणवत्ता नियंत्रण और वैक्सीन अनुसंधान में विशेषज्ञता नहीं है.

यह एक लंबी प्रक्रिया है, अमेरिका में कई रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनियां हैं. भारत में, विनिर्माण कंपनियां भी रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनियां हैं. भारत बायोटेक भी एक रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनी है जिसमें वर्तमान में 100 से अधिक वैज्ञानिक काम कर रहे हैं.

प्रश्न : बीएसएल-3 : क्या यह दिशानिर्देशों का एक सेट है? क्या आप बता सकते हैं कि वाकई में यह क्या है?

डॉ.कृष्णा एल्ला : बीएसएल का मतलब है बायो सेफ्टी लेवल. सबसे निचली श्रेणी बीएसएल-1 और बीएसएल-3 सबसे ऊंची है. इसी तरह, हमारे पास बीएसएल लैब भी हैं. भारत बायोटेक बीएसएल-3 उत्पादन सुविधा वाली शायद एकमात्र कंपनी है. चीन ने हाल ही में बीएसएल-3 सुविधा बनाने के लिए 200 मिलियन डॉलर मंजूर किए. अमेरिका भी एक निर्माण करने जा रहा है.

यदि हमारे पास बीएसएल -3 की सुविधा नहीं है तो भारत में एक निष्क्रिय वैक्सीन के निर्माण की अनुमति नहीं होती है. इस सुविधा के बिना, हम जीवित वायरस के टीके नहीं बना सकते हैं. हम सही रास्ते पर हैं.

प्रश्न : बहुत सारे निर्माता निष्क्रिय वायरस के निर्माण के लिए वेरो सेल तकनीक का उपयोग कर रहे हैं. क्या भारत बायोटेक भी उसी प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहा है या कंपनी ने कुछ अनूठा विकसित किया है?

डॉ.कृष्णा एल्ला : हम एक ही मंच का उपयोग कर रहे हैं. यदि हम एक अलग मंच का उपयोग करते हैं तो अधिक नियामक बाधाएं पेश आएंगी. मेरे पास दो उत्पाद होंगे. सेल कल्चर और वायरस, ऐसे में आपको दो उत्पादों को चिन्हित करना होगा जो कि जटिल हो जाएगा.

वेरो सेल प्रौद्योगिकी एक रेगुलेटरी एंगल के हिसाब से एक सिद्ध मंच है. इस मंच पर हमारे पास अधिक विशेषज्ञता है.

प्रश्न : अगर वैक्सीन का निर्माण हो जाता है, तो इसकी वैश्विक मांग बढ़ जाएगी. ऐसे में उत्पादन को कैसे बढ़ाया जाएगा.

डॉ.कृष्णा एल्ला : हम वैक्सीन निर्माण के शुरुआती चरणों में हैं- वायरस को कैसे विकसित किया जाए, जीएमपी बैच कैसे बनाया जाए, टॉक्सिकोलॉजी कैसे की जाए और क्लिनिकल परीक्षण कैसे किया जाए. साथ-साथ, हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए.

हम दुनिया में रोटा वायरस, रेबीज वैक्सीन के सबसे बड़े निर्माता हैं. यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि हमारे पास क्षमता है, हमारे पास मापनीयता है. लेकिन इस वायरस के लिए, हमें इसे पुष्टि करने में वक्त लगेगा.

प्रश्न : आपको वास्तव में सरकार और राष्ट्रीय संस्थानों से किस तरह की मदद मिली जो इस महामारी पर अपनी नजरें बनाए हुए हैं.

डॉ.कृष्णा एल्ला : हमें सरकार का समर्थन प्राप्त है. इस बारे में कोई सवाल नहीं है. यह टीका सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत है. एक निर्माता के तौर पर, हमारी सीमाएं हैं.

प्रश्न : क्या कोरोना के लिए एक ही टीके की आवश्यकता होगी ?

डॉ. कृष्णा एल्ला : सभी आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) वायरस बहुत तेजी से उत्परिवर्तन के माध्यम से बदलते हैं. मूल रूप से, एक वायरस एक जीवित जीव नहीं है. वह स्वयं कार्य नहीं कर सकता है. इसलिए वह मानव शरीर को अपना माध्यम बनाकर अपनी संख्या को गति देता है.

प्रश्न : जब हम मूल्य निर्धारण को देखते हैं तो क्या यह बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचने के बाद आम आदमी के लिए सस्ती होगी?

डॉ. कृष्णा एल्ला : रोटावायरस वैक्सीन अमेरिका में 65 और यूरोप में 80 डॉलर में बेचा जाता है. हमने प्रधानमंत्री को बताया कि हम इसे एक डॉलर प्रति डोज पर बेचेंगे. हम इसे दुनिया में सबसे कम कीमत पर बेचेंगे. COVID-19 वैक्सीन की बात करें तो हम चीन से 10 गुना सस्ते में इसे बाजार में लाएंगे.

प्रश्न : हम किस तरह की तार्किक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं? क्या अधिक से अधिक लोगों को टीका का लाभ पहुंचाने में समय लगेगा?

डॉ.कृष्णा एल्ला : यदि सरकार प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाती है तो अगले साल तक 1.3 बिलियन लोगों का टीकाकरण संभव है.

कृष्णा एल्ला ने कोरोना महामारी और कोवैक्सीन नामक टीके के विकास से जुड़ी कई बातें ईटीवी भारत से साझा की. उन्होंने इस दौरान कई ऐसी बातें बताईं जो आने-वाले समय में कोरोना वैक्सीन के निर्माण में कारगर सिद्ध हो सकती हैं.

हैदराबाद : कोरोना महामारी से पूरी दुनिया त्रस्त है. वैक्सीन बनाने का काम जारी है. इस बीच भारत के पहले स्वदेशी कोविड-19 टीके को भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) से मानव पर परीक्षण की अनुमति मिल गई है. देश में अगले महीने से इस टीके का पहले और दूसरे चरण का परीक्षण शुरू होगा. इस विषय पर भारत बायोटेक के चेयरमैन डॉक्टर कृष्णा एल्ला ने वैक्सीन से जुड़ी कई बातों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया. प्रस्तुत है उनसे हुई खास बातचीत के प्रमुख अंश:

बता दें कि 'कोवैक्सीन' नामक टीके का विकास भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) के साथ मिलकर विकसित किया है. देश में इसी महीने में इस टीके का प्रथम और द्वितीय चरण का परीक्षण शुरू किया जाएगा.

डॉ कृष्णा एल्ला से बातचीत-1

ईटीवी भारत के साथ एक विशेष साक्षात्कार में भारत बायोटेक के प्रबंध निदेश डॉ. कृष्णा एल्ला ने टीके के विकास से जुड़ी चुनौतियों, परीक्षणों और दुनिया की सबसे सस्ती कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन से जुड़ी कई अहम जानकारी दी.

डॉ कृष्णा एल्ला से बातचीत-2

प्रश्न : वैक्सीन बनाने की होड़ मची है. क्या आपकी कंपनी एक सफल वैक्सीन बनाने वाली पहली कंपनी होगी?

डॉ.कृष्णा एल्ला : आमतौर पर हर टीका को विकसित होने में 14-15 वर्ष लगते हैं. इतने वर्षों की मेहनत को समेटकर एक साल में पूरा करना इस तरह की वैक्सीन बनाने वाली कंपनी के लिए वाकई में चुनौती भरा कार्य है.

प्रश्न : भारत बायोटेक इसे सबसे कम अवधि में लाने में सक्षम रहा है. यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. इसके विकास में सबसे अधिक किससे सहायता प्राप्त हुई. क्या वैश्विक सहयोग एक कारण हो सकता है या वैज्ञानिक साहित्य ने इसमें मदद की.

डॉ.कृष्णा एल्ला : कोरोना महामारी की शुरुआती दौर के 2-3 महीने पहले इस विषय पर अधिक जानकारी नहीं थी. हालांकि अब इससे जुड़ी कई सारे डाटा उपलब्ध हो रहे हैं. मुझे खुशी है कि चीन, अमेरिका इसे विश्व के साथ साझा कर रहे हैं. यह वाकई में बड़ी अच्छी बात है, लेकिन निर्माताओं की तरफ से, कुछ भी प्रकाशित नहीं हुआ है. जो कुछ भी प्रकाशित किया गया है वह पशु और नैदानिक आंकड़े ​​हैं.

विनिर्माण का व्यापार हमेशा रहस्य रहता है. इसलिए वैक्सीन निर्माण से जुड़ी कोई भी जिज्ञासा सार्वजनिक नहीं की जाती है. कोई भी निर्माण प्रक्रिया आमतौर पर पेटेंट के लिए भी दायर नहीं की जाती है. वह सभी इसे कंपनी के भीतर स्वामित्व, तकनीकी जानकारी के रूप में रखते हैं.

प्रश्न : क्या आप हमें बता सकते हैं कि टीके को बाजार में लाने से पहले परीक्षण प्रक्रिया कैसे शुरू होती है?

डॉ.कृष्णा एल्ला : नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी), पुणे ने वायरस को आइसोलेट किया. उन्होंने वायरस की विशेषता बताई और वह वायरस हमें दिया जा रहा है. फिर हम रिसर्च एंड डेवलपमेंट बैच और फिर जीएमपी बैच का निर्माण करते हैं.

प्रश्न : हम एक वैक्सीन के कितने करीब हैं?

डॉ.कृष्णा एल्ला : निश्चित रूप से एक वैक्सीन तो बनेगा ही. हम तीन प्लेटफार्मों पर काम कर रहे हैं और हमें यकीन है कि दो प्लेटफार्मों में यह निश्चित रूप से काम करेगा. सैकड़ों रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनियां हैं, लेकिन केवल कुछ ही विनिर्माण कंपनियों के पास वैक्सीन निर्माण का अनुभव है.

प्रश्न : भारत में नीति आयोग ने कहा है कि छह उम्मीदवार हैं, जिन्होंने इस सूची में शामिल हैं. भारतीय निर्माता इसको किस तरह से देख रहे हैं? भारत में प्रयोगशालाओं और निर्माताओं के बीच का अनुपात क्या है?

डॉ.कृष्णा एल्ला : भारत में अधिकांश निर्माता वैक्सीन क्षेत्र में हैं और रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) कंपनियां बहुत कम हैं. उनके पास गुणवत्ता नियंत्रण और वैक्सीन अनुसंधान में विशेषज्ञता नहीं है.

यह एक लंबी प्रक्रिया है, अमेरिका में कई रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनियां हैं. भारत में, विनिर्माण कंपनियां भी रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनियां हैं. भारत बायोटेक भी एक रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनी है जिसमें वर्तमान में 100 से अधिक वैज्ञानिक काम कर रहे हैं.

प्रश्न : बीएसएल-3 : क्या यह दिशानिर्देशों का एक सेट है? क्या आप बता सकते हैं कि वाकई में यह क्या है?

डॉ.कृष्णा एल्ला : बीएसएल का मतलब है बायो सेफ्टी लेवल. सबसे निचली श्रेणी बीएसएल-1 और बीएसएल-3 सबसे ऊंची है. इसी तरह, हमारे पास बीएसएल लैब भी हैं. भारत बायोटेक बीएसएल-3 उत्पादन सुविधा वाली शायद एकमात्र कंपनी है. चीन ने हाल ही में बीएसएल-3 सुविधा बनाने के लिए 200 मिलियन डॉलर मंजूर किए. अमेरिका भी एक निर्माण करने जा रहा है.

यदि हमारे पास बीएसएल -3 की सुविधा नहीं है तो भारत में एक निष्क्रिय वैक्सीन के निर्माण की अनुमति नहीं होती है. इस सुविधा के बिना, हम जीवित वायरस के टीके नहीं बना सकते हैं. हम सही रास्ते पर हैं.

प्रश्न : बहुत सारे निर्माता निष्क्रिय वायरस के निर्माण के लिए वेरो सेल तकनीक का उपयोग कर रहे हैं. क्या भारत बायोटेक भी उसी प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहा है या कंपनी ने कुछ अनूठा विकसित किया है?

डॉ.कृष्णा एल्ला : हम एक ही मंच का उपयोग कर रहे हैं. यदि हम एक अलग मंच का उपयोग करते हैं तो अधिक नियामक बाधाएं पेश आएंगी. मेरे पास दो उत्पाद होंगे. सेल कल्चर और वायरस, ऐसे में आपको दो उत्पादों को चिन्हित करना होगा जो कि जटिल हो जाएगा.

वेरो सेल प्रौद्योगिकी एक रेगुलेटरी एंगल के हिसाब से एक सिद्ध मंच है. इस मंच पर हमारे पास अधिक विशेषज्ञता है.

प्रश्न : अगर वैक्सीन का निर्माण हो जाता है, तो इसकी वैश्विक मांग बढ़ जाएगी. ऐसे में उत्पादन को कैसे बढ़ाया जाएगा.

डॉ.कृष्णा एल्ला : हम वैक्सीन निर्माण के शुरुआती चरणों में हैं- वायरस को कैसे विकसित किया जाए, जीएमपी बैच कैसे बनाया जाए, टॉक्सिकोलॉजी कैसे की जाए और क्लिनिकल परीक्षण कैसे किया जाए. साथ-साथ, हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए.

हम दुनिया में रोटा वायरस, रेबीज वैक्सीन के सबसे बड़े निर्माता हैं. यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि हमारे पास क्षमता है, हमारे पास मापनीयता है. लेकिन इस वायरस के लिए, हमें इसे पुष्टि करने में वक्त लगेगा.

प्रश्न : आपको वास्तव में सरकार और राष्ट्रीय संस्थानों से किस तरह की मदद मिली जो इस महामारी पर अपनी नजरें बनाए हुए हैं.

डॉ.कृष्णा एल्ला : हमें सरकार का समर्थन प्राप्त है. इस बारे में कोई सवाल नहीं है. यह टीका सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत है. एक निर्माता के तौर पर, हमारी सीमाएं हैं.

प्रश्न : क्या कोरोना के लिए एक ही टीके की आवश्यकता होगी ?

डॉ. कृष्णा एल्ला : सभी आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) वायरस बहुत तेजी से उत्परिवर्तन के माध्यम से बदलते हैं. मूल रूप से, एक वायरस एक जीवित जीव नहीं है. वह स्वयं कार्य नहीं कर सकता है. इसलिए वह मानव शरीर को अपना माध्यम बनाकर अपनी संख्या को गति देता है.

प्रश्न : जब हम मूल्य निर्धारण को देखते हैं तो क्या यह बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचने के बाद आम आदमी के लिए सस्ती होगी?

डॉ. कृष्णा एल्ला : रोटावायरस वैक्सीन अमेरिका में 65 और यूरोप में 80 डॉलर में बेचा जाता है. हमने प्रधानमंत्री को बताया कि हम इसे एक डॉलर प्रति डोज पर बेचेंगे. हम इसे दुनिया में सबसे कम कीमत पर बेचेंगे. COVID-19 वैक्सीन की बात करें तो हम चीन से 10 गुना सस्ते में इसे बाजार में लाएंगे.

प्रश्न : हम किस तरह की तार्किक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं? क्या अधिक से अधिक लोगों को टीका का लाभ पहुंचाने में समय लगेगा?

डॉ.कृष्णा एल्ला : यदि सरकार प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाती है तो अगले साल तक 1.3 बिलियन लोगों का टीकाकरण संभव है.

कृष्णा एल्ला ने कोरोना महामारी और कोवैक्सीन नामक टीके के विकास से जुड़ी कई बातें ईटीवी भारत से साझा की. उन्होंने इस दौरान कई ऐसी बातें बताईं जो आने-वाले समय में कोरोना वैक्सीन के निर्माण में कारगर सिद्ध हो सकती हैं.

Last Updated : Jul 2, 2020, 12:49 AM IST
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