नई दिल्ली: महात्मा गांधी और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के रिश्ते पर कई तरह के भ्रम हैं. कहा जाता है कि कई मुद्दों पर दोनों का नजरिया और विचारधारा अलग थी. कांग्रेस के पूर्व सांसद और अर्थशास्त्री डॉ बालचंद मुंगेकर ने गांधी और आंबेडकर के रिश्तों, उनकी विचारधारा और दृष्टिकोण पर विस्तार से जानकारी दी.
गांधी की 150वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए डॉ बालचंद मुंगेकर ने बताया कि गांधी और आंबेडकर के रिश्तों के बारे में बहुत सारे भ्रम हैं. पिछले 60-70 सालों में लोग गांधी और आंबेडकर को एक दूसरे के विरोधाभास के रूप में प्रस्तुत करते आए हैं. लेकिन दोनों की सोच में सामाजिक संरचना, शैक्षणिक नीतियों और अन्य विषयों को लेकर मौलिक अंतर था.
पूर्व कांग्रेस सांसद ने बताया कि 1916 में लोकमान्य तिलक के समय में मुस्लिमों को अलग निर्वाचक बनाए जाने की मांग के बाद मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच विरोध पैदा हो गया था. आंबेडकर का कहना था कि जब मुस्लिम और सिख समुदाय अलग निर्वाचक हैं तो अनुसूचित जाति क्यों नहीं? वहीं, गांधी जी का कहना था कि SC / ST को संयुक्त निर्वाचक और आरक्षित सीट दी जाएगी. आंबेडकर ने तर्क दिया कि अगर SC / ST हिंदू समाज का हिस्सा हैं, तो हिंदुओं को मिलने वाले सभी विशेषाधिकार भी उन्हें दिए जाने चाहिए. लेकिन 20 सितंबर 1920 को गांधी जी ने उपवास का ऐलान किया जिसके बाद दबाव में आकर बाबा साहेब को उनकी बात माननी पड़ी.
अर्थशास्त्री मुंगेकर ने बताया कि आंबेडकर और गांधी दोनों में धार्मिक सहिष्णुता थी. आज राष्ट्रीय एकता की राह में सांप्रदायिकता और प्रतिगामी राष्ट्रवाद, गरीबी, बेरोजगारी शैक्षणिक असमानता से भी बड़ी चुनौतियां हैं. भारतीय समाज सांप्रदायिकता और प्रतिगामी राष्ट्रवाद के आधार पर बंटा हुआ है. गांधी जी हिंदुत्व के समर्थक थे लेकिन उन्होंने धर्मनिरपेक्ष संघ की स्थापना की. क्योंकि गांधी और आंबेडकर दोनों ही चाहते थे कि भारत की मिली जुली संस्कृति भारतीय संविधान का हिस्सा हो. वहीं जिन्ना जो बेहद धर्मनिरपेक्ष थे उन्होंने एक समुदाय विशेष को चुना.
उन्होंने आगे कहा कि आज समाज भारतीय राष्ट्रवाद से हिंदू राष्ट्रवाद की ओर जा रहा है. भारतीय राष्ट्रवाद में संस्कृति, भाषा, धर्म की विविधताएं हैं. वहीं हिंदू राष्ट्रवाद इसके विपरीत है. जैसा कि आरएसएस कहती है हिंदू राष्ट्रवाद मतलब एक देश, एक पार्टी, एक नेता, एक संस्कृति और एक धर्म. इसलिए गांधी और अम्बेडकर एक बहुआयामी विविध समाज में विश्वास करते थे. उनका मानना था कि यदि हम असंतोष, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करते हैं तो यह लोकतंत्र का खात्मा होगा.
मुंगेकर ने बताया कि गांधी और आंबेडकर दोनों ही उदार दृष्टिकोण के थे. लेकिन गांधी हिंदूवादी भी थे. इतना ही नहीं उन्होंने अपनी आत्मकथा की शुरुआत भी 'मैं जाति से बनिया हूं' लाइन से की. वहीं, आंबेडकर जाति व्यवस्था के खिलाफ थे और उनके विचार अधिक वैज्ञानिक थे. जाति समस्या के प्रति गांधीजी का दृष्टिकोण सहानुभूति रखने जैसा था. लेकिन 1936 में आंबेडकर के एनहिलेशन ऑफ कास्ट भाषण के बाद गांधी जी के विचार बदल गये. चूंकि दोनों ही उदार दृष्टिकोण रखते थे बाबजूद इसके आंबेडकर के दबाव के कारण गांधी जी जाति व्यवस्था के प्रति ज्यादा तर्कसंगत, मुखर और व्यावहारिक हो गए.
उन्होंने आगे बताया कि सामाजिक परिवर्तन के बारे में गांधी और आंबेडकर के विचार बेहद अलग अलग थे. एक तरफ गांधी जी का कहना था कि समाज में धीरे-धीरे सुधार आएगा. गांधी जी सुधारों को अपनाने के लिए हिंदू समाज के मानसिक परिवर्तन पर निर्भर थे. आंबेडकर ने भी इसे मानने की कोशिश की लेकिन जब उन्होंने देखा कि हिंदू भारतीय समाज में हो रहे सुधारों को अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं तब 1935 में उन्होंने घोषणा की, 'मैं हिंदू पैदा तो हुआ हूं लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं'. इसके बाद आंबेडकर के प्रति लोगों की विचारधारा बदल गई.