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छत्तीसगढ़ : कोरोना काल में भिखारियों का दर्द, भीख नहीं मिलने से जिंदगी काटना मुश्किल

छत्तीसगढ़ के रायपुर में लगभग 900 भिखारी हैं, जो लॉकडाउन की वजह से भीख नहीं मिलने के कारण परेशान हैं. वहीं एक भिक्षुक ने ईटीवी भारत से बताया, उनके पास राशन कार्ड नहीं होने के कारण उन्हें राशन नहीं मिल रहा है, जिससे वह पिछले चार साल से भीख मांगकर खा रहे हैं.

भिखारियों का दर्द.
भिखारियों का दर्द.
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Published : Jun 15, 2020, 4:11 AM IST

रायपुर : कोरोना संक्रमण के मद्देनजर देश में 30 जून तक लॉकडाउन की तारीख को बढ़ा दी गई है. लॉकडाउन की वजह से हर वर्ग के लोगों को परेशानी से जूझना पड़ रहा है. इसमें एक वर्ग भिक्षुक और भिखारियों का भी है. भीख मांगने वाले भिखारी भी लॉकडाउन से काफी प्रभावित हुए हैं. भीख मांग कर अपनी जीविका चलाने वाले भिक्षुक खाली कटोरा लिए सड़कों पर बैठे हैं, जो शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार हैं, वह परिश्रम करके अपनी जीविका नहीं चला सकते. इसमें कुछ ऐसे भिखारी भी होते हैं, जिनका अपना कोई नहीं होता, ऐसे में हालात में उन्हें भीख मांग कर ही अपना जीवन यापन करना होता है.

भिखारियों का दर्द.
भीख मांग कर गुजर-बसर करना कोई सम्मान की बात नहीं है, वैसे भी समाज में भिखारियों को ओछी और घृणा भरी निगाहों से देखा जाता है. उन्हें दुत्कार दिया जाता है, कोई दयावश उनके कटोरे में पैसे डाल देता है. कोई व्यक्ति बिना पैसे दिया ही वहां से चला जाता है. धार्मिक स्थलों के सामने तो भिखारियों के झुंड के झुंड रहते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण गिने-चुने भिखारी ही इन जगहों पर नजर आ रहे हैं. धार्मिक स्थलों में दाता भी आते हैं, कोई दान देकर धर्म कमाता है, तो कोई दान लेकर अपना जीवन चलाता है.

दो वक्त की रोटी के इंतजार में भिखारी

कोरोना काल में भिखारियों को सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ रही है. न तो उन्हें भीख मिल पा रहा है और न नहीं शासन का ध्यान उनके उपर जा रहा है. दो वक्त की रोटी के लिए भिखारी परेशान हो रहे हैं

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लॉकडाउन की वजह से भिखारी परेशान.

छत्तीसगढ़ में बस सेवा ढाई महीने से बंद
भिखारी धार्मिक स्थलों, बस स्टॉप और रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर भीख मांग कर अपना पेट पालते हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद भीख मांगने वाले भिखारियों की संख्या भी इन जगहों पर कम ही देखने को मिल रही है, क्योंकि धार्मिक स्थल अपने निर्धारित समय पर खुलने के साथ ही बंद हो जा रहे हैं. बात बस स्टॉप की की जाए, तो छत्तीसगढ़ में बस सेवा लगभग ढाई महीने से बंद है. रेलवे स्टेशन की बात करें, रेलवे स्टेशन में भी गिनती के ट्रेन चल रहे हैं, जिसके कारण भिखारी इन जगहों पर नजर नहीं आ रहे हैं.

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नहीं मिल रही भीख,

राशन कार्ड और आधार कार्ड नहीं होने से बने भिखारी
लॉकडाउन के दौरान भिखारियों को भी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. शासन-प्रशासन भी इन भिखारियों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. कुछ भिखारियों का जीवन-यापन सरकारी राशन के भरोसे हो रहा है, लेकिन कुछ भिखारियों के राशन कार्ड और आधार कार्ड नहीं होने के कारण ऐसे भिखारियों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

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भिखारियों की बढ़ी परेशानी.

समाज कल्याण की ओर से हर संभव मदद का दावा
समाज कल्याण विभाग संयुक्त संचालक भूपेंद्र पांडेय ने बताया भिक्षावृत्ति में लिप्त या फिर जो आद्तन भिखारी हैं, उनका एक सर्वे कराया गया था. इस सर्वे में राजधानी में 900 भिखारियों की पहचान की गई है, जिसमें से लगभग 450 भिखारी दूसरे राज्यों से राजधानी में आए हैं. समाज कल्याण विभाग के अधिकारी ने यह भी बताया कि लॉकडाउन के दौरान इन भिखारियों को हर संभव मदद समाज कल्याण की ओर से किया गया है.

रायपुर : कोरोना संक्रमण के मद्देनजर देश में 30 जून तक लॉकडाउन की तारीख को बढ़ा दी गई है. लॉकडाउन की वजह से हर वर्ग के लोगों को परेशानी से जूझना पड़ रहा है. इसमें एक वर्ग भिक्षुक और भिखारियों का भी है. भीख मांगने वाले भिखारी भी लॉकडाउन से काफी प्रभावित हुए हैं. भीख मांग कर अपनी जीविका चलाने वाले भिक्षुक खाली कटोरा लिए सड़कों पर बैठे हैं, जो शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार हैं, वह परिश्रम करके अपनी जीविका नहीं चला सकते. इसमें कुछ ऐसे भिखारी भी होते हैं, जिनका अपना कोई नहीं होता, ऐसे में हालात में उन्हें भीख मांग कर ही अपना जीवन यापन करना होता है.

भिखारियों का दर्द.
भीख मांग कर गुजर-बसर करना कोई सम्मान की बात नहीं है, वैसे भी समाज में भिखारियों को ओछी और घृणा भरी निगाहों से देखा जाता है. उन्हें दुत्कार दिया जाता है, कोई दयावश उनके कटोरे में पैसे डाल देता है. कोई व्यक्ति बिना पैसे दिया ही वहां से चला जाता है. धार्मिक स्थलों के सामने तो भिखारियों के झुंड के झुंड रहते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण गिने-चुने भिखारी ही इन जगहों पर नजर आ रहे हैं. धार्मिक स्थलों में दाता भी आते हैं, कोई दान देकर धर्म कमाता है, तो कोई दान लेकर अपना जीवन चलाता है.

दो वक्त की रोटी के इंतजार में भिखारी

कोरोना काल में भिखारियों को सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ रही है. न तो उन्हें भीख मिल पा रहा है और न नहीं शासन का ध्यान उनके उपर जा रहा है. दो वक्त की रोटी के लिए भिखारी परेशान हो रहे हैं

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लॉकडाउन की वजह से भिखारी परेशान.

छत्तीसगढ़ में बस सेवा ढाई महीने से बंद
भिखारी धार्मिक स्थलों, बस स्टॉप और रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर भीख मांग कर अपना पेट पालते हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद भीख मांगने वाले भिखारियों की संख्या भी इन जगहों पर कम ही देखने को मिल रही है, क्योंकि धार्मिक स्थल अपने निर्धारित समय पर खुलने के साथ ही बंद हो जा रहे हैं. बात बस स्टॉप की की जाए, तो छत्तीसगढ़ में बस सेवा लगभग ढाई महीने से बंद है. रेलवे स्टेशन की बात करें, रेलवे स्टेशन में भी गिनती के ट्रेन चल रहे हैं, जिसके कारण भिखारी इन जगहों पर नजर नहीं आ रहे हैं.

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नहीं मिल रही भीख,

राशन कार्ड और आधार कार्ड नहीं होने से बने भिखारी
लॉकडाउन के दौरान भिखारियों को भी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. शासन-प्रशासन भी इन भिखारियों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. कुछ भिखारियों का जीवन-यापन सरकारी राशन के भरोसे हो रहा है, लेकिन कुछ भिखारियों के राशन कार्ड और आधार कार्ड नहीं होने के कारण ऐसे भिखारियों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

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भिखारियों की बढ़ी परेशानी.

समाज कल्याण की ओर से हर संभव मदद का दावा
समाज कल्याण विभाग संयुक्त संचालक भूपेंद्र पांडेय ने बताया भिक्षावृत्ति में लिप्त या फिर जो आद्तन भिखारी हैं, उनका एक सर्वे कराया गया था. इस सर्वे में राजधानी में 900 भिखारियों की पहचान की गई है, जिसमें से लगभग 450 भिखारी दूसरे राज्यों से राजधानी में आए हैं. समाज कल्याण विभाग के अधिकारी ने यह भी बताया कि लॉकडाउन के दौरान इन भिखारियों को हर संभव मदद समाज कल्याण की ओर से किया गया है.

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