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कोविड-19 का टीका 15 अगस्त तक जारी करने का लक्ष्य अव्यावहारिक : आईएएससी

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Published : Jul 7, 2020, 5:34 AM IST

बेंगलुरू स्थित वैज्ञानिकों की संस्था इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज (आईएएससी) ने कहा है कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) द्वारा 15 अगस्त को कोरोना वायरस का टीका जारी करने का लक्ष्य 'अव्यावहारिक' और 'हकीकत से परे' है.

कोवैक्सीन
कोवैक्सीन

नई दिल्ली : बेंगलुरू स्थित वैज्ञानिकों की संस्था इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज (आईएएससी) ने कहा है कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) द्वारा 15 अगस्त को कोरोना वायरस का टीका जारी करने का लक्ष्य 'अव्यावहारिक' और 'हकीकत से परे' है.

आईएएससी ने कहा कि नि:संदेह इसकी तुरंत जरूरत है, लेकिन मानवीय जरूरत के लिए टीका विकसित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से वैज्ञानिक पद्धति से क्लिनिकल परीक्षण की आवश्यकता होती है.

आईएएससी ने बयान जारी कर कहा कि प्रशासनिक मंजूरियों में तेजी लाई जा सकती है लेकिन 'प्रयोग की वैज्ञानिक प्रक्रियाओं और डेटा संग्रहण की नैसर्गिक समय अवधि होती है जिस पर वैज्ञानिक मानकों से समझौता नहीं किया जा सकता.'

आईएएससी ने बयान में आईसीएमआर के पत्र का जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि 'टीका के सभी क्लीनिकल परक्षण पूरा होने के बाद इसे अधिकतमत 15 अगस्त 2020 तक आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए जारी करने पर विचार किया जा सकता है.'

कोरोना वायरस के खिलाफ टीका को आईसीएमआर और निजी दवा कंपनी भारत बायोटिक इंडिया लिमिटेड मिलकर विकसित कर रहे हैं.

बयान में कहा गया है कि आईएएससी संभावित टीके के तेजी से विकास और लोगों के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराए जाने का स्वागत करता है.

इसने कहा, 'बहरहाल, वैज्ञानिकों की संस्था होने के नाते जिसमें कई लोग टीका विकास में संलग्न हैं, आईएएससी का दृढ़ मत है कि समय सीमा की घोषणा करना अव्यावहारिक है. इस समय सीमा ने नागिरकों में हकीकत से परे उम्मीदों को जगाया है.'

विशेषज्ञों ने कोविड-19 का टीका बनाने की प्रक्रिया में जल्दबाजी को लेकर चेतावनी दी है और कहा कि यह वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य मानकों के मुताबिक नहीं है.

आईएएससी ने कहा कि प्रतिरोधी क्षमता की प्रतिक्रिया विकसित होने में कई हफ्ते लग जाते हैं और संबंधित डेटा पहले इकट्ठा नहीं किया जाना चाहिए.

पढ़ें - महाराष्ट्र में 6,555 नए केस, तमिलनाडु में अब तक 1,500 से अधिक मौतें

इसने कहा, 'पहले चरण में इकट्ठा किए गए डेटा को दूसरे चरण की शुरुआत करने से पहले पर्याप्त रूप से विश्लेषित किया जाना चाहिए. अगर किसी भी चरण में डेटा अस्वीकार्य है तो क्लिनिकल परीक्षण को तुरंत रोक देने की जरूरत होती है.'

बयान में कहा गया है कि इन्हीं कारणों से इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज का मानना है कि समय सीमा की घोषणा करना 'अनुचित और अव्यावहारिक है.'

नई दिल्ली : बेंगलुरू स्थित वैज्ञानिकों की संस्था इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज (आईएएससी) ने कहा है कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) द्वारा 15 अगस्त को कोरोना वायरस का टीका जारी करने का लक्ष्य 'अव्यावहारिक' और 'हकीकत से परे' है.

आईएएससी ने कहा कि नि:संदेह इसकी तुरंत जरूरत है, लेकिन मानवीय जरूरत के लिए टीका विकसित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से वैज्ञानिक पद्धति से क्लिनिकल परीक्षण की आवश्यकता होती है.

आईएएससी ने बयान जारी कर कहा कि प्रशासनिक मंजूरियों में तेजी लाई जा सकती है लेकिन 'प्रयोग की वैज्ञानिक प्रक्रियाओं और डेटा संग्रहण की नैसर्गिक समय अवधि होती है जिस पर वैज्ञानिक मानकों से समझौता नहीं किया जा सकता.'

आईएएससी ने बयान में आईसीएमआर के पत्र का जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि 'टीका के सभी क्लीनिकल परक्षण पूरा होने के बाद इसे अधिकतमत 15 अगस्त 2020 तक आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए जारी करने पर विचार किया जा सकता है.'

कोरोना वायरस के खिलाफ टीका को आईसीएमआर और निजी दवा कंपनी भारत बायोटिक इंडिया लिमिटेड मिलकर विकसित कर रहे हैं.

बयान में कहा गया है कि आईएएससी संभावित टीके के तेजी से विकास और लोगों के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराए जाने का स्वागत करता है.

इसने कहा, 'बहरहाल, वैज्ञानिकों की संस्था होने के नाते जिसमें कई लोग टीका विकास में संलग्न हैं, आईएएससी का दृढ़ मत है कि समय सीमा की घोषणा करना अव्यावहारिक है. इस समय सीमा ने नागिरकों में हकीकत से परे उम्मीदों को जगाया है.'

विशेषज्ञों ने कोविड-19 का टीका बनाने की प्रक्रिया में जल्दबाजी को लेकर चेतावनी दी है और कहा कि यह वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य मानकों के मुताबिक नहीं है.

आईएएससी ने कहा कि प्रतिरोधी क्षमता की प्रतिक्रिया विकसित होने में कई हफ्ते लग जाते हैं और संबंधित डेटा पहले इकट्ठा नहीं किया जाना चाहिए.

पढ़ें - महाराष्ट्र में 6,555 नए केस, तमिलनाडु में अब तक 1,500 से अधिक मौतें

इसने कहा, 'पहले चरण में इकट्ठा किए गए डेटा को दूसरे चरण की शुरुआत करने से पहले पर्याप्त रूप से विश्लेषित किया जाना चाहिए. अगर किसी भी चरण में डेटा अस्वीकार्य है तो क्लिनिकल परीक्षण को तुरंत रोक देने की जरूरत होती है.'

बयान में कहा गया है कि इन्हीं कारणों से इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज का मानना है कि समय सीमा की घोषणा करना 'अनुचित और अव्यावहारिक है.'

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