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डब्ल्यूएचओ को मिलेगा नया महानिदेशक, जानें भारत पर प्रभाव - Asoke Mukerji explains wto options

मई 2020 के मध्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अवलंबी महानिदेशक (डीजीओ) ब्राजील के रॉबर्टो अज़ेवेदो ने अचानक अपने चार साल के कार्यकाल के खत्म होने से ठीक एक साल पहले अगस्त 2020 तक अपना पद छोड़ने की घोषणा की है. विश्व व्यापार संगठन के लिए नए महानिदेशक का चयन न सिर्फ एक चुनौती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बढ़ती दरारों के दौर में एक अवसर भी है.

Roberto Azevedo wto
रॉबर्टो अज़ेवेदो
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Published : Jul 13, 2020, 11:01 AM IST

Updated : Jul 13, 2020, 1:59 PM IST

मई 2020 के मध्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अवलंबी महानिदेशक (डीजीओ) ब्राजील के रॉबर्टो अजेवेदो ने अचानक अपने चार साल के कार्यकाल के खत्म होने से ठीक एक साल पहले अगस्त, 2020 तक अपना पद छोड़ने की घोषणा की है. विश्व व्यापार संगठन के लिए नए महानिदेशक का चयन न सिर्फ एक चुनौती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बढ़ती दरारों के दौर में एक अवसर भी है.

विश्व व्यापार संगठन में सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाता है. इसके महानिदेशक विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के बीच आम सहमति उत्पन्न करने के लिए पर्दे के पीछे काम करते हैं. प्रसिद्ध ग्रीन रूम प्रक्रिया की अध्यक्षता करते हुए. यह अनौपचारिक तंत्र विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता के भीतर सभी प्रमुख समूहों के समन्वयकों सहित चुने हुए प्रमुखों को एक साथ लाता है, ताकि वह विवादास्पद मुद्दों पर आम सहमति तक पहुंच सकें. इस प्रक्रिया में आम तौर पर लगभग 40 प्रतिनिधिमंडल शामिल होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर कठिन मुद्दों को हल करने के लिए नए दृष्टिकोण सामने आते हैं. इन अनौपचारिक चर्चाओं के दौरान, भाग लेने वाले प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख जोकि व्यापार मंत्री होते है, राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण विश्व व्यापार संगठन के दुविधा में पड़े मुद्दों पर होनी वाली चर्चा को संभालते हैं, महानिदेशक को अक्सर कम देशों द्वारा उठाई जाने वाली अधिक तकनीकी कठिनाइयों का सामना करने के लिए बुलाया जाता है. ग्रीन रूम प्रक्रिया के काम को रेखांकित करने वाला सिद्धांत है कि जब तक सब पर सहमती नहीं तब तक किसी पर सहमती नहीं.

व्यापार वार्ता के दोहा विकास दौर में वर्तमान गतिरोध होने तक, ग्रीन रूम प्रक्रिया ने आमतौर पर ऐसे परिणाम दिए हैं, जिनको विश्व व्यापार संगठन के मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों द्वारा समर्थन प्राप्त हुआ है, जैसे कि 1996 में सिंगापुर में प्रथम विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में लिया गया निर्णय जिसने निवेश और प्रतिस्पर्धा नीति जैसे नए मुद्दों को 1994 में आयोजित उरुग्वे दौर के दौरान संस्थापक विश्व व्यापार संगठन समझौतों के क्रियान्वयन के बाद तक स्थगित करने का फैसला लिया था. इसी तरह, व्यापार सुगमता नियमों पर बातचीत करने के लिए विश्व व्यापार संगठन का समझौता 1996 और 2003 के बीच विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों के हिस्से के रूप में ग्रीन रूम प्रक्रिया में आयोजित गहन अनौपचारिक परामर्श का परिणाम था.

विश्व व्यापार संगठन महा-परिषद ने अपनाई गई अपनी स्वीकृत प्रक्रिया के तहत जल्दी कार्य करते हुए एक महीने की अवधि जो 8 जून से 8 जुलाई 2020 तक निर्धारित की गई थी महानिदेशक के पद के लिए अपने सदस्यों के आगे रखी जिसके दौरान वह अपना नामांकन दे सकते थे. 9 जुलाई, 2020 तक, तीन महिला उम्मीदवारों (केन्या, नाइजीरिया और दक्षिण कोरिया से) सहित आठ नामांकन प्राप्त हुए थे. मिस्र, मैक्सिको, मोल्दोवा, सऊदी अरब और यूके ने भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. 15-17 जुलाई 2020 के बीच, विश्व व्यापार संगठन का महा-परिषद इन आठों महानिदेशक के पद के दावेदारों से संवाद करेगा और अगले महानिदेशक के पद के लिए उपयुक्त व्यक्ति पर सर्वसम्मति से बनाने की कोशिश कर सहीं निष्कर्ष पर पहुंचेगा. विश्व व्यापार संगठन सचिवालय के प्रमुख का पद हासिल करके बहुपक्षवाद को सुधारने के इस अनूठे अवसर के होने के बावजूद भारत ने बेवजह किसी उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा.

अगले महानिदेशक के नाम पर आम सहमति तक पहुंचने के पीछे सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि विश्व व्यापार संगठन के सदस्य मौजूदा अंतरराष्ट्रीय स्थिति में संगठन से क्या उम्मीद करते हैं. यह विश्व व्यापार संगठन में प्रमुख व्यापारिक राष्ट्रों के संकीर्ण राष्ट्रीय हितों पर भी निर्भर करेगा.

विश्व व्यापार संगठन से सम्बन्ध रखने की प्रासंगिकता इस तथ्य से स्पष्ट है कि इसके 164 सदस्यों का 98% व्यापार अंतरराष्ट्रीय है. विश्व व्यापार संगठन अपने सदस्यों को उनकी व्यापार नीतियों में दो मुख्य सिद्धांतों को कायम रहने के लिए प्रतिबद्ध करता है. ये सबसे ज्यादा तरजीह वाला देश (एमएफएन) उपचार और राष्ट्रीय व्यवहार हैं, जिसके तहत डब्ल्यूटीओ सदस्य अपने व्यापारिक भागीदारों के बीच भेदभाव नहीं कर सकते हैं और उन्हें अपने बाजारों में आयातित और स्थानीय वस्तुओं और सेवाओं दोनों में समान व्यवहार करना होगा. भारत जैसे विकासशील देशों के लिए, प्रमुख बाजारों में बढ़ती संरक्षणवादी भावना के सामने इन दोनों सिद्धांतों के प्रति अगले महानिदेशक की प्रतिबद्धता एक प्रमुख कारक होगी.

विश्व व्यापार संगठन के अगले महानिदेशक पर आम सहमति होने में प्रमुख व्यापारिक राष्ट्रों की गणना को लेकर दो मुद्दे हावी रहेंगे. इसमें प्रमुख है कि पद ग्रहण करने वाला अगला महानिदेशक विश्व व्यापार संगठन के दोहा दौर में बाजार तक पहुंच बनाने से जुड़ी वार्ताओं के निष्कर्ष को सुगम बनाने के लिए सक्षम हो जो एक दशक से अधिक समय से अधर में लटका हुआ है. इन वार्ताओं में कृषि में बाजार की पहुंच शामिल है, जिसमें भारत की खाद्य सुरक्षा और रोजगार के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण संकल्प शामिल हैं.

दूसरा विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान तंत्र (डीएसएम) के कामकाज को बहाल करने की महानिदेशक की क्षमता है. इस तंत्र ने राजनीतिक लचीलेपन और कानूनी अखंडता के मिश्रण के माध्यम से 1995 से अबतक 500 से अधिक अंतररार्ष्ट्रीय व्यापार विवादों को सफलतापूर्वक हल किया है. भारत इस तंत्र का सबसे सक्रिय उपयोगकर्ताओं में से एक रहा है, जो द्विपक्षीय दबावों के अधीन हुए बिना संयुक्त राज्य और यूरोपीय संघ जैसे आर्थिक प्रभावशाली देशों के खिलाफ व्यापार विवादों में सकारात्मक परिणाम प्राप्त करता रहा है.

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विवाद निपटान तंत्र (डीएसएम) की दो-चरण में होने वाली प्रक्रिया के सामान्य कामकाज पर रोक लगा दी है. अपीलीय निकाय (एबी) में नए न्यायाधीशों की नियुक्ति पर अपनी सहमति को रोक लगाकर संयुक्त राज्य अमेरिका ने ये सुनिश्चित कर दिया है कि अपीलीय निकाय में लिए जाने वाले निर्णयों के लिए अनिवार्य तीन-न्यायाधीश पीठ कोरम को पूरा न हो पाए.

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपने इस रुख के पीछे दो कारण दिए गए हैं उनमें से एक है कि कुछ अपीलीय निकाय के न्यायाधीशों द्वारा दर्शाई जा रही कथित सक्रियता, जिनके कुछ निर्णय विश्व व्यापार संगठन समझौते के प्रावधानों से परे हैं; और कुछ न्यायाधीशों को लाभ पहुंचाने के लिए अपीलीय निकाय की कार्य प्रक्रियाओं का अनुचित उपयोग.

संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी से भारत सहित विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के खिलाफ एकतरफा व्यापार विवाद शुरू करने के लिए 1974 के व्यापार अधिनियम की धारा 301 जैसे अपने \विश्व व्यापार संगठन के पहले बने हुए घरेलू कानून को दोबारा लागू कर दिया है. यूरोपीय संघ ने, अपीलीय निकाय के कार्यों को बनाए रखने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अवरोध को हटाने तक, जनवरी 2020 में अंतरिम अपील पंचाट व्यवस्था की शुरुआत की है. यूरोपीय संघ, चीन, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और सिंगापुर सहित भारत के कई प्रमुख व्यापारिक भागीदार इस अंतरिम व्यवस्था के सदस्य हैं. भारत नहीं है. इसके परिणामस्वरूप भारत और अंतरिम व्यवस्था से जुड़े विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों में से किसी भी देश के साथ व्यापार सम्बन्धी विवादों में की दोबारा शुरू होने तक नई समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक की पहले से ही विश्व व्यापार संगठन विवाद निपटान समझौते के तहत एक भूमिका है जो अपीलीय निकाय की कामकाजी प्रक्रियाओं को देखता है. इस भूमिका को विस्तार देते हुए ताकि अपीलीय निकाय की अखंडता और प्रभावशीलता को बरक़रार रहा जा सके साथ ही सयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा खड़ी की गई चिंताओं को दूर किया जा सके भारत को नए महानिदेशक के चयन की प्रक्रिया में शामिल हो आम सहमती का हिस्सा बनने को प्राथमिकता देनी चाहिए.

दिसंबर 2001 में चीन के अभिगमन और उदय के बाद से विश्व व्यापार संगठन में अगले महानिदेशक का चयन करने पर सर्वसम्मति तक पहुंचने की प्रक्रिया और समीकरण में बड़ा बदलाव आया है. विश्व व्यापार संगठन में हो रही मौजूदा बातचीत में सक्रिय विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के आपसी सम्बन्ध ग्रीन रूम के समीकरण पर अपना प्रभाव अवश्य डालेंगे.

1995 से अबतक विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता ने भारत के चरणबद्ध आर्थिक सुधारों को सुविधा प्रदान की है, विशेष रूप से वित्तीय सेवाओं, दूरसंचार और सेवाओं में व्यापार जैसे क्षेत्रों में. इन क्षेत्रों ने 2024 तक $ 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने की भारत की आकांक्षाओं की नींव रखी है. विश्व बैंक के अनुसार 2018 में भारत का अंतरराष्ट्रीय व्यापार उसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 40% रहा.

तार्किक रूप से नज़र डालें तो, भारत को अगले महानिदेशक के लिए विश्व व्यापर संगठन की चयन प्रक्रिया में अधिक सक्रिय और दृश्य भूमिका अपनाने की आवश्यकता है. यह रचनात्मक भागीदारी सुधारित बहुपक्षवाद को प्राप्त करने की उसकी क्षमता को प्रदर्शित करेगा

असोक मुखर्जी 1995-98 के बीच विश्व व्यापार संगठन में भारत के वार्ताकार रह चुके थे.

(लेखक- अशोक मुखर्जी)

मई 2020 के मध्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अवलंबी महानिदेशक (डीजीओ) ब्राजील के रॉबर्टो अजेवेदो ने अचानक अपने चार साल के कार्यकाल के खत्म होने से ठीक एक साल पहले अगस्त, 2020 तक अपना पद छोड़ने की घोषणा की है. विश्व व्यापार संगठन के लिए नए महानिदेशक का चयन न सिर्फ एक चुनौती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बढ़ती दरारों के दौर में एक अवसर भी है.

विश्व व्यापार संगठन में सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाता है. इसके महानिदेशक विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के बीच आम सहमति उत्पन्न करने के लिए पर्दे के पीछे काम करते हैं. प्रसिद्ध ग्रीन रूम प्रक्रिया की अध्यक्षता करते हुए. यह अनौपचारिक तंत्र विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता के भीतर सभी प्रमुख समूहों के समन्वयकों सहित चुने हुए प्रमुखों को एक साथ लाता है, ताकि वह विवादास्पद मुद्दों पर आम सहमति तक पहुंच सकें. इस प्रक्रिया में आम तौर पर लगभग 40 प्रतिनिधिमंडल शामिल होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर कठिन मुद्दों को हल करने के लिए नए दृष्टिकोण सामने आते हैं. इन अनौपचारिक चर्चाओं के दौरान, भाग लेने वाले प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख जोकि व्यापार मंत्री होते है, राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण विश्व व्यापार संगठन के दुविधा में पड़े मुद्दों पर होनी वाली चर्चा को संभालते हैं, महानिदेशक को अक्सर कम देशों द्वारा उठाई जाने वाली अधिक तकनीकी कठिनाइयों का सामना करने के लिए बुलाया जाता है. ग्रीन रूम प्रक्रिया के काम को रेखांकित करने वाला सिद्धांत है कि जब तक सब पर सहमती नहीं तब तक किसी पर सहमती नहीं.

व्यापार वार्ता के दोहा विकास दौर में वर्तमान गतिरोध होने तक, ग्रीन रूम प्रक्रिया ने आमतौर पर ऐसे परिणाम दिए हैं, जिनको विश्व व्यापार संगठन के मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों द्वारा समर्थन प्राप्त हुआ है, जैसे कि 1996 में सिंगापुर में प्रथम विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में लिया गया निर्णय जिसने निवेश और प्रतिस्पर्धा नीति जैसे नए मुद्दों को 1994 में आयोजित उरुग्वे दौर के दौरान संस्थापक विश्व व्यापार संगठन समझौतों के क्रियान्वयन के बाद तक स्थगित करने का फैसला लिया था. इसी तरह, व्यापार सुगमता नियमों पर बातचीत करने के लिए विश्व व्यापार संगठन का समझौता 1996 और 2003 के बीच विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों के हिस्से के रूप में ग्रीन रूम प्रक्रिया में आयोजित गहन अनौपचारिक परामर्श का परिणाम था.

विश्व व्यापार संगठन महा-परिषद ने अपनाई गई अपनी स्वीकृत प्रक्रिया के तहत जल्दी कार्य करते हुए एक महीने की अवधि जो 8 जून से 8 जुलाई 2020 तक निर्धारित की गई थी महानिदेशक के पद के लिए अपने सदस्यों के आगे रखी जिसके दौरान वह अपना नामांकन दे सकते थे. 9 जुलाई, 2020 तक, तीन महिला उम्मीदवारों (केन्या, नाइजीरिया और दक्षिण कोरिया से) सहित आठ नामांकन प्राप्त हुए थे. मिस्र, मैक्सिको, मोल्दोवा, सऊदी अरब और यूके ने भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. 15-17 जुलाई 2020 के बीच, विश्व व्यापार संगठन का महा-परिषद इन आठों महानिदेशक के पद के दावेदारों से संवाद करेगा और अगले महानिदेशक के पद के लिए उपयुक्त व्यक्ति पर सर्वसम्मति से बनाने की कोशिश कर सहीं निष्कर्ष पर पहुंचेगा. विश्व व्यापार संगठन सचिवालय के प्रमुख का पद हासिल करके बहुपक्षवाद को सुधारने के इस अनूठे अवसर के होने के बावजूद भारत ने बेवजह किसी उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा.

अगले महानिदेशक के नाम पर आम सहमति तक पहुंचने के पीछे सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि विश्व व्यापार संगठन के सदस्य मौजूदा अंतरराष्ट्रीय स्थिति में संगठन से क्या उम्मीद करते हैं. यह विश्व व्यापार संगठन में प्रमुख व्यापारिक राष्ट्रों के संकीर्ण राष्ट्रीय हितों पर भी निर्भर करेगा.

विश्व व्यापार संगठन से सम्बन्ध रखने की प्रासंगिकता इस तथ्य से स्पष्ट है कि इसके 164 सदस्यों का 98% व्यापार अंतरराष्ट्रीय है. विश्व व्यापार संगठन अपने सदस्यों को उनकी व्यापार नीतियों में दो मुख्य सिद्धांतों को कायम रहने के लिए प्रतिबद्ध करता है. ये सबसे ज्यादा तरजीह वाला देश (एमएफएन) उपचार और राष्ट्रीय व्यवहार हैं, जिसके तहत डब्ल्यूटीओ सदस्य अपने व्यापारिक भागीदारों के बीच भेदभाव नहीं कर सकते हैं और उन्हें अपने बाजारों में आयातित और स्थानीय वस्तुओं और सेवाओं दोनों में समान व्यवहार करना होगा. भारत जैसे विकासशील देशों के लिए, प्रमुख बाजारों में बढ़ती संरक्षणवादी भावना के सामने इन दोनों सिद्धांतों के प्रति अगले महानिदेशक की प्रतिबद्धता एक प्रमुख कारक होगी.

विश्व व्यापार संगठन के अगले महानिदेशक पर आम सहमति होने में प्रमुख व्यापारिक राष्ट्रों की गणना को लेकर दो मुद्दे हावी रहेंगे. इसमें प्रमुख है कि पद ग्रहण करने वाला अगला महानिदेशक विश्व व्यापार संगठन के दोहा दौर में बाजार तक पहुंच बनाने से जुड़ी वार्ताओं के निष्कर्ष को सुगम बनाने के लिए सक्षम हो जो एक दशक से अधिक समय से अधर में लटका हुआ है. इन वार्ताओं में कृषि में बाजार की पहुंच शामिल है, जिसमें भारत की खाद्य सुरक्षा और रोजगार के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण संकल्प शामिल हैं.

दूसरा विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान तंत्र (डीएसएम) के कामकाज को बहाल करने की महानिदेशक की क्षमता है. इस तंत्र ने राजनीतिक लचीलेपन और कानूनी अखंडता के मिश्रण के माध्यम से 1995 से अबतक 500 से अधिक अंतररार्ष्ट्रीय व्यापार विवादों को सफलतापूर्वक हल किया है. भारत इस तंत्र का सबसे सक्रिय उपयोगकर्ताओं में से एक रहा है, जो द्विपक्षीय दबावों के अधीन हुए बिना संयुक्त राज्य और यूरोपीय संघ जैसे आर्थिक प्रभावशाली देशों के खिलाफ व्यापार विवादों में सकारात्मक परिणाम प्राप्त करता रहा है.

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विवाद निपटान तंत्र (डीएसएम) की दो-चरण में होने वाली प्रक्रिया के सामान्य कामकाज पर रोक लगा दी है. अपीलीय निकाय (एबी) में नए न्यायाधीशों की नियुक्ति पर अपनी सहमति को रोक लगाकर संयुक्त राज्य अमेरिका ने ये सुनिश्चित कर दिया है कि अपीलीय निकाय में लिए जाने वाले निर्णयों के लिए अनिवार्य तीन-न्यायाधीश पीठ कोरम को पूरा न हो पाए.

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपने इस रुख के पीछे दो कारण दिए गए हैं उनमें से एक है कि कुछ अपीलीय निकाय के न्यायाधीशों द्वारा दर्शाई जा रही कथित सक्रियता, जिनके कुछ निर्णय विश्व व्यापार संगठन समझौते के प्रावधानों से परे हैं; और कुछ न्यायाधीशों को लाभ पहुंचाने के लिए अपीलीय निकाय की कार्य प्रक्रियाओं का अनुचित उपयोग.

संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी से भारत सहित विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के खिलाफ एकतरफा व्यापार विवाद शुरू करने के लिए 1974 के व्यापार अधिनियम की धारा 301 जैसे अपने \विश्व व्यापार संगठन के पहले बने हुए घरेलू कानून को दोबारा लागू कर दिया है. यूरोपीय संघ ने, अपीलीय निकाय के कार्यों को बनाए रखने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अवरोध को हटाने तक, जनवरी 2020 में अंतरिम अपील पंचाट व्यवस्था की शुरुआत की है. यूरोपीय संघ, चीन, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और सिंगापुर सहित भारत के कई प्रमुख व्यापारिक भागीदार इस अंतरिम व्यवस्था के सदस्य हैं. भारत नहीं है. इसके परिणामस्वरूप भारत और अंतरिम व्यवस्था से जुड़े विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों में से किसी भी देश के साथ व्यापार सम्बन्धी विवादों में की दोबारा शुरू होने तक नई समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक की पहले से ही विश्व व्यापार संगठन विवाद निपटान समझौते के तहत एक भूमिका है जो अपीलीय निकाय की कामकाजी प्रक्रियाओं को देखता है. इस भूमिका को विस्तार देते हुए ताकि अपीलीय निकाय की अखंडता और प्रभावशीलता को बरक़रार रहा जा सके साथ ही सयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा खड़ी की गई चिंताओं को दूर किया जा सके भारत को नए महानिदेशक के चयन की प्रक्रिया में शामिल हो आम सहमती का हिस्सा बनने को प्राथमिकता देनी चाहिए.

दिसंबर 2001 में चीन के अभिगमन और उदय के बाद से विश्व व्यापार संगठन में अगले महानिदेशक का चयन करने पर सर्वसम्मति तक पहुंचने की प्रक्रिया और समीकरण में बड़ा बदलाव आया है. विश्व व्यापार संगठन में हो रही मौजूदा बातचीत में सक्रिय विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के आपसी सम्बन्ध ग्रीन रूम के समीकरण पर अपना प्रभाव अवश्य डालेंगे.

1995 से अबतक विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता ने भारत के चरणबद्ध आर्थिक सुधारों को सुविधा प्रदान की है, विशेष रूप से वित्तीय सेवाओं, दूरसंचार और सेवाओं में व्यापार जैसे क्षेत्रों में. इन क्षेत्रों ने 2024 तक $ 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने की भारत की आकांक्षाओं की नींव रखी है. विश्व बैंक के अनुसार 2018 में भारत का अंतरराष्ट्रीय व्यापार उसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 40% रहा.

तार्किक रूप से नज़र डालें तो, भारत को अगले महानिदेशक के लिए विश्व व्यापर संगठन की चयन प्रक्रिया में अधिक सक्रिय और दृश्य भूमिका अपनाने की आवश्यकता है. यह रचनात्मक भागीदारी सुधारित बहुपक्षवाद को प्राप्त करने की उसकी क्षमता को प्रदर्शित करेगा

असोक मुखर्जी 1995-98 के बीच विश्व व्यापार संगठन में भारत के वार्ताकार रह चुके थे.

(लेखक- अशोक मुखर्जी)

Last Updated : Jul 13, 2020, 1:59 PM IST
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