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अयोध्या केस: कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से कहा, ASI रिपोर्ट कोई साधारण राय नहीं

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Published : Sep 27, 2019, 5:21 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 5:46 AM IST

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले में चल रही सुनवाई के 33वें दिन मुस्लिम पक्ष के वकील मीनाक्षी अरोड़ा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि ASI रिपोर्ट एक कमजोर साक्ष्य है इसे पुख्ता साक्ष्य नहीं माना जा सकता. इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि ASI की रिपोर्ट कोई आम राय नहीं है. जानें पूरा विवरण

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 2003 की रिपोर्ट कोई साधारण राय नहीं है. पुरातत्ववेत्ता खुदाई में मिली सामग्री के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा सौंपे गये काम पर अपनी राय दे रहे थे.

सुनवाई के बाद हिंदू महासभा के अधिवक्ता विष्णु शंकर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि आज की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष द्वारा कोर्ट में कहा गया कि ASI द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में खामियां हैं और उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता.

मीडिया से बात करते अधिवक्ता विष्णु शंकर

उन्होंने कहा कि इस मामले पर हिंदू पक्ष शनिवार को कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखेगा और यह साबित करने की कोशिश करेगा कि ASI की रिपोर्ट पर किस आधार पर इस रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है.

इससे पहले सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि ‘सुशिक्षित एवं अध्ययनशील विशेषज्ञों द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट से निष्कर्ष निकाला गया है.

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां उस वक्त कीं जब मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने संविधान पीठ से कहा कि एएसआई की रिपोर्ट सिर्फ एक राय है और अयोध्या में विवादित स्थल पर पहले राम मंदिर होने की बात साबित करने के लिये इसके समर्थन में ठोस साक्ष्यों की आवश्यकता है.

मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि इस रिपोर्ट को पुख्ता साक्ष्य नहीं माना जा सकता.

उन्होंने कहा, 'एएसआई की 2003 की रिपोर्ट एक कमजोर साक्ष्य है और इसके समर्थन में ठोस साक्ष्य की आवश्यकता है.'

संविधान पीठ के अन्य सदसयों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट न्यायालय के लिये बाध्यकारी नहीं है क्योंकि यह प्रकृति में सिर्फ परामर्शकारी है.

संविधान पीठ अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर शुक्रवार को 33वें दिन सुनवाई कर रही थी.

मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा, 'यह (एएसआई की रिपोर्ट) सिर्फ एक राय है और इससे कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता.

उन्होंने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण को इस बारे में अपनी रिपोर्ट देने के लिये कहा गया था कि क्या उस स्थल पर पहले राम मंदिर था या नहीं. उन्होंने रिपोर्ट के निष्कर्षो का जिक्र करते हुये कहा कि इसमें कहा गया है कि बहुत हुआ तो मोटे तौर पर ढांचा उत्तर भारत के मंदिर जैसा था.

उन्होंने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट में कुछ जगह कहा गया है कि बाहरी बरामदे में राम चबूतरा संभवत: पानी का हौद था.

उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में बहुत सारे अनुमान और अटकलें हैं और इस रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिये न्यायालय बाध्य नहीं है. उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट परामर्श दस्तावेज की तरह है.

मुस्लिम पक्षकारों की ओर से ही एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने पूर्व निर्णय के सिद्धांत के आधार पर अपनी दलीलें पेश कीं. दीवानी कानून के तहत यह सिद्धांत इस तथ्य के बारे मे है कि एक ही तरह के विवाद का अदालत में दो बार निर्णय नहीं हो सकता है.

नफड़े ने कहा कि 1885 में महंत रघुवर दास ने विवादित परिसर के दायरे में राम मंदिर के निर्माण की अनुमति मांगी थी लेकिन अदालत ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने पूर्व निर्णय के सिद्धांत का हवाला देते हुये कहा कि उसी विवाद को कानून के तहत हिन्दू पक्षकार फिर से नहीं उठा सकते हैं.

मुस्लिम पक्षकारों ने बृहस्पतिवार को भी एएसआई की 2003 की रिपोर्ट के सारांश लिखने वाले पर सवाल उठाये जाने के मामले में यू टर्न लिया था.

यही नहीं, इस विवाद की सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उठाकर न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिये माफी भी मांगी थी.

पढ़ें- अयोध्या मामले में सुनवाई के लिए नहीं दिया जाएगा अतिरिक्त समय : संवैधानिक पीठ

इस मामले में अब 30 सितंबर को अगली सुनवाई होगी.

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था. इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपील दायर की गयी थीं जिन पर इस समय संविधान पीठ सुनवाई कर रही हैं.

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 2003 की रिपोर्ट कोई साधारण राय नहीं है. पुरातत्ववेत्ता खुदाई में मिली सामग्री के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा सौंपे गये काम पर अपनी राय दे रहे थे.

सुनवाई के बाद हिंदू महासभा के अधिवक्ता विष्णु शंकर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि आज की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष द्वारा कोर्ट में कहा गया कि ASI द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में खामियां हैं और उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता.

मीडिया से बात करते अधिवक्ता विष्णु शंकर

उन्होंने कहा कि इस मामले पर हिंदू पक्ष शनिवार को कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखेगा और यह साबित करने की कोशिश करेगा कि ASI की रिपोर्ट पर किस आधार पर इस रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है.

इससे पहले सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि ‘सुशिक्षित एवं अध्ययनशील विशेषज्ञों द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट से निष्कर्ष निकाला गया है.

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां उस वक्त कीं जब मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने संविधान पीठ से कहा कि एएसआई की रिपोर्ट सिर्फ एक राय है और अयोध्या में विवादित स्थल पर पहले राम मंदिर होने की बात साबित करने के लिये इसके समर्थन में ठोस साक्ष्यों की आवश्यकता है.

मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि इस रिपोर्ट को पुख्ता साक्ष्य नहीं माना जा सकता.

उन्होंने कहा, 'एएसआई की 2003 की रिपोर्ट एक कमजोर साक्ष्य है और इसके समर्थन में ठोस साक्ष्य की आवश्यकता है.'

संविधान पीठ के अन्य सदसयों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट न्यायालय के लिये बाध्यकारी नहीं है क्योंकि यह प्रकृति में सिर्फ परामर्शकारी है.

संविधान पीठ अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर शुक्रवार को 33वें दिन सुनवाई कर रही थी.

मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा, 'यह (एएसआई की रिपोर्ट) सिर्फ एक राय है और इससे कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता.

उन्होंने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण को इस बारे में अपनी रिपोर्ट देने के लिये कहा गया था कि क्या उस स्थल पर पहले राम मंदिर था या नहीं. उन्होंने रिपोर्ट के निष्कर्षो का जिक्र करते हुये कहा कि इसमें कहा गया है कि बहुत हुआ तो मोटे तौर पर ढांचा उत्तर भारत के मंदिर जैसा था.

उन्होंने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट में कुछ जगह कहा गया है कि बाहरी बरामदे में राम चबूतरा संभवत: पानी का हौद था.

उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में बहुत सारे अनुमान और अटकलें हैं और इस रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिये न्यायालय बाध्य नहीं है. उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट परामर्श दस्तावेज की तरह है.

मुस्लिम पक्षकारों की ओर से ही एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने पूर्व निर्णय के सिद्धांत के आधार पर अपनी दलीलें पेश कीं. दीवानी कानून के तहत यह सिद्धांत इस तथ्य के बारे मे है कि एक ही तरह के विवाद का अदालत में दो बार निर्णय नहीं हो सकता है.

नफड़े ने कहा कि 1885 में महंत रघुवर दास ने विवादित परिसर के दायरे में राम मंदिर के निर्माण की अनुमति मांगी थी लेकिन अदालत ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने पूर्व निर्णय के सिद्धांत का हवाला देते हुये कहा कि उसी विवाद को कानून के तहत हिन्दू पक्षकार फिर से नहीं उठा सकते हैं.

मुस्लिम पक्षकारों ने बृहस्पतिवार को भी एएसआई की 2003 की रिपोर्ट के सारांश लिखने वाले पर सवाल उठाये जाने के मामले में यू टर्न लिया था.

यही नहीं, इस विवाद की सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उठाकर न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिये माफी भी मांगी थी.

पढ़ें- अयोध्या मामले में सुनवाई के लिए नहीं दिया जाएगा अतिरिक्त समय : संवैधानिक पीठ

इस मामले में अब 30 सितंबर को अगली सुनवाई होगी.

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था. इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपील दायर की गयी थीं जिन पर इस समय संविधान पीठ सुनवाई कर रही हैं.

Intro:Today on the 33rd day of hearing Ramjanmabhumi-Ayodhya dispute case, Justice Bobde said that both the sides(hindus and muslims) were relying on the inferences of archaeologists and a direct evidence to a structure is not possible which belongs to so many years ago.Justice Bobde also questioned ,"How can ruins show a particular God?"


Body:Advocate Meenakshi Arora argued today that archeology is more like a science of handwriting expert in which they draw conclusion from what they see. She said that it can not be taken by itself and has to be supported by other positive evidences. "ASI is a very weak evidence", she said.

Justice Chandrachud said that archeological inferences were found by specialised people who had knowledge about it. To this Arora replied that different archeologists had divergent views and only the inference could not be taken.

Justice Nazeer said that enquiry was done of the commissioner's report and Arora had objections to it. He said that she should pay more weightage to the report as he was a designated judge. To this Arora replied that HCs accross the country have said that either you can examine commissioner's report or bring your own independent evidence. She also said that Jains, Buddhists and Islamic structure are also similar then how can we infer that it was a temple?

After Arora's submissions, Shekhar Navde started but before his completion the CJI Ranjan Gogoi asked him how much time would he require. Navde replied he had asked for 2 hours and it was just 45 mins which had passed. Gogoi said that it wasn't a matter of 2 hours but the hearing was not going as per the schedule. Now on monday it will be seen if Navde continues or other party starts the submissions.



Conclusion:The hearing took place till 1pm today and will continue on Monday now.
Last Updated : Oct 2, 2019, 5:46 AM IST
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