रांची : मनुष्य और पशुओं के बीच अपनापन का संबंध जन्म जन्मांतर से है. ऐसे में पशुओं की सुख सुविधा का ख्याल भी मनुष्य वर्षों से रखता आ रहा है. पशुओं की मेहनत और सहयोग के कारण संसार में लोगों की भूख मिटती है. कड़ी मेहनत करने वाले इन पशुओं को आराम देने के लिए भी लोगों ने झारखंड लातेहार के कुछ गांवों में एक नियम बना रखा है. नियम यह है कि यहां हफ्ते में एक दिन पशुओं को छुट्टी दी जाती है. मतलब रविवार के दिन पशुओं से कोई भी काम नहीं कराया जाता.
लातेहार जिले के हरखा, मोंगर, ललगड़ी और पकरार समेत कई अन्य गांवों में यह परंपरा है कि मवेशियों को सप्ताह में एक दिन छुट्टी दी जाती है. ग्रामीणों का मानना है कि उनके पूर्वजों ने जो नियम बनाए हैं वाह काफी तार्किक हैं, क्योंकि जिस प्रकार मनुष्य को आराम की जरूरत होती है. उसी प्रकार जानवरों को भी आराम की जरूरत है. जानवर अपने मेहनत के बल पर मनुष्य के जीवन यापन में सहयोग करते हैं. ऐसे में मनुष्यों का भी कर्तव्य है कि वह जानवरों के हित-अहित का ख्याल रखें.
काफी अच्छी परंपरा है...
ग्रामीण ललन कुमार यादव ने कहा कि उनके गांव में सालों से यह परंपरा चली आ रही है, वहीं ग्रामीण वीरेंद्र कुमार चंद्रवंशी ने बताया कि जिस प्रकार मनुष्य को आराम की जरूरत होती है. उसी प्रकार मवेशियों को भी आराम की जरूरत है. इसी को लेकर वह हफ्ते में एक दिन मवेशियों को छुट्टी देते हैं. लातेहार जिला परिषद सदस्य सह पशु प्रेमी विनोद उरांव ने कहा कि पशु और मनुष्य एक दूसरे के पूरक हैं. एक दूसरे के हित में ही दोनों का हित निहित है. इसीलिए पूर्वजों ने यह नियम बनाया था कि मवेशियों को प्रत्येक सप्ताह में कम से कम एक दिन की छुट्टी अवश्य दी जाए. यह परंपरा काफी अच्छी है.
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जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ. राम सेवक राम ने कहा कि पशुओं को भी आराम की उतनी ही जरूरत होती है, जितनी जरूरत मनुष्यों को है, क्योंकि आराम न मिलने से जिस प्रकार मनुष्य तनाव में आकर बीमार हो जाते है. उसी प्रकार जानवर भी तनावग्रस्त होकर बीमारी से ग्रस्त हो जाएंगे. इसीलिए यह परंपरा काफी सराहनीय है. रविवार के दिन ग्रामीण क्षेत्रों में जानवरों को छुट्टी मिलती है. जरूरत पड़ने पर मनुष्य खुद कुदाल उठा लेते हैं, लेकिन इस दिन किसी भी सूरत में जानवरों से काम नहीं लिया जाता है.