नई दिल्ली : अमेरिका ने ईरान पर वो सभी प्रतिबंध दोबारा लगा दिए हैं, जिन्हें साल 2015 में हटा लिया गया था. उल्लेखनीय है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान ईरान के साथ परमाणु समझौता हुआ था, जिसके तहत ईरान से ये प्रतिबंध हटा लिये गए थे. अमेरिका का मानना था कि आर्थिक दबाव के कारण ईरान नए समझौते के लिए तैयार हो जाएगा और अपनी हानिकारक गतिविधियों पर रोक लगा देगा. अमेरिका ने ईरान पर ये प्रतिबंध 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद लगाए थे.
इन प्रतिबंधों के तहत ईरान सरकार पर अमेरिकी डॉलर खरीदने और रखने दोनों पर पाबंदी लगा दी गई थी. इस कारण अमेरिका को विदेशों में व्यापार करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था.
इसके अलावा अमेरिका ने ईरान पर सोने या अन्य कीमती धातुओं में व्यापार पर रोक लगा दी थी. इलके अलावा ईरान अन्य देशों से ग्रेफाइट, एल्युमिनियम, स्टील, कोयला और औद्योगिक प्रक्रियाओं में इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर न तो बेच सकता है और न ही खरीद सकता है.
इतना ही नहीं अमरिकी प्रतिबंधों के तहत ईरान की मुद्रा रियाल से जुड़े लेन-देन पर रोक लगा दी गई थी. इसके चलते कोई भी देश रियाल से खरीद फरोख्त नहीं करता था.
इसके अलावा अमेरिका ने ईरान सरकार को ऋण देने से संबंधित गतिविधियों पर रोक लगा दी. इस कारण ईरान न तो किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था और न ही किसी अन्य देश से कर्ज ले सकता था. इतना ही नहीं अमेरिका ने ईरान के ऑटोमोटिव सेक्टर पर भी प्रतिबंध लगा दिया.
साथ ही ईरानी कालीन तथा खाद्य पदार्थों का आयात भी बंद कर देने की चेतावनी दी गई. अमेरिका ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि कोई भी कम्पनी या देश इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करेगा तो उन्हें इसके गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है.
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इसके अलावा अमेरिका ने 5 नवंबर 2018 से ईरान पर और कई नए प्रतिबंध लगा दिए. इसके तहत ईरान के बंदरगाहों के संचालन करने पर, ऊर्जा, शिपिंग और जहाज निर्माण सेक्टर पर, ईरान के पेट्रोलियम संबंधित लेन-देन पर भी प्रतिबंध लगा दिया. इतना ही नए प्रतिबंधों में सेंट्रल बैंक ऑफ ईरान के साथ विदेशी वित्त संस्थानों के लेन-देन को प्रतिबंधित कर दिया गया.