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स्वच्छ भारत मिशन के लिए रोल मॉडल बना अंबिकापुर

अंबिकापुर नगर निगम ने वेस्ट प्लास्टिक को रीयूज करना शुरू कर दिया है. कचरे में मिलने वाली प्लास्टिक के मोडिफिकेशन के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाए गए. प्लास्टिक और पॉलिथीन को प्रोसेस करने के बाद उसका ग्रेन्यूल्स बनाए जाता है, जिसकी बिक्री के बाद निगम को हर महीने लाखों रुपये की राशि मिल रही है.

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सॉलिड-लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट
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Published : Aug 30, 2020, 10:03 PM IST

सरगुजा (छत्तीसगढ़) : अंबिकापुर अब छत्तीसगढ़ की विशेष पहचान बन चुका है. स्वच्छता को लेकर किए गए इनोवेशन की वजह से देशभर की नजरे अंबिकापुर पर हैं. स्वच्छ भारत मिशन के लिए रोल मॉडल बने अंबिकापुर ने डोर-टू-डोर कचरे का कलेक्शन कर उसे सॉलिड-लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट के जरिए जिला प्रशासन की आमदनी बढ़ाने का शानदार उदाहरण पेश किया है. यही वजह है कि स्वच्छता सर्वेक्षण में भी अंबिकापुर ने बड़े-बड़े शहरों को पछाड़ दिया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की और धीरे-धीरे इसके तहत कई तरह के नवाचार होने लगे. अंबिकापुर ने सफाई के क्षेत्र में मील के पत्थर गढ़े और ऐसी सफलता हासिल की कि दूसरे राज्यों के लोग यहां के रोल मॉडल को सीखने और समझने के लिए पहुंचने लगे. दूसरे राज्यों की सरकार अपना प्रतिनिधिमंडल यहां भेजती हैं और यहां के स्वच्छता मॉडल को अपनाने की कोशिशें कर रही हैं.

कूड़े से कुंदन बना रहा अंबिकापुर नगर निगम

प्लास्टिक और पॉलिथीन से बनाए जा रहे ग्रेन्यूल्स
अंबिकापुर शहर में कचरे में फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक या पॉलिथीन जो सड़कों के किनारे जमा रहा करते थे या फिर निगम के डंपिंग यार्ड में पड़े होते थे. इन प्लास्टिक से न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान होता, बल्कि मवेशियों को भी इसे खा लेने से कई परेशानियों का सामना करना पड़ता था.

अंबिकापुर नगर निगम ने इस वेस्ट प्लास्टिक का रीयूज करना शुरू किया. कचरे में मिलने वाली इन भारी मात्रा की प्लास्टिक के मोडिफिकेशन के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाए गए. प्लास्टिक और पॉलिथीन को प्रोसेस करने के बाद उसके ग्रेन्यूल्स बनाए गए. इन ग्रेन्यूल्स का उपयोग सड़क निर्माण में किया गया. लेकिन फिर प्लास्टिक उद्योग इन ग्रेन्यूल्स को खरीदने लगे. जिसके बाद नगर निगम को सड़क निर्माण में ग्रेन्यूल्स खपाने की जरूरत नहीं पड़ती. अब इन्हें बेचकर अच्छी इनकम की जा रही है.

प्लास्टिक को ग्रेन्यूल्स में बदलने के बाद करीब एक लाख की आमदनी
हर महीने नगर निगम के पास लगभग 35 से 40 टन वेस्ट प्लास्टिक जमा हो जाती है. जिसे ग्रेन्यूल्स में बदलने के बाद औसतन एक लाख रुपये प्रतिमाह की आमदनी हो रही है. कल तक जो प्लास्टिक और पॉलिथीन कूड़े में फेंक दी जाती थी, आज उसी फेंकी हुई चीजों से लाखों की कमाई हो रही है. इस इनोवेशन से अंबिकापुर को स्वच्छता सर्वेक्षण में 250 अंक मिले हैं. महानगरों की तुलना में अंबिकापुर का स्थान देश में चौथा है.

ज्यादा से ज्यादा प्लास्टिक नगर निगम को प्राप्त हो और शहर प्लास्टिक मुक्त हो इसके लिए नगर निगम ने अनूठा काम किया है. अंबिकापुर में देश का पहला गार्बेज कैफे खोल दिया गया. इस कैफे में खाने के बदले पैसे नहीं लिए जाते, बल्कि वेस्ट प्लास्टिक लिया जाता है और खाना बिल्कुल मुफ्त दिया जाता है.

यह भी पढ़ें- असम छह स्थानीय समुदायों के लिए चाहता है एसटी का दर्जा : सोनोवाल

सॉलिड-लिक्विड एंड वेस्ट मैनेजमेंट के काम को यहां लगातार इतने बेहतरीन तरीके से एग्जिक्यूट किया गया है कि अंबिकापुर को बेस्ट प्रैक्टिस का अवार्ड भी मिल चुका है. अंबिकापुर ने स्वच्छता की राह में आगे बढ़ने के लिए कई नवीन योजनाओं को अपनाया और राष्ट्रीय पटल पर छत्तीसगढ़ के नाम का परचम लहराया है.

सरगुजा (छत्तीसगढ़) : अंबिकापुर अब छत्तीसगढ़ की विशेष पहचान बन चुका है. स्वच्छता को लेकर किए गए इनोवेशन की वजह से देशभर की नजरे अंबिकापुर पर हैं. स्वच्छ भारत मिशन के लिए रोल मॉडल बने अंबिकापुर ने डोर-टू-डोर कचरे का कलेक्शन कर उसे सॉलिड-लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट के जरिए जिला प्रशासन की आमदनी बढ़ाने का शानदार उदाहरण पेश किया है. यही वजह है कि स्वच्छता सर्वेक्षण में भी अंबिकापुर ने बड़े-बड़े शहरों को पछाड़ दिया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की और धीरे-धीरे इसके तहत कई तरह के नवाचार होने लगे. अंबिकापुर ने सफाई के क्षेत्र में मील के पत्थर गढ़े और ऐसी सफलता हासिल की कि दूसरे राज्यों के लोग यहां के रोल मॉडल को सीखने और समझने के लिए पहुंचने लगे. दूसरे राज्यों की सरकार अपना प्रतिनिधिमंडल यहां भेजती हैं और यहां के स्वच्छता मॉडल को अपनाने की कोशिशें कर रही हैं.

कूड़े से कुंदन बना रहा अंबिकापुर नगर निगम

प्लास्टिक और पॉलिथीन से बनाए जा रहे ग्रेन्यूल्स
अंबिकापुर शहर में कचरे में फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक या पॉलिथीन जो सड़कों के किनारे जमा रहा करते थे या फिर निगम के डंपिंग यार्ड में पड़े होते थे. इन प्लास्टिक से न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान होता, बल्कि मवेशियों को भी इसे खा लेने से कई परेशानियों का सामना करना पड़ता था.

अंबिकापुर नगर निगम ने इस वेस्ट प्लास्टिक का रीयूज करना शुरू किया. कचरे में मिलने वाली इन भारी मात्रा की प्लास्टिक के मोडिफिकेशन के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाए गए. प्लास्टिक और पॉलिथीन को प्रोसेस करने के बाद उसके ग्रेन्यूल्स बनाए गए. इन ग्रेन्यूल्स का उपयोग सड़क निर्माण में किया गया. लेकिन फिर प्लास्टिक उद्योग इन ग्रेन्यूल्स को खरीदने लगे. जिसके बाद नगर निगम को सड़क निर्माण में ग्रेन्यूल्स खपाने की जरूरत नहीं पड़ती. अब इन्हें बेचकर अच्छी इनकम की जा रही है.

प्लास्टिक को ग्रेन्यूल्स में बदलने के बाद करीब एक लाख की आमदनी
हर महीने नगर निगम के पास लगभग 35 से 40 टन वेस्ट प्लास्टिक जमा हो जाती है. जिसे ग्रेन्यूल्स में बदलने के बाद औसतन एक लाख रुपये प्रतिमाह की आमदनी हो रही है. कल तक जो प्लास्टिक और पॉलिथीन कूड़े में फेंक दी जाती थी, आज उसी फेंकी हुई चीजों से लाखों की कमाई हो रही है. इस इनोवेशन से अंबिकापुर को स्वच्छता सर्वेक्षण में 250 अंक मिले हैं. महानगरों की तुलना में अंबिकापुर का स्थान देश में चौथा है.

ज्यादा से ज्यादा प्लास्टिक नगर निगम को प्राप्त हो और शहर प्लास्टिक मुक्त हो इसके लिए नगर निगम ने अनूठा काम किया है. अंबिकापुर में देश का पहला गार्बेज कैफे खोल दिया गया. इस कैफे में खाने के बदले पैसे नहीं लिए जाते, बल्कि वेस्ट प्लास्टिक लिया जाता है और खाना बिल्कुल मुफ्त दिया जाता है.

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सॉलिड-लिक्विड एंड वेस्ट मैनेजमेंट के काम को यहां लगातार इतने बेहतरीन तरीके से एग्जिक्यूट किया गया है कि अंबिकापुर को बेस्ट प्रैक्टिस का अवार्ड भी मिल चुका है. अंबिकापुर ने स्वच्छता की राह में आगे बढ़ने के लिए कई नवीन योजनाओं को अपनाया और राष्ट्रीय पटल पर छत्तीसगढ़ के नाम का परचम लहराया है.

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