मुंबई : महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने का सवाल ही नहीं उठता है. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार गिराने के लिए कोशिश नहीं करेगी क्योंकि गठबंधन में निहित विरोधाभास के चलते यह खुद अपने ही भार से गिर जाएगी.
फडणवीस का यह बयान भाजपा के पहले के बयानों से कुछ अलग था. यह बयान पिछले सात महीनों में तीन पार्टियों के गठबंधन से बनी उद्धव ठाकरे की सरकार को नापसंद करने और हटाने की योजनाओं से भी परे था.
इस बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार ने उद्धव ठाकरे से बांद्रा स्थित उनके आवास मातोश्री में मुलाकात की, जहां से वर्तमान में मुख्यमंत्री कामकाज चला रहे हैं. कोरोना संकट के दौर में जब अधिकांश नेता एक दूसरे से मिलने-जुलने से बच रहे हैं, ऐसे में वरिष्ठ नेता पवार मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिलने उनके घर पहुंचे. इस मुलाकात ने हर मीडियाकर्मियों का ध्यान खींचा.
हालांकि, बैठक के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई, लेकिन सूत्रों ने दावा किया कि मुंबई में 12 डिप्टी पुलिस कमिश्नरों के तबादले के मुद्दे पर चर्चा की गई थी. पिछले हफ्ते मुंबई के कमिश्नर ने केवल गृहमंत्री अनिल देशमुख से सलाह करके इन तबादलों की घोषणा की. अनिल देशमुख एनसीपी के हैं. इसके बाद शिवसेना ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखा गया और प्रोटोकॉल के उल्लंघन की शिकायत की. इसके बाद तबादले के आदेश को रद्द कर दिया गया. सूत्रों के मुताबिक, अनिल देशमुख बैठक में मौजूद थे और उनसे कहा गया कि आगे वे ऐसा न करें.
लेकिन यह मानना कि यह एकमात्र मुद्दा था जिस पर चर्चा हुई, शायद यह सही नहीं है क्योंकि इस तरह के कई मुद्दे रहे हैं. महज चार दिन पहले अहमदनगर जिले के शिवसेना के चार स्थानीय पार्षदों ने पार्टी छोड़ दी थी और अजीत पवार की उपस्थिति में एनसीपी में शामिल हो गए. अजीत पवार उप-मुख्यमंत्री हैं और एनसीपी में नंबर दो का स्थान रखते हैं.
शिवसेना ने दो दिन बाद उसी भाषा में जवाब दिया. एनसीपी को अलग रखते हुए शिवसेना ने ठाणे जिले में स्थानीय निकाय के चुनावों में भाजपा का समर्थन किया. तथाकथित गठबंधन धर्म यहां पूरी तरह से गायब है. गठबंधन के सहयोगियों के बीच एक विशाल खाई है, जो पहले दिन से ही स्पष्ट है. मामले दिन ब दिन खराब होते जा रहे हैं. कांग्रेस और एनसीपी के मंत्रियों की सबसे आम शिकायतें हैं कि उद्धव ठाकरे शायद ही कभी उनसे मिलते हैं और उन्हें विश्वास में रखते हैं.
पढ़ें- महाराष्ट्र : डॉ. भीमराव अंबेडकर के निवास पर तोड़फोड़, होगी कार्रवाई
कांग्रेस के मंत्रियों ने कई मौकों पर ऐसा संकेत दिया है. जून के अंतिम सप्ताह में, कांग्रेस के मंत्रियों ने मीडिया में प्रचार किया कि उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलने के लिए समय मांगा और वे उद्धव ठाकरे से मिलने मातोश्री गए, क्योंकि मुख्यमंत्री यदा-कदा ही मंत्रालय आते हैं.
उद्धव ठाकरे अपने जीवनकाल में न तो कोई चुनाव लड़े हैं और न ही पार्टी के बाहर किसी पद पर रहे हैं. उद्धव ठाकरे पूरी तरह से प्रशासन में एक नौसिखिए हैं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वह नौकरशाही पर बहुत अधिक निर्भर हैं. इसकी काफी उम्मीद है, इन वजहों से मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों के बीच कई टकराव हुए हों.
उद्धव ठाकरे का मंत्रिमंडल एक पूर्व मुख्यमंत्री और तीन पूर्व उप-मुख्यमंत्रियों से भरा हुआ है. जून में एक अवसर पर नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल ने कैबिनेट की बैठक में इस बात पर आपत्ति जताई कि उन्हें सूचित किए बिना ही उप-सचिव ने प्रस्ताव आगे बढ़ा दिया. बाद में इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया. इसी तरह की बात अन्य मंत्रियों के साथ भी हुई.
सेवानिवृत्त मुख्य सचिव अजॉय मेहता का तीसरी बार कार्यकाल बढ़ाने का मुद्दा भी काफी विवादास्पद बन गया. कांग्रेस और एनसीपी ने मेहता की सेवा जारी रखने का विरोध किया. लेकिन उद्धव ठाकरे ने अपने गठबंधन के सहयोगियों की इच्छा के खिलाफ मेहता को विशेष सलाहकार के रूप में बनाए रखा.
कोरोना महामारी के बीच महाराष्ट्र में बड़े पैमाने कुप्रबंधन और अक्सर बदलते नियमों के कारण अराजकता की स्थिति बन गई है. पिछले हफ्ते मुंबई पुलिस ने घोषणा की कि उनके निवास से दो किलोमीटर के दायरे में किसी को भी घूमने की अनुमति नहीं दी जाएगी. घंटे भर के भीतर इस आदेश को वापस लेने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि इससे भारी हंगामा हुआ. प्रशासन ने पिछले तीन महीनों में कई बार इस तरह के फैसले किए और वापस लिए. इसलिए यह व्यापक रूप से महसूस किया जा रहा है कि राजनीतिक आकाओं का नौकरशाही पर कोई नियंत्रण नहीं है.
वहीं, शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि लोग इस बात पर दांव लगा रहे हैं कि सरकार गिरेगी या बचेगी. लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया कि यह सरकार दृढ़ है. एक बात स्पष्ट है कि सरकार तीन दलों पर निर्भर है. गठबंधन के नेताओं का बार-बार कहना कि सरकार स्थिर है ये इसका प्रमाण है कि महाराष्ट्र में सब ठीक नहीं है.