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विशेष : सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है चीन की आक्रामकता

जहां पूरी दुनिया चीन को कोरोना वायरस फैलाने के लिए शक की निगाह से देख रही है. वहीं चीन अपनी सीमाओं से सटे क्षेत्रों पर आक्रामक कदम उठा रहा है. वास्तव में चीन का संघर्ष केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके आस-पास के कई देशों के साथ भी है, जो चीन के साथ अपनी सीमाओं को साझा करते रहे हैं और इसीलिए वह इन क्षेत्रों पर भी अपनी आक्रामकता बरपा रहा है. पढ़ें हमारा विशेष लेख...

शी जिनंपिंग
शी जिनंपिंग
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Published : Jun 22, 2020, 10:53 AM IST

हैदराबाद : जहां पूरी दुनिया चीन को कोरोना वायरस फैलाने के लिए शक की निगाह से देख रही है. वहीं चीन अपनी सीमाओं से सटे क्षेत्रों पर आक्रामक कदम उठा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों मौजूदा स्थिति में चीन भारत के साथ झगड़े को लेकर नई समस्याओं को आमंत्रित कर रहा है? क्या चीनी नेतृत्व भारत के साथ सच में युद्ध को लेकर गंभीर है? या फिर कोई अन्य लाभ है, जिसे हासिल करने के लिए चीन आक्रम रुख अपना रहा है?

वास्तव में चीन का संघर्ष केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके आस-पास के कई देशों के साथ भी है, जो चीन के साथ अपनी सीमाओं को साझा करते रहे हैं. जैसे कि थाइलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम. चीन इन देशों में पानी के प्रवाह पर बाधा डाल रहा है और अब यह देश पानी की आपूर्ति के लिए जूझ रहे हैं. इन देशों में फिलहाल सूखे जैसे हालात बने हुए हैं.

वहीं चीन जापान के निर्जन द्वीपों के क्षेत्रों में प्रवेश कर दावा करता है कि यह द्वीप चीन गणराज्य के हैं. इसके अलावा चीन लगातार ताइवान को भी प्रभावित करने के तरीकों को अपना रहा है.

इसके अलावा हांगकांग की स्थिति स्वंय अपनी कहानी बयान करती है, जहां काफी समय से चीन के खिलाफ प्रदर्शन और हिंसक घटनाएं हो रही हैं. जब हम इन सभी स्थितियों का विश्लेषण करते हैं, तो इससे चीन का नेतृत्व ठीक से समझ आता है.

बिगड़ती हुई आर्थिक और सामाजिक स्थिति
चीन वर्तमान में 1990 के बाद की सबसे खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है. इस वर्ष चीन की आर्थिक वृद्धि में 6.8 प्रतिशत की गिरावट आई है. मंदी के दौर में अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध, कोरोना महामारी के तत्काल आगमन ने स्थिति को और खराब कर दिया है. यही कारण है कि चीन की सरकार ने इस साल अपना विकास लक्ष्य निर्धारित नहीं करने का फैसला किया है.

पीएलए डेली जिसे कम्युनिस्ट सरकार के आईने के रूप में जाना जाता है, ने हाल ही में एक लेख प्रकाशित किया है, जिसने विश्व स्तर पर कई पाठकों को आकर्षित किया. इस लेख में चेतावनी दी गई है कि पूरे देश की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है और देश के भीतर आर्थिक और सामाजिक स्थितियां भी बिगड़ रही हैं और यह स्थिति किसी भी क्षण ब्लास्ट हो सकती है.

चीनी प्रधानमंत्री ली ने खुद घोषणा की है कि वर्तमान में चीन में लगभग 60 अरब लोग गरीबी में रह रहे हैं और वह प्रति माह 140 डॉलर से कम कमाते हैं.

सीमाओं को लेकर विवाद
चीन के साथ सीमा विवाद भारत के लिए कोई नई बात नहीं है और ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं है कि यह जल्द ही समाप्त हो सकता है. इसका मुख्य कारण यह है कि भारत और चीन के बीच कोई निर्धारित सीमा नहीं है. इसलिए दोनों देश अतीत में सीमा पार संघर्षों में शामिल रहे हैं और आगे भी रहेंगे.

इस तरह के टकराव अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का एक स्वाभाविक परिणाम है, ताकि अन्य वैश्विक 'राजनयिक लाभ' हासिल करने के लिए दबाव बनाया जा सके. इसके अलावा यदि चीन वास्तव में भारत के साथ युद्ध में चाहे, तो उसकी कम्युनिस्ट सरकार अच्छी तरह से जानती है कि युद्ध केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा.

पढ़ें - ड्रोन ने दिखाई नई रोशनी : कोरोना से जंग में निभा रहा महत्वपूर्ण भूमिका

बेरोजगारी के राक्षस
चीन में बेरोजगारी आसमान छू रही है, जिससे इसके लोगों में अधीरता और अशांति है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चीन में शहरी बेरोजगारी कोरोना महामारी की शुरुआत से पहले छह प्रतिशत से अधिक हो गई, जिससे नागरिकों में कुछ अशांति पैदा हुई है. हालांकि, यह केवल आधिकारिक आंकड़े हैं अगर वास्तविक आकंड़े दिखाए जांए, तो यह दोगुना हो सकता है.

इसके अलावा बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं और देशभर में शहरों का निर्माण, जोकि पिछले दिनों में इन्फ्रा डेवलपमेंट के नाम पर शुरू किए गए थे, अब सरकारी खजाने पर भारी पढ़ रहे हैं.

चीन सरकार ने बड़े पैमाने पर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना शुरू की है, जिससे अगले 20 वर्षों के लिए उनके देश में कई कंपनियों और श्रमिकों को काम दिया जाएगा.

इसी समय इसने रणनीतिक ऋण प्रदान कर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच अपनी स्थिति का लाभ उठाया है. हालांकि, भारत ने शुरू में ही इस व्यवस्था का विरोध किया था लेकिन कुछ देश चीन के सामने झुक गए. लेकिन अब म्यांमार जैसे देशों ने इस रणनीति को समझना शुरू कर दिया है और अब अपने वादे से पीछे हटने की तैयारी में हैं.

असंतुष्ट स्वर
कोरोना के बाद चीन में भी असंतोष पैदा हो रहा है. अन्य देशों ने पहले ही चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को जारी रखने पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया है.

इसके अलावा कई अंतरराष्ट्रीय संगठन और कंपनियां पहले ही चीनी कंपनियों के साथ अपने अनुबंध को आगे बढ़ाने पर विचार विमर्श कर रही थीं.

डॉ ली वेन लियांग, जिन्होंने वायरस की शुरुआत में ही देश को चेतावनी दी थी , लेकिन सरकार द्वारा उन्हें खामोश कर दिया गया, जिसके कारण सरकार को अब अपने ही नागरिकों द्वारा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना के कारण चीन की साख बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई है.

यह सभी बातें चीनी नागरिकों पर भावनात्मक प्रभाव डाल रही हैं. हालांकि, चीनी सरकार की रूढ़िवादिता के कारण मीडिया में खुले तौर पर संकेत नहीं दिया गया है लेकिन विश्वविद्यालयों के छात्रों और बुद्धजीवियों के बीच आक्रोश देखने को मिल रहा है.

इसके अलावा पर्यवेक्षकों का कहना है कि उनकी अपनी कम्युनिस्ट पार्टी में चीनी नेतृत्व की असहमति है, जो धीरे-धीरे अदृश्य पानी की तरह फैल रही है.. राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा खुद को जीवन भर का विशेषाधिकार देने के संशोधन को देश की नई पीढ़ी का समर्थन नहीं मिल रहा है. लाखों कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं को कैद किया जा रहा है, सत्तारूढ़ पार्टी की रणनीतियों में तानाशाही दिखती है, जिसे मतदाताओं की वर्तमान पीढ़ी और पार्टी के सदस्यों द्वारा नापसंद किया जा रहा है.

हांगकांग में एक साल से अधिक अनसुलझी चिंता और ताइवान द्वारा सरकार की रणनीतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाना चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की नेतृत्व क्षमता को लेकर संदेह व्यक्त करते है.

इन परेशानियों से निकलने के लिए चीन सरकार ने हांगकांग पर कड़े फैसले, ताइवान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव, दक्षिण समुद्र में चीनी नौसेना की तैनाती, भारत के साथ सीमाओं पर टकराव का माहौल बनाने जैसे कदम उठाए हैं.

इस पर विशेषज्ञों को लगता है कि जिनपिंग सरकार इस तरह के सभी कार्यों से तभी लाभान्वित हो सकती है, जब चीनी सरकार अपने नागरिकों के बीच अपने आधार को फिर से स्थपित करे.

हैदराबाद : जहां पूरी दुनिया चीन को कोरोना वायरस फैलाने के लिए शक की निगाह से देख रही है. वहीं चीन अपनी सीमाओं से सटे क्षेत्रों पर आक्रामक कदम उठा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों मौजूदा स्थिति में चीन भारत के साथ झगड़े को लेकर नई समस्याओं को आमंत्रित कर रहा है? क्या चीनी नेतृत्व भारत के साथ सच में युद्ध को लेकर गंभीर है? या फिर कोई अन्य लाभ है, जिसे हासिल करने के लिए चीन आक्रम रुख अपना रहा है?

वास्तव में चीन का संघर्ष केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके आस-पास के कई देशों के साथ भी है, जो चीन के साथ अपनी सीमाओं को साझा करते रहे हैं. जैसे कि थाइलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम. चीन इन देशों में पानी के प्रवाह पर बाधा डाल रहा है और अब यह देश पानी की आपूर्ति के लिए जूझ रहे हैं. इन देशों में फिलहाल सूखे जैसे हालात बने हुए हैं.

वहीं चीन जापान के निर्जन द्वीपों के क्षेत्रों में प्रवेश कर दावा करता है कि यह द्वीप चीन गणराज्य के हैं. इसके अलावा चीन लगातार ताइवान को भी प्रभावित करने के तरीकों को अपना रहा है.

इसके अलावा हांगकांग की स्थिति स्वंय अपनी कहानी बयान करती है, जहां काफी समय से चीन के खिलाफ प्रदर्शन और हिंसक घटनाएं हो रही हैं. जब हम इन सभी स्थितियों का विश्लेषण करते हैं, तो इससे चीन का नेतृत्व ठीक से समझ आता है.

बिगड़ती हुई आर्थिक और सामाजिक स्थिति
चीन वर्तमान में 1990 के बाद की सबसे खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है. इस वर्ष चीन की आर्थिक वृद्धि में 6.8 प्रतिशत की गिरावट आई है. मंदी के दौर में अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध, कोरोना महामारी के तत्काल आगमन ने स्थिति को और खराब कर दिया है. यही कारण है कि चीन की सरकार ने इस साल अपना विकास लक्ष्य निर्धारित नहीं करने का फैसला किया है.

पीएलए डेली जिसे कम्युनिस्ट सरकार के आईने के रूप में जाना जाता है, ने हाल ही में एक लेख प्रकाशित किया है, जिसने विश्व स्तर पर कई पाठकों को आकर्षित किया. इस लेख में चेतावनी दी गई है कि पूरे देश की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है और देश के भीतर आर्थिक और सामाजिक स्थितियां भी बिगड़ रही हैं और यह स्थिति किसी भी क्षण ब्लास्ट हो सकती है.

चीनी प्रधानमंत्री ली ने खुद घोषणा की है कि वर्तमान में चीन में लगभग 60 अरब लोग गरीबी में रह रहे हैं और वह प्रति माह 140 डॉलर से कम कमाते हैं.

सीमाओं को लेकर विवाद
चीन के साथ सीमा विवाद भारत के लिए कोई नई बात नहीं है और ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं है कि यह जल्द ही समाप्त हो सकता है. इसका मुख्य कारण यह है कि भारत और चीन के बीच कोई निर्धारित सीमा नहीं है. इसलिए दोनों देश अतीत में सीमा पार संघर्षों में शामिल रहे हैं और आगे भी रहेंगे.

इस तरह के टकराव अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का एक स्वाभाविक परिणाम है, ताकि अन्य वैश्विक 'राजनयिक लाभ' हासिल करने के लिए दबाव बनाया जा सके. इसके अलावा यदि चीन वास्तव में भारत के साथ युद्ध में चाहे, तो उसकी कम्युनिस्ट सरकार अच्छी तरह से जानती है कि युद्ध केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा.

पढ़ें - ड्रोन ने दिखाई नई रोशनी : कोरोना से जंग में निभा रहा महत्वपूर्ण भूमिका

बेरोजगारी के राक्षस
चीन में बेरोजगारी आसमान छू रही है, जिससे इसके लोगों में अधीरता और अशांति है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चीन में शहरी बेरोजगारी कोरोना महामारी की शुरुआत से पहले छह प्रतिशत से अधिक हो गई, जिससे नागरिकों में कुछ अशांति पैदा हुई है. हालांकि, यह केवल आधिकारिक आंकड़े हैं अगर वास्तविक आकंड़े दिखाए जांए, तो यह दोगुना हो सकता है.

इसके अलावा बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं और देशभर में शहरों का निर्माण, जोकि पिछले दिनों में इन्फ्रा डेवलपमेंट के नाम पर शुरू किए गए थे, अब सरकारी खजाने पर भारी पढ़ रहे हैं.

चीन सरकार ने बड़े पैमाने पर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना शुरू की है, जिससे अगले 20 वर्षों के लिए उनके देश में कई कंपनियों और श्रमिकों को काम दिया जाएगा.

इसी समय इसने रणनीतिक ऋण प्रदान कर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच अपनी स्थिति का लाभ उठाया है. हालांकि, भारत ने शुरू में ही इस व्यवस्था का विरोध किया था लेकिन कुछ देश चीन के सामने झुक गए. लेकिन अब म्यांमार जैसे देशों ने इस रणनीति को समझना शुरू कर दिया है और अब अपने वादे से पीछे हटने की तैयारी में हैं.

असंतुष्ट स्वर
कोरोना के बाद चीन में भी असंतोष पैदा हो रहा है. अन्य देशों ने पहले ही चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को जारी रखने पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया है.

इसके अलावा कई अंतरराष्ट्रीय संगठन और कंपनियां पहले ही चीनी कंपनियों के साथ अपने अनुबंध को आगे बढ़ाने पर विचार विमर्श कर रही थीं.

डॉ ली वेन लियांग, जिन्होंने वायरस की शुरुआत में ही देश को चेतावनी दी थी , लेकिन सरकार द्वारा उन्हें खामोश कर दिया गया, जिसके कारण सरकार को अब अपने ही नागरिकों द्वारा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना के कारण चीन की साख बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई है.

यह सभी बातें चीनी नागरिकों पर भावनात्मक प्रभाव डाल रही हैं. हालांकि, चीनी सरकार की रूढ़िवादिता के कारण मीडिया में खुले तौर पर संकेत नहीं दिया गया है लेकिन विश्वविद्यालयों के छात्रों और बुद्धजीवियों के बीच आक्रोश देखने को मिल रहा है.

इसके अलावा पर्यवेक्षकों का कहना है कि उनकी अपनी कम्युनिस्ट पार्टी में चीनी नेतृत्व की असहमति है, जो धीरे-धीरे अदृश्य पानी की तरह फैल रही है.. राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा खुद को जीवन भर का विशेषाधिकार देने के संशोधन को देश की नई पीढ़ी का समर्थन नहीं मिल रहा है. लाखों कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं को कैद किया जा रहा है, सत्तारूढ़ पार्टी की रणनीतियों में तानाशाही दिखती है, जिसे मतदाताओं की वर्तमान पीढ़ी और पार्टी के सदस्यों द्वारा नापसंद किया जा रहा है.

हांगकांग में एक साल से अधिक अनसुलझी चिंता और ताइवान द्वारा सरकार की रणनीतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाना चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की नेतृत्व क्षमता को लेकर संदेह व्यक्त करते है.

इन परेशानियों से निकलने के लिए चीन सरकार ने हांगकांग पर कड़े फैसले, ताइवान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव, दक्षिण समुद्र में चीनी नौसेना की तैनाती, भारत के साथ सीमाओं पर टकराव का माहौल बनाने जैसे कदम उठाए हैं.

इस पर विशेषज्ञों को लगता है कि जिनपिंग सरकार इस तरह के सभी कार्यों से तभी लाभान्वित हो सकती है, जब चीनी सरकार अपने नागरिकों के बीच अपने आधार को फिर से स्थपित करे.

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